Tuesday, October 28, 2025
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सासाराम आरा और डेहरी रोहतास छोटी लाईन कि सुनहरी यादें , आरंभ से अंत तक | Ara sasaram Light Railway , Dehri Rohtas Light Rail | Part 1

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Ara sasaram Light Railway
सासाराम आरा छोटी लाईन

भारतीय रेलवे, जिसकी शुरुआत 1853 में मामूली थी, तब से राष्ट्र का अभिन्न अंग रहा है। ब्रिटिश सरकार ने रेल और सड़क परिवहन प्रणाली के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया। आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य मोर्चे के लिए रेलवे महत्वपूर्ण है । नई रेलवे लाइनों ने भारत के विभिन्न हिस्सों को एक साथ बांध दिया। यह लोगों और महलों को पहले से कहीं अधिक करीबी बना दिया, जो पहले कभी नहीं हुआ । नई रेल लाइनों ने दिलों के दूरी को कम किया ।

Table of Contents

आरा सासाराम और डेहरी रोहतास रेलवे | Ara sasaram Light Railway , Dehri Rohtas Light Rail

Dehri rohtas Light Railway
डालमियानगर में खड़ी “डेहरी रोहतास छोटी लाईन” कि रेलगाड़ी । कुछ वर्षो पहले सरकार इसे पंडित दिन दयाल उपाध्याय जंक्शन (मुग़लसराय ) पर सजाने के लिए ले गई  | Pc : LG Marshal

20वीं सदी में बिहार के पुराने शाहाबाद जिले में दो छोटे रेलवे नेटवर्कों की शुरुआत हुई थी। एक है आरा-सासाराम लाइट रेलवे और दूसरी है डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे। डेहरी रोहतास रेलवे के बारे में हम लोग कभी बाद में चर्चा करेंगे , फिलहाल सासाराम और आरा के बीच दौड़नेवाली आरा सासाराम लाईट रेलवे के ऊपर प्रकाश डालते हैं ।

आरा सासाराम छोटी लाईन

Ara Sasaram Light Railway 3
सासाराम स्टेशन पर खड़ी आरा सासाराम छोटी लाईन कि रेलगाड़ी  | Pc : LG Marshal

आरा-सासाराम लाइट रेलवे (एएसएलआर) दक्षिण बिहार के यात्रियों के लिए एक लोकप्रिय नैरो गेज रेल नेटवर्क था। 1914 में शुरू हुआ जो ईस्ट इंडियन रेलवे की दो लाइन को जोड़ता है । आरा-सासाराम लाइट रेलवे ने 1978 में रेल पर अपनी अंतिम यात्रा पूरी की। आरा-सासाराम लाइट रेलवे ने दक्षिण बिहार के लोगों को 64 साल की निरंतर सेवा दी । एक समय में यह रेल नेटवर्क भोजपुरी जीवन शैली का हिस्सा था।

कई गांवों ने इस रेल पर गाने भी बनाए थे। यह निजी स्वामित्व वाला रेल नेटवर्क था। मार्टिन और बर्न द्वारा संचालित, आरा-सासाराम लाइट रेलवे ने लोगों को छह दशक तक सेवा दी। 1950 से 1970 इस रेल नेटवर्क के लिए गौरवशाली समय था।

आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है

हर लंबी यात्रा की शुरुआत छोटे कदमों से होती है। भारतीय संदर्भ में नैरो गेज का अर्थ है 1 मीटर से छोटा कोई भी गेज। दो ऐसे गेज जो अब बचे हैं वे हैं 2′ (610 मिमी) और 2’6″ (762 मिमी) गेज। भारत में पहली 2 फीट 6 इंच (762 मिमी) रेलवे का निर्माण 1863 में गायकवाड़ के बड़ौदा राज्य रेलवे में किया गया था। 1897 में बरसी लाइट रेलवे खोला गया।

बिहार का शाहाबाद जिला, जिसका मुख्यालय आरा में था, पश्चिमी बिहार में एक भोजपुरी भाषी जिला था, भारत के उत्तर प्रदेश के साथ बिहार की पश्चिमी सीमा बना रहा था। जिले को अब भोजपुर, रोहतास, कैमूर और बक्सर सहित चार जिलों में विभाजित किया गया है ।

शाहाबाद जिला बिहार का धान उत्पादक क्षेत्र था, इसलिए राज्य में इसका आर्थिक महत्व था। शाहाबाद राज्य के अन्य हिस्सों में चावल का थोक निर्यातक था। यद्यपि परिवहन के विभिन्न साधन व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, रेलवे माल के प्रमुख वाहक हैं क्योंकि उनकी थोक परिवहन की क्षमता है।

भोजपुर और रोहतास में पहले से था रेल नेटवर्क 

भोजपुर जिले में आरा, बिहिया, बक्सर और डुमरांव जैसे व्यापार केंद्र रेल नेटवर्क पर पहले से थें । रोहतास जिले में मोहनिया, कुदरा, सासाराम और डेहरी जैसे शहर/बाजार रेल नेटवर्क पर पहेल से थें ।

Sasaram Ara Light Rail
पिरो स्टेशन पर सन् 1946 ई में खड़ी आरा सासाराम छोटी लाईन कि रेलगाड़ी  | Pc : LG Marshal

 

इसलिए ब्रिटिश सरकार ने रोहतास जिला के गढ़ नोखा, बिक्रमगंज, हसन बाजार, पिरो जैसे बाजारों को रेल नेटवर्क से जोड़ने का विचार किया । आरा और सासाराम के बीच की दूरी 100 किलोमीटर है।

आरा और सासाराम में पहले से बड़े रेलवे स्टेशन थें 

आरा मुगलसराय-पटना बोराड गेज लाइन पर है और सासाराम ग्रैंड कॉर्ड (मुगलसराय हावड़ा) लाइन पर एक रेलवे स्टेशन है। चावल और यात्रियों जैसे सामानों के परिवहन के लिए भी आरा और सासाराम को जोड़ने की आवश्यकता थी ।

आरा सासाराम लाईट रेल के लिए चावल का व्यापार था मुख्य कारण 

आरा सासाराम छोटी लाईन 2
नोखा स्टेशन पर सन् 1943 ई में खड़ी आरा सासाराम छोटी लाईन कि रेलगाड़ी  | Pc : LG Marshal

चावल के व्यापार के लिए गढ़ नोखा, बिक्रमगंज, हसन बाजार और पीरो जैसे बाजार महत्वपूर्ण हैं। इसलिए 20 वीं सदी की शुरुआत में आरा और सासाराम के बीच रेलवे लाइन की जरूरत सरकारी अधिकारियों द्वारा देखी गई थी।

मार्टिन्स लाइट रेलवे के भारत में कई रेल नेटवर्क थें 

मार्टिन्स लाइट रेलवे भारत में रेलवे का संचालन करने वाली एक निजी कंपनी थी। कंपनी पहले से ही संयुक्त प्रांत और बंगाल में नैरो गेज रेल नेटवर्क का संचालन कर रही थी। इसलिए उन्हें आरा और सासाराम के बीच रेल नेटवर्क बनाने और संचालित करने का अवसर मिला।

निर्माण कार्य ब्योरा

रेल नेटवर्क के उद्देश्य के लिए सरकार द्वारा 1901 ई में भूमि का अधिग्रहण किया गया था । 15 अक्टूबर, 1909 को एक अग्रीमेंट / समझौता के द्वारा तत्कालीन जिला शाहाबाद डिस्ट्रिक बोर्ड और मार्टिन एंड कंपनी लिमिटेड के बीच, आरा सासाराम लाईट रेल के लिए और लाइट रेलवे कंपनी लिमिटेड के बिहाफ में (एवज में ), एक कम्पनी बनाने का निर्णय हुआ । इस कंपनी का निर्माण आरा और सासाराम के बीच ट्रामवे या लाइट रेलवे के निर्माण और निर्माण के लिए किया जाना था।

आरा सासाराम लाइट रेलवे कंपनी लिमिटेड , बन कर तैयार

19 अक्टूबर, 1909 को, आरा सासाराम लाइट रेलवे कंपनी लिमिटेड को कंपनी अधिनियम, 1866 के तहत एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के रूप में शामिल किया गया था, जिसका पंजीकृत कार्यालय नंबर 12, मिशन रोड, कोलकाता में है ।

2010 में कंपनी का मूल्य (आरा सासाराम लाइट रेलवे लिमिटेड , मार्टिन एंड कंपनी की एक सहायक कंपनी) 22,00,000 था। आरा सासाराम लाइट रेलवे लिमिटेड ने प्रत्येक 100 रुपये के शेयर जारी किए। इसे 100 रुपये के 22,000 शेयरों में बांटा गया है। कंपनी ने अपने कुछ शेयर आम जनता को भी बेचे।

Ara Sasaram Light Rail
आरा स्टेशन पर सन् 1970 ई में खड़ी आरा सासाराम छोटी लाईन कि रेलगाड़ी  | Pc : LG Marshal

17 जुलाई, 1910 को, शाहाबाद के तत्कालीन जिला बोर्ड और मार्टेन एंड कंपनी लिमिटेड, कोलकाता के बीच ट्रामवे या लाइट रेलवे के निर्माण के लिए आरा-सासाराम लाइट रेलवे कंपनी लिमिटेड के प्रमोटर के रूप में एक समझौता किया गया था। आरा से सासाराम तक भाप की शक्ति से काम किया जाना है।

लेकिन आरा और सासाराम के बीच की सड़क जिला बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में आती है। 15 अक्टूबर 1909 के अनुबंध के निबंधन एवं शर्तों पर कंपनी आरा सासाराम लाइट रेलवे कंपनी लिमिटेड को रेल नेटवर्क के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु खोला गया था।

आरा सासाराम लाइट रेल का ज़मीन अधिग्रहण

आरा सासाराम छोटी लाईन 1
Map Of Ara Sasaram Light Railway ( Provided to “Sasaram Ki Galiyan” on special demand from indian railway )

रेल मार्ग के उद्देश्य से सासाराम के निकट सलेमपुर, कुराईच ( गौरक्षणी ) , शरीफाबाद, रसूलपुर और महद्दिगंज गांवों की भूमि सहित कई भूमियों का अधिग्रहण किया गया था।

इसके बाद भूमि अधिग्रहण की योजना दिनांक 28.9.1910 के राजपत्र/गजेटियर में प्रकाशित हुई । 19 अगस्त, 1936 को, शाहाबाद के जिला बोर्ड और आरा सासाराम लाइट रेलवे कंपनी लिमिटेड के बीच एक पूरक समझौता किया गया था,

जिसके तहत पार्टियों ने लाभ एवं हानी की गणना की विधि के संबंध में मूल समझौते में एक खंड में संशोधन करने पर सहमति व्यक्त की थी। आरा-सासाराम लाइट रेलवे (बिहार) और बारासेट-बशीरहाट लाइट रेलवे ऑफ बंगाल (मार्टिन एंड कंपनी दोनों) की शुरुआत 1914 में हुई थी ।

Ara Sasaram Choti Line
बिक्रमगंज स्टेशन पर सन् 1948 ई में खड़ी आरा सासाराम छोटी लाईन कि रेलगाड़ी  | Pc : LG Marshal

नोट : इस आर्टिकल पर पब्लिक रिस्पॉस अच्छा रहेगा तो हर शनिवार को हम इसका अगला पार्ट भी लेकर आएंगे । सासाराम आरा छोटी लाईन और डेहरी रोहतास छोटी लाईन पर सम्पूर्ण जानकारियां इंटरनेट पर पहली बार 6 से 7 पार्टो और 18 से 20 हजार शब्दों में “सासाराम की गलियां” उपलब्ध कराएगा । हमें सिर्फ आपका सपोर्ट और प्यार चाहिए ।

सदर अस्पताल बनेगा मॉडल अस्पताल, 55 करोड़ की लागत से आधुनिक सुविधाओं से लैस होगा | sadar hospital will be model hospital

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sadar hospital will be model hospital
sadar hospital will be model hospital

अब वह दिन दूर नहीं जब सासाराम सदर अस्पताल प्रदेश में मॉडल अस्पताल के रूप में सासाराम के लोगों के लिए समर्पित होगा । 2 वर्ष पहले भारत सरकार की इस योजना के लिए बिहार में कुल 10 जिला अस्पतालों का चयन किया गया था । जिसमें सदर अस्पताल सासाराम को भी शामिल किया गया है। सदर अस्पताल के मॉडल होने से सुविधाओं में इजाफा होगा। इससे मरीजों को इसका लाभ मिलेगा।

बिहार के 10 जिलों में बनेगा मॉडल अस्पताल

मॉडल अस्पताल बनने के दौर में सासाराम सदर अस्पताल के अलावे ,पूर्वी चंपारण, अररिया, औरंगाबाद, बांका, भोजपुर, मधुबनी, सहरसा, सीतामढ़ी एवं वैशाली शामिल है।

खर्च होने हैं 54 करोड़ 67 लाख 32921 रुपये

डीपीएम संजीव मधुकर ने बताया कि मॉडल अस्पताल के रूप में चयनित होने के बाद सदर अस्पताल के विकास पर 45 करोड़ 67 लाख 32921 रुपये की राशि खर्च हो सकती है । इससे संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा किया जा रहा है । यह राशि विकास के प्रारूप रूप पर तीन चरणों में खर्च होगी।

आठ मंजिला भवन बनेगा, एक छत के नीचे उपलब्ध होंगी सभी स्वास्थ्य सुविधाए

भारत सरकार के प्रोजेक्ट के अनुसार सदर अस्पताल परिसर में मॉडल अस्पातल के लिए आठ मंजिला भवन का निर्माण कराया जाएगा । जिसमें एक हीं छत के नीचे कई तरह कि स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध होंगी। मॉडल अस्पताल में सोलर सिस्टम से विद्युत आपूर्ति के लिए सोलर प्लांट लगाए जाएंगे।

डीएम सासाराम ने लिया जायजा

DM Said sadar hospital sasaram will be model hospital

सदर अस्पताल सासाराम को मॉडल अस्पताल के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है । डीएम धर्मेंद्र कुमार ने बुधवार को सदर अस्पताल परिसर का निरीक्षण कर विभिन्न स्वास्थ्य यूनिटों के संभावित निर्माण स्थलों का अवलोकन किया । डीएम ने कहा कि सदर अस्पताल को मॉडल अस्पताल बनाने का टेंडर प्रक्रिया में है और 150 दिनों में कार्य शुरू हो जाएगा.

भारत सरकर के मॉडल अस्पताल में क्या क्या होगा

सदर अस्पताल सासाराम में 100 बेड का मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य (एमसीएच) सेंटर का निर्माण बिहार मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड कारपोरेशन लिमिटेड (बीएमसीआईएल) पटना द्वारा किया जाएगा । इसमें लगभग 22 करोड़ रुपये की लागत आएगी और इस कार्य को 15 दिनों के भीतर प्रारंभ कर देने की कोशिश होगी ।

पेडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट भी होगा

आपको बताते चलें कि, मॉडल अस्पताल सासाराम में 10 बेड का पेडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) का भी निर्माण प्रस्तावित है ।

क्षतिग्रस्त बाउंड्री के लिए आवश्यक निर्देश

सदर अस्पताल परिसर में जीएनएम छात्रवास के पीछे की बाउंड्री क्षतिग्रस्त होने के कारण अस्पताल परिसर असुरक्षित बना हुआ है । इसके लिए भी डीएम ने सीविल सर्जन को कई महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए ।

सदर अस्पताल सासाराम में ऑक्सीजन प्लांट

sadar hospital sasaram will be model hospital : Central Govt Plan

सदर अस्पताल सासाराम में ऑक्सीजन जेनरेशन प्लांट भी स्थापित हो रहा है । पिछले सप्ताह जिला प्रशासन ने सूचना दिया था कि सदर अस्पताल सासाराम , अनुमंडलीय अस्पताल बिक्रमगंज तथा डेहरी में भी ऑक्सीजन प्लांट स्थापित कराया जाना है । डीएम ने सदर अस्पताल सासाराम में प्लांट निर्माण स्थल का भी निरीक्षण किया ।

काव नदी का मायके है सासाराम और गंगा है संगिनी , नदी किनारे मिले मानव सभ्यता के अवशेष बताते हैं प्राचीन सहसराम का विकास यहीं हुआ | Kao River

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Kao River
Dhuan Kund : The Origin Of Kao River

अगर फुर्सत मिले, पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हजारों साल का अफसाना लिखता है  !!

प्रकृति ने सासाराम शहर को वन, पहाड़ , झरनों के अलावा नदियों से भी नवाजा है । वैसे तो सासाराम से कई नदियां निकलती हैं , जिसमें से कुछ जीवंत अवस्था में है तो कुछ मृत अवस्था में है , जबकि कई नदियां विलुप्त हो गई । इन सभी नदियों के बारे में कभी बाद में जानेंगे , लेकिन फिलहाल काव नदी पर प्रकाश डालते हैं ।

काव नदी | Kao River 

काव नदी बिहार में गंगा के प्रमुख सहायक नदियों में से एक है । यह नदी बिहार में गंगा के प्रवाह को धार देती है । इसके आस पास कई नगर और बाज़ार बसे हुए हैं । काओ / काव नदी कभी किसानों के लिए जीवनदायनी बन जाती है तो कभी कहर बरपाने वाली डायन का रूप अख्तियार कर लेती है ।

काव नदी की जन्मस्थली सासाराम है

शाहाबाद जिला में गंगा नदी की प्रमुख संगिनी काव नदी की जन्मस्थली सासाराम है । सासाराम का मशहूर सीता कुंड/ मांझर कुंड का पानी जब पत्थरो को चीरता हुआ आगे बढ़ता है तो वह धुआं कुंड में लगभग 130 फिट नीचे गिरकर धरती को प्रणाम करता है ।

Dhuan Kund Waterfall Sasaram
Dhuan Kund Waterfall Sasaram

यहां पानी गिरने की रफ्तार इतनी तेज़ होती है कि आस पास का वातावरण धुआं धुआं हो जाता है । कुंड का पानी छोटे छोटे बूंदों के रूप में 150 फिट ऊपर तक आते हैं । बरसात के मौसम में जब यह झरना अपने शक्तिशाली स्वरूप को धारण कर लेता है ,उस समय उपर से अगर कोई इस मनोरम दृश्य को देखे तो , मानो वह देखता हुआ भिंग जाए ।

काव नदी की मां है धुआं कुंड

लगभग 120 फिट ऊपर से धुआं कुंड में गिरने वाला पानी नदी को जन्म देता है, जो युगों युगों से मानव बस्तियों की प्यास बुझाती रही है और अब कई जिलों के किसानों के लिए सिंचाई का साधन है  । धुआं कुंड मां की भूमिका में होती है ।

Dhuan Kund Sasaram
Dhuan Kund Sasaram

इसी धुआं कुंड का पानी लगभग आधा से 1 किलोमीटर आगे चलने पर पहाड़ से टकरा कर दाएं दिशा में मुड़ने पर मैदानी भाग में काव नदी के नाम से प्रवेश करता है ।

नदी के उद्दम स्थली पर देवी का मंदिर

Ma Durga Temple Dhuan Kund Sasaram
Ma Durga Temple , Dhuan Kund ,Sasaram

भारतीय संस्कृति में प्रकृति को मां या देवी माना गया है । प्रायः सभी नदियों के उद्गम स्थानों पर मंदिर बने हुए मिलते हैं । काव नदी के उद्दम् स्थली धुआं कुंड पर भी नारी शक्ति कि प्रतीक मां दुर्गा का एक मंदिर है ।

सासाराम के टक्साल संगत मुहल्ले के किसी व्यक्ति या समूह द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था । इस मंदिर के पास खड़े होकर पर्यटक झरने का आनंद लेते हैं । यहां पर फोटोग्राफर्स को भी कुंड का सबसे बेस्ट व्यू मिलता है ।

प्राचीन काल में काव नदी के किनारे था मानव सभ्यता

Human Civilization Sasaram 2
Representation : Human Civilization | Pc : google

नदिया जीवन देती है और नदियों की धारा के साथ जीवन का भी प्रवाह होता रहता है । कुछ वर्षों पहले ताराचण्डी के पास काव नदी के किनारे हुए खुदाई में प्राचीन काल के कई अवशेष मिले हैं जो कि कभी इसी नदी किनारे मानव सभ्यता के फलने फूलने की ओर इशारा करते हैं ।

चेरो खरवार वंश का इतिहास समेटी है प्राचीन काव नदी

इतिहासकार कहते हैं कि इस नदी का अस्तित्व आदि काल से है । आदि काल से ही कांव नदी के तट पर रोहतास और सासाराम का असली मूलनिवासी/ आदिवासी समुदाय यानी “चेरो खरवार वंश” निवास करता था । पुराना सहसराम शहर भी नदी किनारे ही विकास किया था ।

प्लेग महामारी और काव नदी किनारे सभ्यता

Human Civilization Sasaram
Representation : Human Civilization Sasaram Painting

पूर्व काल में एक बार प्लेग जैसी महामारी फैली थी, जिससे बचने के लिए लोगों ने कांव नदी के तट का सहारा लिया था । इसके बाद लोग यहीं बस गये और यह जगह बस्ती के रूप में तब्दील हो गई । काव नदी की तेज़ धारा के कारण लोगों को प्रायः बाढ़ के कारण बरबादी उठानी पड़ती थी , लेकिन आम लोगों के लिए का नदी फलदायी भी उतनी ही थी ।

खेती के लिए काव नदी का उपयोग

काव नदी के किनारे के खेतों की सिंचाई नदी के पानी से हुआ करती है । काव नदी के किनारे सभी तरह की फसलों की खेती होती है लेकिन मुख्य रूप से गेहूं और मटर कि खेती के बारे में 1813 ई. के अंग्रेज इतिहासकारों ने वर्णन किया है , शायद यह उन्हें अधिक पसंद हो ।

काव नदी में सालो भर रहता है पानी

Kav River Sasaram Rohtas
Kav River Sasaram Rohtas

नदी पर अतिक्रमण और प्रकृति के साथ इंसानों के दुर्व्यवहार के बाद भी प्राचीन नदी होने के कारण सालो भर इसमें थोड़ा बहुत पानी रहता है, किसी जगह पर ठेहुने भर रहता है तो किसी जगह हांथी डूबने लायक पानी भी रहता है ,हालांकि बरसात में यह नदी अपने उफान पर रहती है.

Kao River Bikramganj
Kao River Bikramganj | pc : Akhil

अंग्रेजी इतिहासकार 1813 ई. में लिखते हैं कि रोहतास जिला के सूर्यपूरा में नदी की चौड़ाई 50 यार्ड से भी अधिक थी ।

बरसात में काव नदी धारण करती है डायन का रूप

बरसात के मौसम में धुआं कुंड में गिरने वाला पानी इतना खतरनाक होता है कि हम उस शब्दों में बयां नहीं कर सकते । जिसने उस मंजर को देखा है , सिर्फ वही उसे महसूस कर सकता है । कई कई हाथियों को डुबाने का शक्ति होता है ,सासाराम के इस धुआं कुंड में । धारा तो पूछिए ही मत, पानी के धारा की रफ्तार ऐसी होती है कि चलती ट्रेन को भी बहा कर कहां फेक दे उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है ।

Flod in Kao

इसी धुआं कुंड से निकलने वाली काव नदी आस पास के कस्बों में बाढ़ भी लाती है । किनारे पर रहने वाले गांवों पर डायन की तरह कहर बरपाती है । कई कई गांव जलमग्न हो जाते हैं , लोगों को नाव का उपयोग करना पड़ता है । बुजुर्ग बताते हैं कि, आज से 20 वर्ष पहले तक काई नदी के बाढ़ में कई जंगली जानवर भी बह कर दूर दराज तक चले जाते थें ।

काव नदी किनारे बसे प्रमुख शहर और बाज़ार

Lohava Pul sasaram
सासाराम में अँग्रेजों के द्वारा बनाया गया काव नदी के ऊपर लोहवा पुल : Lohava Pul sasaram

सासाराम, जमुहार, राजपुर, बिक्रमगंज, सूर्यपूरा दावथ, मलियाबाग, नावानगर, सिकरौल, डुमरांव और बक्सर जैसे शहर और बाज़ार काव नदी किनारे आबाद हो रहे हैं ।

गंगा में विलीन हो जाती है काव नदी

File : Kao River ( Thora River) Ending Before Meeting Ganga

सासाराम के धुआं कुंड से निकलने वाली काव नदी राजपुर, बिक्रमगंज,और डुमरांव के रास्ते भोजपुर के कोकिला ताल में गिरते हुए बक्सर में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है । लेकिन यह मिलन काव नदी के रूप में नहीं बल्कि ठोरा नदी के रूप में होती है ।

ठोरा नदी और काव नदी

Chath Puja in Kao River
काव नदी में छठ पूजा : बिक्रमगंज – Chath Puja in Kao River : Bikramganj | pc : akhil

बक्सर में गंगा नदी में विलीन होने से पहले काव नदी ठोरा नदी में मिल जाती है और इसका नाम भी काव के बदले ठोरा नदी हो जाता है । इलाके में रहने वाले लोग ठोरा नदी ही कहते हैं, ठीक उसी तरह जैसे गंगा नदी बंगाल में हुगली नदी भी कहलाती है ।

ठोरा नदी की कहानी बहुत दिलचस्प है, ठोरा नदी मेरे गांव यानी नोनहर से निकलती है । किद्वांतियों के अनुसार ठोरा नाम के एक ब्रम्हाण थें जो नदी बन गए थे ( इसके बारे में विस्तार से कभी बाद में बताया जाएगा ) । ठोरा नदी का उद्गम स्थल जिला रोहतास के बिक्रमगंज अनुमंडल में पड़ने वाला नोनहर गांव है । मेरे गांव नोनहर में ठोरा बाबा का एक मंदिर भी है ।

काव नदी बस कुछ ही वर्षों की है मेहमान, बचा लीजिए

Kao River in Dumraon
Kao River in Dumraon | pc : Dumraon Beats

अगर इस आर्टिकल पर पब्लिक रिस्पॉन्स अच्छा आएगा तो सोमवार को हमलोग “काव नदी का पार्ट 2” भी उपलब्ध कराएंगे , जिसमें काव नदी की दर्द भरी दास्तां बताएंगे और सासाराम से निकलने वाली काव नदी के बहन के बारे में भी बताएंगे ।

जीटी रोड पर डिवाईडर बनना हुआ शुरू , डीएम के प्रयासों से मिलेगी जाम से राहत । Gt Road Divider Construction

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Gt Road Divider Construction
Gt Road Divider Construction 2021

करोना के अत्याचार, बारिश से बदहाली और नगर निगम सासाराम के मृत सिस्टम से फैली चारो तरफ नकारात्मकता और उदासी के बीच एक राहत भरी खबर आई है । यह काम हुआ है अपने डीएम धर्मेंद्र कुमार के प्रयासों से ।

जीटी रोड का जाम होना सबसे बड़ी समस्या

कई दशकों से सासाराम के बीचों बीच से गुजरने वाली जीटी रोड का जाम होना शहर की सबसे बड़ी समस्या रही है । शहर में शायद ही कोई होगा जो कभी इस समस्या से दो चार नहीं हुआ होगा । सासाराम में भयंकर सड़क जाम !! बिना मास्क ,गर्मी से कराहते मिले लोग : CLICK To Read

हमने बताया था जीटी रोड चौड़ीकरण का खबर

पिछले साल जीटी रोड का चौड़ीकरण का काम शुरू हुआ था, लेकिन चुनाव के बाद कई कारणों से बंद हो गया था । लेकिन कुछ महीनों पहले फिर से वो काम शुरू हुआ था , हमने वह खबर आपको बताया था । इसमें डीवाईडर निर्माण भी होना था ।

जल्द मिलेगी राहत ,सासाराम में जी टी रोड जीर्णोद्वार कार्य जारी है !! लेकिन अभी भी बदहाल है अमरा बभनपूर्वा पथ : CLICK Here

डीवाईडर निर्माण शुरू हो गया

Gt Road Divider Construction 2021
Gt Road Divider Construction started

स्थानीय एसपी जैन कॉलेज के पास से जीटी रोड पर डीवाईडर निर्माण शुरू हो गया है । यह डीवाईडर एसपी जैन कॉलेज गेट से लेकर कुशवाहा चौक बेलाढ़ी होते हुए टोल प्लाजा तक बनना है ।

ऊंचा है डीवाईडर

इस बार के डीवाईडर की खास बात यह है कि, यह ऊंचा है । गाड़ी वाले बीच सड़क पर ट्रैफिक नियमों को तोड़कर इस तरफ से उस तरफ नहीं कर पाएंगे ।

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पैदल यात्री भी डीवाईडर फानने से पहले 2 बार जरूर सोचेंगे । इज्जतदार और समझदार व्यक्ति तो फानने के बारे में सोचेगा भी नहीं , उसको फानने में शर्म आएगा ।

जगह बचाएगा डीवाईडर

नया वाला डीवाईडर पिछले वाले से कम जगह लेगा , चौड़ाई इसकी कम है । यह अच्छी बात है, क्यूंकि सासाराम में सड़क किनारे जगह की घोर कमी रहती है । अगर डीवाईडर चौड़ा रहेगा तो सड़क पर जगह कम बचेगा और लोगों को परेशानी होगी ।

डीएम के प्रयासों से हो रहा है काम

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पिछले वर्ष चुनाव से पहले जीटी रोड चौड़ीकरण का काम शुरू हुआ था, लेकिन वन विभाग से noc नहीं मिलने के कारण और अन्य विभागीय कारणों से यह कार्य बन्द हो गया था ।

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लेकिन जैसे ही नय डीएम धर्मेंद्र कुमार आए उन्होंने सबसे पहला काम सड़क जाम के उपर किया । ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की संख्या में वृद्धि, सीसीटीवी कैमरा से सेल्फ मॉनिटरिंग, अवैध अतिक्रमण पर सख्ती, बस स्टॉप रूट निर्धारित करना सहित कई स्टेप्स लिए ।

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बन्द जीटी रोड चौड़ीकरण प्रोजेक्ट को पुनः अपने प्रयासों से इंट्रेस्ट लेकर शुरू करवाया । दूसरे विभागों से आ रहे रुकावटों को शॉर्टआउट करने का आदेश दिया और काम शुरू हो गया । हालांकि , दूसरे विभागों के तरफ से अभी भी कई कार्य नहीं किए गए हैं, बहुत सारी कमियां है, हमलोग उसको भी उजागर करेंगे । लेकिन फिर भी सड़क चौड़ीकरण का बड़ा हिस्सा पूरा हो गया और शहर में जरूर राहत मिलेगा ।

डीवाईडर से क्या क्या फायदा होगा

New Divider on Gt Road Sasaram
New Divider on Gt Road Sasaram

डीवाईडर का सबसे ज्यादा फायदा सड़क जाम नियंत्रण में होगा , गाडियां इधर से उधर नहीं होंगी । ऐक्सिडेंट में भी लाभ मिलेगा , क्यूंकि गलत साइड चलने से हमेशा छोटी मोटी टक्करें होती रहती हैं । सुंदरता भी बढ़ेगी शहर की ।

नगर निगम सासाराम से त्रस्त लोगों ने घर बेचने का पोस्टर लगाया । इग्नोर करेंगे तो कल आपका नंबर भी आएगा, इसलिए आगे बढ़ाइए ! Ghar Bechne Ka Poster

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Gandagi Se Ghar Bechne Ka Poster

सालो भर पानी लगे रहने के कारण सासाराम के वार्ड संख्या 6 के नागरिक त्रस्त हो चुके हैं , अगर मोटी भाषा में कहें तो अब पानी सिर से उपर जा चुका है ।

सालो भर पानी लगा रहता है, जीव जंतुओं का है बसेरा

वार्ड संख्या 6 में लगभग 50 घरों में सालो भर पानी लगा रहता है । जिसके चलते विषैले जीव ,जंतु भी अक्सर घरों में आ जाते हैं । कई जगहों पर पानी लगे रहने के कारण काई भी लग चुका है । दुर्गंध आता है ।

बेवस लोगों ने घर बेचने का पोस्टर लगाया

Poster Of House Sell
Poster Of House Sell

सासाराम के वार्ड संख्या 6 के लगभग 70 से 80 लोगों ने वर्षों से चली आ रही जल जलमाव से त्रस्त आ कर घर बेचने का पोस्टर लगाया है ।

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नगर निगम सासाराम में 2 वर्षों से विकास कार्य ठप

नगर परिषद हो या नगर निगम ,सासाराम का नगर निकाय शुरू से ही गंदी राजनीति के भेट चड़ा है । हमेशा कुछ न कुछ विवादों से घिरा रहता है ।

नगर परिषद सासाराम का फिक्स्ड पैटर्न

Ward 6 Gaurakshni, Sasaram
Ward 6 Gaurakshni, Sasaram

अगर आप स्थानीय मुद्दों पर नज़र रखते हैं और आप गौर कीजिएगा तो यह पैटर्न समझ में आ जाएगा । यहां के नगर परिषद का पैटर्न है कि ,यहां के सदस्य 2 -3 खेमों में हमेशा बटें रहते हैं ।

जब भी कोई नया अधिकारी , नया चेयरमैन या नया कर्मचारी आता है तो सभी खेमे मिलकर खुब जोरदार स्वागत करते है, सभी उसको ईमानदार बताते हैं और खुद को महा ईमानदार । हर जगह बहाबाही होती है ।

फिर कुछ दिन बाद सभी खेमे अलग अलग हो जाते हैं , वो एक दूसरे का टांग खिचाई शुरू कर देते हैं , तरह तरह के आरोप प्रत्यारोपों का दौर चलता है । केस होता है , लोग जेल जाते हैं, विभाग का कार्य ठप हो जाता है और सासाराम के नागरिकों का बेड़ा गर्क हो जाता है ।

फिर इसके बाद सभी मिलकर नय सिस्टम को लाते हैं, फिर सभी उसको ईमानदार बताते हैं और खुद को महा ईमानदार , मिल जुल कर उसका भी स्वागत करते हैं । फिर ऊपर के कार्यक्रम चालू हो जाता है , टांग खींचई, केस, काम बंद ।

यह एक पैटर्न हैं , हर बार यही होता है , खेमे भी परमानेंट हैं , विरोध और समर्थन करने वाले लोग लगभग हर बार एक ही होते हैं ।

अभी क्यूं है समस्या ?

नगर निगम सासाराम के चेयरमैन पर केस चल रहा है , इसके कारण नगर निगम का रूटीन बैठक नहीं हो पा रहा है । लोग बैठक करने में इंटरेस्टेड भी नहीं है । क्यूंकि चेयरमैन के नहीं रहने पर , डिप्टी चेयरमैन हैं न ? इनके अध्यक्षता में भी बैठक हो सकता है । फिर भी ये लोग नहीं कर रहे हैं ।

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ईओ और पार्षदों में खींचतान

नगर निगम सासाराम के अधिकारी ( ईओ) और पार्षदों में खींचतान चल रहा है । इन लोगों में आपसी सहमति नहीं बन पाती है , इसका खमियाजा पूरे शहर को भुगतना पड़ रहा है ।

क्या है विवाद का जड़ ?

ईओ का पैसों के प्रति स्पष्ट रुख है , वो बार बार कहते हैं कि, एक भी पैसे कि गड़बड़ी नहीं होने देंगे। मनमाने ढंड से लिमिट से ज्यादा पैसा नहीं निकालने देंगे। ईओ ने चेयरमैन पर पैसों और योजनाओं में गड़बड़ी संबंधित 2 केस भी किया है ।

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जबकि कई सदस्य योजना के लिए संसाधनों कि कमी, सामंजस्य की कमी और जरूरत के हिसाब से पैसों की कमी का आरोप ईओ पर लगाते हैं । अभी कुछ दिनों पहले कई पार्षदों ने डीएम से ईओ की शिकायत भी किया था ।

बैठक नहीं होने से योजनाएं नहीं बन रही और समाधान नहीं हो रहा

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नगर निगम सासाराम का बैठक नहीं होने के कारण पिछले 2 वर्षों से सासाराम में विकास कार्य ठप है । जाहिर सी बात है बैठक नहीं होगा , चर्चा नहीं होगा तो समाधान कैसे निकलेगा ?

बैठक क्यूं है जरूरी ?

जिस तरह संसद के बैठक से देश के लिए और विधानसभा के बैठक से राज्यों के लिए कानून, योजनाएं बनते है , फंड जारी होते है उसी तरह नगर निकाय के बैठक से भी योजनाएं, समस्यायों पर चर्चा और समाधान, और फंड का द्वार खुलता है ।

कब तक सासाराम में विकास कार्य चालू होगा ?

Hell : Ward 6 Gaurakshni, Sasaram

नगर निगम सासाराम के सिस्टम का पुराना पैटर्न देखने पर अभी लंबे समय तक समस्या का परमानेंट समाधान होता नहीं दिख रहा है । हर बार की तरह फिर नया सिस्टम आएगा, 4 महीना बाद टांग खींचाई शुरू होगा , केस होगा , एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगेंगे और काम बंद हो जाएगा ।

स्थाई सॉल्यूशन के लिए 60 % सिस्टम को पूरा पूरी बदलना पड़ेगा , जो कि नागरिकों और सरकार के संयुक्त ईमानदार प्रयासों के बिना संभव नहीं है ।

सासाराम के इस्लाम शाह सुरी ने ग्वालियर से चलाया उत्तर भारत का सल्तनत, शेरशाह सूरी का वंश आगे बढ़ाया | Islam Shah Suri

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Islam Shah Suri
Islam Shah Suri Sasaram

शेरशाह उत्तर भारत के एक बड़े भूभाग के शासक थें । इनका कार्यकाल भी आम जनों के लिए सुखद था , अपने 5 वर्षों के शासन काल में शेरशाह ने अनेकों जन कल्याणकारी कार्य किए थे ।

शेरशाह कि मृत्यु

1545 में राजपूतों के कालिंजर साम्राज्य और किला को हासिल करने के लिए युद्ध के क्रम में चंदेल राजपूतों से लड़ते हुए तोप का गोला वापस लगने के कारण शेरशाह की मृत्यु हो गई थी ।

शेरों के शेर शेरशाह सुरी का मकबरा घूमने से पहले यह जान लिजिए : Click To read

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सलीम शाह सुरी कि ताजपोशी

शेरशाह सूरी के मृत्यु के बाद उनका पुत्र इस्लाम शाह सुरी ( Islam Shah Suri ) उत्तर भारत के गद्दी का उत्तराधिकारी बना । इस्लाम शाह का वास्तविक नाम जलाल खान था । इसका एक और नाम था सलीम शाह सुरी  ( Salim Shah Suri ) । वह शेरशाह सूरी का पुत्र था। उसने आठ वर्ष (1545–1553) उत्तर भारत पर शासन किया।

 

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ग्वालियर किला शेरशाह ने जीता था, इस्लाम शाह के लिए वरदान बना 

Gwalior Fort , Madhya Pradesh
Gwalior Fort , Madhya Pradesh | pic credit : culture trip

सन् 727 ई में सूर्यसेन नामक एक सरदार ने ग्वालियर किला बनवाया था । इस पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया, 989 वर्षों तक पाल वंश ने राज किया , फिर प्रतिहारो ने भी राज किया । मोहम्मद गजनी ने हमला किया लेकिन , हार का सामना करना पड़ा ।

बाद में अन्य कुतुबुद्दीन ऐबक , इल्तुतमिश , महाराजा देवरम, मान सिंह, बाबर ने राज किया । शेरशाह सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को हराकर इस किले को अपने कब्जे में ले लिया था ।

इस्लाम शाह ने दिल्ली कि जगह ग्वालियर को बनाया राजधानी

Gwalior Fort
Gwalior Fort | pic credit : culture trip

पूर्व का जिब्राल्टर कहे जाने वाले अजेय ग्वालियर दुर्ग को देश की राजधानी होने का गौरव भी मिल चुका है । अफगानिस्तान से आए हसन शाह सुरी के पोते और शेर शाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह सुरी ( Islam Shah Suri ) ने लगातार हमलों से सल्तनत को सुरक्षित करने के मकसद से इस अजेय दुर्ग को अपनी राजधानी बनाया था।

दिल्ली का प्रधानमंत्री हेमू को बना दिया था । खुद ग्वालियर से बैठ कर सामरिक योजनाओं का संचालन करने लगा था।हालांकि अपनी अजेय बनावट औऱ सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से ग्वालियर दुर्ग, सातवीं शताब्दी से ही महत्वपूर्ण रहा है । हर बाहरी आक्रमणकारी की महत्वाकांक्षा ग्वालियर दुर्ग पर शासन करने की रहती थी।

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इसकी वजह थी कि, यह दुर्ग भारत क दक्षिण की ओर के युद्ध अभियानों के लिए सुरक्षित ठिकाना माना जाता था। इसीलिए हुमायूं से जहांगीर तक मुगल शासकों ने इस दुर्ग को खास दर्जा दिया था। जहांगीर और हुमायूं ने तो ग्वालियर किले पर कई बार दरबार भी लगाया था।  

इस्लाम शाह सुरी का कार्यकाल | Islam Shah Suri Regime

राजनैतिक स्थिति

  • इस्लाम शाह सुरी को इतिहासकार शेरशाह सूरी से अलग मानते हैं । शेरशाह सूरी को लिबरल और फ्लेक्सिबल और भरोसामंद माना जाता है जबकि इस्लाम शाह इसके उलट क्रूर, कट्टर सांप्रदायिक,अड़ियल था ।
  • शेरशाह ने मात्र 5 साल में बहुत सारे विकास के कार्य किए, जबकि इस्लाम शाह 8 वर्षों में भी कुछ ऐसा जन कल्याणकारी कार्य नहीं किया जिसको याद किया जा सके ।
  • इस्लाम शाह सुरी दुश्मनों के प्रति कठोर तथा क्रूर था ।
  • अगर इस्लाम शाह जीवित रहता ( मृत्यु आगे पढ़ेंगे) तो हुमायूं कभी भी उत्तर भारत पर हमले कि हिम्मत नहीं करता और मुगल साम्राज्य दोबारा वापसी नहीं करता ।

भारत का वो बादशाह , जिसके डर से हुमायूँ 15 साल बाहर रहा हिंदुस्तान से : CLICK TO READ

सामाजिक स्थिति

  • शेरशाह सूरी का बनाया हुआ सामाजिक ताना बाना इस्लाम शाह सुरी के समय थोडा कमजोर हो गया , फिर भी अधिकांस मुगलों या अंग्रेजो से ठीक था ।
  • शेरशाह ने हिन्दुओं ( बौद्ध+ सिक्ख+जैन+ हिन्दू तब एक ही माने जाते थे, आजादी के बाद अलग धर्म का दर्जा मिला, लेकिन शादी के कानून अभी भी एक ही है “हिन्दू मैरिज एक्ट”) से लिया जाने वाला जजिया टैक्स नहीं हटाया था, इस्लाम शाह ने भी जारी रखा । हालंकि कहा जाता है कि, शेरशाह और कुछ दिन राजा रहता तो जजिया को हटा लेते ।

क्या जजिया और जकात एक ही है ?

  • नहीं, जकात इस्लाम में दान दक्षिणा की तरह अच्छी चीज है , जो स्वेक्षा से दिया जाता है और यह धार्मिक रिवाज है, इसका धार्मिक महत्व भी है, इसे समाज के भले में लगाया जाता है , जैसे हिन्दुओं में दान दक्षिणा का महत्व है ।
  • जबकि, जजिया हिन्दुओं से धार्मिक आधार पर लिया जाने वाला जबरदस्ती टैक्स था, स्वैक्षिक नहीं था, और यह सरकार लेती थी ।
  • अकबर ने इसे कुछ वर्षों के लिए ख़तम कर दिया था, लेकिन बाद में पुनः लागू हो गया ।
  • शेरशाह सूरी ने देश के विकास के लिए बहुत कुछ किया, इस्लाम शाह इसमें पीछे रह गया ।
  • इस्लाम शाह भले ही शेरशाह जैसा नहीं था, लेकिन बाबर,औरंगजेब जैसे मुगल आक्रांताओं या अंग्रेजो से ठीक था, उसने धार्मिक स्थल नहीं तोड़े और बहुत हद तक शेरशाह के सुरी सम्राज्य को सुरक्षित भी रखा और धार्मिक तौर पर कट्टर रहते हुए बहुत हद तक मिला जुला कर चलने का कोशिश किया ( उसने हेमू को प्रधानमंत्री बनाया ), हो सकता था कि धीरे धीरे अनुभव बढ़ते तो व्यवहार में अंतर आता ।

आर्थिक स्थिति 

Islam Shah Suri Coin
Islam Shah Suri Coin | credit wikipedia
  • इस्लाम शाह सुरी के समय अर्थव्यवस्था नॉर्मल था ।
  • शेरशाह के कार्यकाल कि तरह अर्थव्यवस्था का तेज रफ्तार विकास इस्लाम शाह सुरी के समय नहीं था । जैसा शेरशाह छोड़ कर गया था, वैसा ही था ।
  • इस्लाम शाह सुरी ने का अर्थव्यवस्था के मामले में कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं किया जैसा इसके पिता शेरशाह सूरी ने किया था ।

इस्लाम शाह सुरी कि मृत्यु

इस्लाम शाह सुरी पर ग्वालियर के इतिहास लेखक हरिहर निवास द्विवेदी के मुताबिक किसी खतरनाक बीमारी से इस्लाम शाह की मौत के बाद उसका पुत्र फिरोज शाह शासक बना, लेकिन असल बागडोर हेमू के हाथ में आ गया ।

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इस्लाम शाह सुरी के बेटे फिरोज शाह सुरी का कत्ल  

सलीम शाह सुरी ( Islam Shah Suri ) के मृत्यु के बाद फिरोज शाह सुरी के गद्दी पर बैठने के कुछ ही दिन बाद शेरशाह सुरी के भतीजे मुहम्मद मुबरीज़ द्वारा फिरोज शाह सुरी ( शेरशाह सूरी का पोता ) को मौत के घाट उतार दिया गया, एवं मुबरीज़ ने मुहम्मद शाह आदिल के नाम से शासन किया।

इस्लाम शाह सुरी का मकबरा 

इस्लाम शाह सूरी का मक़बरा,सासाराम
इस्लाम शाह सूरी का मक़बरा,सासाराम | pc : syed slatamash

बिहार के सासाराम में तकिया मुहल्ले में इस्लाम शाह का अर्धनिर्मित मक़बरा मौजूद है । यह मकबरा इस्लाम शाह सुरी अपने लिए बनवा रहा था , लेकिन उसके जीवन काल में पूर्ण नहीं हो सका ।

islam shah suri tomb ,takiya ,sasaram
islam shah suri tomb ,takiya ,sasaram | pc syed altamash

इस्लाम शाह सुरी के बेटे फिरोज शाह सुरी का भी कार्यकाल बहुत कम समय के लिए रहा और उम्र भी उसकी कम थी,

Islam shah suri Rauza , sasaram Bihar
Islam shah suri Rauza , sasaram Bihar | pc syed altamsh

इसलिए वह भी इस मकबरे का निर्माण पूर्ण कराने में सफल नहीं रहा । इसलिए यह मक़बरा अर्धनिर्मित स्थिति में ही रह गया ।

इस्लाम शाह सुरी का कब्र 

Grave Yard In Islam Shah Tomb : इस्लाम शाह सूरी के मकबरा में खुले में दफनाया गया शव ,बादशाह इस्लाम शाह सूरी का नहीं हैं । यह स्थानीय या अन्य लोगों का है

इस्लाम शाह के मकबरा ,तकिया ,सासाराम में खुले में दफनाया गया शव ,बादशाह इस्लाम शाह का नहीं हैं , यह स्थानीय या अन्य लोगों का है ।

Islam Shah Suri Tomb Sasaram ,India
Islam Shah Suri Tomb Sasaram ,India | pc : syed altamash

इस्लाम शाह सुरी अपने जीवन काल में निर्माणाधीन मक़बरा को पूर्ण नहीं करा सका था l

SherShah Suri Tomb Sasaram Bihar
SherShah Suri Tomb Sasaram Bihar : Grave Yards Of His Family is Present inside | PC : ARJUN MEHTA – Pixjun

इसलिए इस्लाम शाह (Islam Shah Suri) को शेरशाह सुरी के मकबरा में ही दफ़न किया गया है । इस मकबरे में शेरशाह का लगभग पूरा परिवार मौजूद है ।

अपिल 

सुरीवंश के दूसरे बादशाह और सासाराम के लाल इस्लाम शाह सुरी के सम्मान में यह पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें , ताकि हमारी युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों और इतिहास को जान सके और सरकार इस्लाम शाह सुरी के मकबरे को नष्ट होने से बचाए तथा संरक्षित करे तथा पर्यटन को बढ़ावा दे ।

मिशाल : आर्थिक तंगी से घर पर रह कर बने अधिकारी, तो कोई नौकरी करते हुए भी निकाल लिया BPSC 2021 Result

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BPSC 2021 Result

अंशु कुमार : घर की आर्थिक तंगी के कारण घर पर ही रह कर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने का लिया निर्णय ।

64th BPSC Sasaram Rohtas
Anshu Kumar

BPSC 2021 Result : अगर मन में दृढ इच्छा हो तो घर पर ही रहकर सफलता हासिल कर सकते हैं। उक्त बातें कहना है 64 वी बीपीएससी में सफल हुए अंशु कुमार का। बता दें कि अंशु कुमार ने ग्रामीण प्रवेश में रह कर अपने जिले में ही बीपीएससी की तैयारी किया और सफल भी हुए ।

अंशु कुमार सासाराम अनुमंडल के करगहर प्रखण्ड के ग्राम रामपुर के रहने वाले हैं। इनकी प्रारंभिक पढ़ाई इसी जिले से शुरू हुई और स्नातक भी उन्होंने यहीं से पूरा किया। उसके बाद वर्ष 2014 से ही सिविल सर्विसेज की तैयारी में लग गए।

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हालांकि उन्हें तीन बार असफलता भी हाथ लगी बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और अंततः चौथी बार में 64 वी बिहार लोक सेवा आयोग में सफलता हासिल किया और प्रखंड अनुसूचित जाति/ जनजाति कल्याण पदाधिकारी के पद पर काबिज हो गए।

अंशु एक गरीब परिवार से संबंध रखते हैं जिनके पिता भैयाराम कुमार एक छोटे किसान हैं और उनकी माता किरण देवी आंगनवाड़ी सेविका है। अंशु कुमार बताते हैं कि सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वो बाहर जा कर किसी अच्छे कोचिंग से शिक्षा प्राप्त कर सकें ।

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उनके माता-पिता उन्हें पढ़ाने में असमर्थ थे, तो वो अपने घर पर रह कर ही सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे। अपने गांव से सासाराम आकर कोचिंग करते थे और बाकी समय अपने घर में रहकर पढ़ाई करते थे।

कृष्ण कांत BPSC 2021 Result

64th-BPSC Sasaram Rohtas Bihar
Krishna Kant

नगर निगम सासाराम अन्तर्गत अगरेड़ के पास स्थित महावीरगंज गांव के कृष्ण कांत निवासी हैं । सरयू चौधरी और सुधरा देवी के सुपुत्र हैं । इन्होंने जवाहर नवोदय विद्यालय, बारूण से इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरा किया है , उसके बाद गाजियाबाद के आईएमर कॉलेज से इंजीनियरिंग किया ।

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कृष्ण ने दूसरे प्रयास में बीपीएससी परीक्षा में सफलता प्राप्त किया है। बीपीएससी से आपूर्ति निरीक्षक अधिकारी बने है । कृष्ण कहते हैं की , सफलता का मूल मंत्र “कड़ी मेहनत और लक्ष्य प्राप्ति तक निरंतर प्रयास करना है” ।

राहुल शंकर BPSC 2021 Result

64th-BPSC Sasaram Rohtas india
Rahul Shankar

अब बात हमारे सुपर सीनियर की…. डीएवी सासाराम में हमारे सुपर सीनियर रहे राहुल शंकर की । शंकर परिवार में जन्म लिए राहुल शंकर अपनी सफलता का क्रेडिट महादेव यानी भगवान शंकर को देते हैं । श्री हरि शंकर और श्रीमती रीता शंकर के सुपुत्र हैं राहुल शंकर ।

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स्थानीय डीएवी पब्लिक स्कूल सासाराम से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करके भारत के सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले राहुल शंकर नौकरी के बाद भी पढ़ाई में लगे रहें । पढ़ने लिखने के शौकीन राहुल सोशल मीडिया पर हमेशा अपने विचार प्रकट करते रहते हैं , जो कि प्रेरणादायक होती हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली से , लॉ फैकल्टी से राहुल शंकर ने ग्रेजुएशन किया है । 64 वें बीपीएससी परीक्षा में इन्होंने 263 रैंक प्राप्त किया है और अब ये सर्किल ऑफिसर यानी सीओ साहब बन जाएंगे ।

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आपको बताते चलें कि बीपीएससी से पहले राहुल शंकर आईएएस के इंटरव्यू राउंड तक पहुंच चुके थे, लेकिन कुछ अंको के फासले से सफलता इन्हे छू कर निकल गई थी ।

राहुल शंकर ने नौकरी मिलने के बाद भी पढ़ाई और प्रयास जारी रखने का निर्णय लिया है । फिलहाल ये बिहार प्रॉसिक्यूशन सर्विसेज का मेंस दे रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में प्रैक्टिसनर भी हैं ।

Sasaram Ki Galiyan पर 64 वीं बीपीएससी परीक्षा में सफल सासाराम के अन्य छात्रों कि सफलता कि कहानियां डाले गए हैं । उनके बारे में जानने के लिए हमारा फेसबुक पेज विजिट करें और 2- 3 दिन पुराने पोस्ट देखें । इन अधिकारियों का हौसला बढ़ाने के लिए पोस्ट शेयर करना नहीं भूलें ।

सासाराम के युवाओं का BPSC में जलवा बरकरार , कोई बना SDO तो कोई रेवेन्यू अधिकारी तो कोई सप्लाई इंस्पेक्टर | 64th BPSC Sasaram

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64th BPSC Sasaram
64th BPSC Sasaram Result

बिहार में प्रतिभाओं की बात करें और सासाराम का जिक्र ना करें तो यह बेईमानी होगी। जिले के युवाओं ने सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है। रविवार की शाम आए 64 वी बिहार लोक सेवा आयोग की फाइनल रिजल्ट में सासाराम के कई युवाओं ने अपने काबिलियत का लोहा मनवाया और सफलता हासिल किया ।

ब्रजेश कुमार बने रेवेन्यू ऑफिसर  | 64th BPSC Sasaram

Revenue OfficerBrajesh Kumar
Revenue OfficerBrajesh Kumar | 64th BPSC Sasaram

सासाराम के तकिया मोहल्ला निवासी डॉ कामेश्वर सिंह पंकज के छोटे पुत्र ब्रजेश कुमार ने 64 वी बिहार लोक सेवा आयोग सफलता हासिल करके शहर के साथ जिले का भी नाम रोशन किया है।

बता दें कि ब्रजेश कुमार ने पहली बार में ही यह सफलता हासिल किया है। बृजेश कुमार मध्यम वर्ग के परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता एक होम्योपैथी के चिकित्सक हैं और माता एक गृहिणी है।

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ब्रजेश ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई सासाराम स्थित बाल विकास विद्यालय से किया उसके बाद उन्होंने आईआईटी रुड़की से वर्ष 2017 में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरा किया।

उसके बाद इंजीनियर फील्ड छोड़कर प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना लिए दिल्ली तैयारी करने चले गए। तकरीबन 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने 64 वी बीपीएससी की परीक्षा में शामिल हुए और पहली बार में ही सफलता हासिल करके 461 रैंक लाकर राजस्व अधिकारी बन गए।

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अमरजीत कुमार भी बने सप्लाई इंस्पेक्टर | 64th BPSC Sasaram

Amarjeet Kumar
Amarjeet kumar | 64th BPSC Sasaram

जिला रोहतास के अकोड़ी गोला प्रखंड के शेरपुर गांव निवासी हरेंद्र सिंह और आरती देवी के सुपुत्र अमरजीत कुमार ने 64 वे बीपीएससी परीक्षा में 644 रैंक लाकर जिले का नाम रौशन किया है । इन्होंने सरकारी इंटर कॉलेज, डालमियानगर से इंटर किया है जबकि जेएलएन कॉलेज डेहरी से स्नातक किया ।

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सासाराम के एसपी जैन कॉलेज से इन्होंने परास्नातक किया है। राजनीतिशास्त्र से ये कॉलेज टॉपर भी रहे हैं । 2 बार नीट में भी सफलता प्राप्त कर चुके हैं ।

नरेंद्र कुमार बने अंचलाधिकारी | 64th BPSC Sasaram

    Narendra KumarNarendra kumar 64th BPSC Sasaram

सासाराम अनुमंडल के कथराई गांव निवासी बैजनाथ सिंह के सुपुत्र नरेंद्र सिंह ने भी बीपीएससी में सफलता प्राप्त किया है । इन्होंने कथराई गांव के स्कूल से ही मैट्रिक किया, जबकि गिरीश नारायण मिश्रा कॉलेज परसथुआं से 12 वीं किया ।

आपको बताते चलें कि उन्होंने वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय से पीएचडी किया और नीट परीक्षा भी क्वालीफाई किया है । इस बार के बीपीएससी में 475 रैंक प्राप्त करने वाले नरेंद्र दिल्ली यूनिवर्सिटी के सरस्वती कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर भी थें ।

64 वीं परीक्षा में सासाराम और जिला रोहतास के सभी ज्ञात अज्ञात सफल अभ्यार्थिओं को ” सासाराम कि गलियाँ “ कि ओर से ढेर सारी शुभकामनाऍ  | ईश्वर आपको सच और ईमानदारी की राह पर चल कर देश सेवा करने का शक्ति प्रदान करें  , और आप सासाराम के इस शहीद अधिकारी से प्रेरणा जरूर लीजिये ( शहीद DFO संजय सिंह , **मेरे ऊपर क्लिक कीजिये ) 

सासाराम के शहीद डीएफओ संजय सिंह की दास्तां 20 वर्ष बाद भी रुला देती है । नक्सली और माफिया थर थर कांपते थें । Martyred Dfo Sanjay Singh

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Martyred Dfo Sanjay Singh
Martyred Dfo Sanjay Singh

इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के बहादुर ऑफिसर रहे संजय सिंह की शहादत को 20 वर्ष बीत गए हैं । वह तत्कालीन शाहाबाद वन प्रमंडल के डीएफओ थें । सासाराम में उनका पोस्टिंग था । अब यह रोहतास वन प्रमंडल है ।

लेकिन ये जांबाज अधिकारी आ‍ज भी अधिकारियों, कर्मचारियों और क्षेत्र के नागरिकों के हृदय के केंद्र में बसे हुए हैं । शहीद डीएफओ संजय सिंह ने अपनी कार्य कुशलता की बदौलत कैमूर पहाड़ी के जल, जंगल,जमीन व पहाड़ी की बहुमूल्य कीमत लोगों को समझाई ।

Rohtas Forest Department,Sasaram
Rohtas Forest Department,Sasaram

वे पत्थर व जंगल माफियाओं के जानी दुश्मन माने जाते थे । पत्थर माफिया, खनन माफिया, स्मगलर्स और जंगलों में उत्पात मचाने वाले नक्सलियों के दबाव के आगे नहीं झुके ।

कर्तव्य पथ से कभी विचलित नहीं हुए । ईमानदारी, राष्ट्रभक्ति, मानवता और कर्तव्यनिष्ठा से कभी समझौता नहीं किया । यही वजह है कि शहादत के 20 वर्ष बाद भी डीएफओ संजय सिंह की शहादत कर्मवीरों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है ।

Table of Contents

जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली !!

Shahid Dfo Sanjay Singh Bihar
Shahid DFO Sanjay Singh ( Left Side )

शहीद डीएफओ के पिताजी डॉक्टर घनश्याम सिंह बताते हैं कि श्री संजय सिंह सासाराम के पोस्टेड थें और रूटीन इंस्पेक्शन के लिए कैमूर पहाड़ी के जंगलों में गए थें, तभी पुलिस की वर्दी में हथियारों से लैस नक्सलियों ने उन्हें घेर लिया ।

नक्सलियों ने रोड निर्माण में लेवी मांगा तो एक पैसा देने से इंकार कर दिया ।

नक्सली संगठन सीपीआई एम के एरिया कमांडर निराला यादव ने उस इलाके में हो रहे सड़क निर्माण में कमीशन का मांग किया । ईमानदार संजय सिंह ने नक्सलियों के इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया और एक पैसा भी अवैध रूप से देने से साफ इंकार कर दिया ।

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नक्सलियों ने गरीब विरोधी कहा

सड़क निर्माण में नक्सलियों को लेवी देने से इंकार करने के बाद , नक्सलियों ने उन्हें गरीब विरोधी बताया । अवैध पत्थर खनन पर सरकारी प्रतिबंध से नक्सली खफा थें । नक्सलियों का कहना था कि , इससे गरीबों का रोजगार चला गया।

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संजय सिंह ने गलत और सही फर्क बताया

इन्होंने कहा कि , अवैध खनन को रोका गया है । जंगल, पहाड़ और वातावरण के महत्व के बारे में बताया । अवैध खनन से गरीबों को फायदा नहीं होता, सिर्फ स्मगलर्स , माफियाओं और असामजिक तत्वों को फायदा होता है ।

संजय सिंह ने गरीबों को रोजगार दिया था

संजय सिंह ने नक्सलियों को बताया कि , गरीबों की मदद के लिए लीगल रूप से 14 गावों के ग्रामीणों की टोली बनाकर उन्हें जमीन लीज पर दिया गया है , यहां पर वो लीगल रूप से उत्‍खनन कर सकते हैं ।

यह उत्‍खनन कंट्रोल्ड उत्‍खनन था , यह पर्यावरण को देखते हुए किया जा रहा था ,जिससे जंगल और पर्यावरण को नुक्सान भी नहीं पहुंचे और पत्थर की जरूरतें भी पूरी होती रहें तथा गरीबों को रोजगार भी मिल जाए ।

लेकिन इससे सिर्फ गरीबों को फायदा हो रहा था, बड़े माफियाओं और अपराधियों कि कमर टूट चुकी थी। इसलिए नक्सली, माफिया इनके खिलाफ थें ।

जंगल में यह खबर आग की तरह फैली, और हो गया धुंआ धुंआ !!

जैसे ही यह खबर जंगल में बसे गांवों तक फैली, ग्रामीण अपने हमदर्द अधिकारी कि रक्षा के लिए दौड़े चले आए । परछा गांव के ग्रामीण तो दल बल के साथ पहुंचे थें ।

ग्रामीणों ने नक्सलियों से संजय सिंह को छोड़ने के लिए कि मिन्नतें

नक्सलियों से ग्रामीणों ने ईमानदार और सच्चे अधिकारी संजय सिंह को छोड़ने का प्रार्थना किया । नक्सलियों को ग्रामीण संजय सिंह द्वारा किए गए जन कल्याणकारी कार्यों को बताने लगे ।

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निर्माण, स्कूल निर्माण, सड़क निर्माण जैसे जन कल्याणकारी कार्यों को नक्सलियों के समक्ष रखा । नक्सली नहीं माने, वो और भड़क गए । ग्रामीण भी प्रार्थना ,विनती से थक हार कर अब कमर कसने लगे ।

नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दिया

इन बातों से भड़क कर नक्सलियों ने ग्रामीणों को डराने के लिए गोलियां चलानी शुरू कर दिया ।

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छोड़ेंगे न हम तेरा साथ ,ओ साथी मरते दम तक  !!

ग्रामीणों ने डीएफओ को बचाने की भरपूर कोशिश किय । इसमें महिलाएं सबसे आगे रहीं । जिससे क्रोधित नक्सलियों ने बेल्ट एवं लाठी डंडों से उनकी पिटाई भी किया।

संजय सिंह को बचाने के लिए कुछ समय तक महिलाओं ने नक्सलियों से मुकाबला भी किया था, लेकिन संजय सिंह के कहने पर उन्हें अपना पांव पीछे खींचना पड़ा था ।

नक्सलियों ने डीएफओ के बॉडीगार्ड पर किया हमला

नक्सलियों ने संजय सिंह के बॉडीगार्ड पर जैसे ही हमला किया, संजय सिंह ने नक्सलियों से बॉडीगार्ड को छोड़ देने को कहा । उन्होंने कहा कि बॉडीगार्ड बेचारा सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा है ।

अब आई रुला देने वाली शहादत की बेला !!

Rehal Rohtas ,MartyrSanjai Singh DFO
रेहल रोहतास : शहीद डीएफओ संजय सिंह की शहादत स्थली

नक्सलियों ने संजय सिंह को हैंड्स अप करने को कहा । फिर उन्हें अन्य स्थान पर अकेले ले जाने लगे , अन्य वन विभाग के अधिकारियों को वहीं पर रोक लिया गया ।

पढ़ने से पहले कलेजे पर पत्थर रख लीजिए

DFO Sanjay singh Martyr Spot Rehal Rohtas
शहादत स्थल : रेहल गांव के इसी जगह पर नक्सलियों ने शहीद किया था संजय सिंह को

15 फरवरी 2002 को रोहतास जिले के नौहट्टा प्रखंड के कैमूर पहाड़ी पर बसे रेहल गांव में संजय सिंह को अकेले ले जा कर नक्सलियों ने उनके शरीर पर बेरहमी से तबातोड़ 9 गोलियां दाग दिए । संजय सिंह की स्पॉट मृत्यु हो गई ।

सासाराम में आसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा !!

अगले दिन, डीएफओ संजय सिंह की शहादत की खबर जैसे ही जिला मुख्यालय सासाराम में पहुंची , सड़कों पर जन सैलाब उमड़ पड़ा । उग्र प्रदर्शन भी शुरू हो गए । इस तरह की घटना  सासाराम में पहली हुआ बार हुई थी  , जब नागरिक किसी अधिकारी के गम में इस कदर भड़क उठे थें  | 

Martyred DFO Sanjay singh Sasaram,Rohtas,Bihar
Martyred DFO Sanjay singh Sasaram,Rohtas

लोगों ने सड़क जाम कर दिया , रेलवे पटरियों पर बैठ गए , सड़क और रेल मार्ग को पूरी तरह से ठप कर दिया गया । स्कूलों और कॉलेजों के बच्चों ने भी सासाराम शहर में पैदल मार्च करके अपने हीरो शहीद संजय सिंह को श्रद्धांजलि दिया ।

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान !!

शहीद संजय सिंह (Martyred Dfo Sanjay Singh) की शहादत की खबर अब राष्ट्रीय पटल पर छा चुका था । सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सॉलिसिटर जनरल को एमिकस क्यूरी के रूप में इस केस में कार्य करने का हुक्म दिया ।

15 वर्ष बाद मिला आंशिक न्याय

शहादत के 15 वर्ष बाद सासाराम के स्पेशल कोर्ट ने संजय सिंह के शहादत में शामिल 5 नक्सलियों को उम्रकैद की सजा सुनाई । दर्जनों नक्सलियों पर अभी ट्रायल चल रहा है ।

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बांकी निशां होगा !!

संजय सिंह के शहादत के बाद उनके नाम पर “शहीद संजय सिंह मेमोरियल ट्रस्ट” का गठन हुआ । यह संस्था पर्यावरण सुरक्षा , गरीबी उन्मूलन , गरीबों को शिक्षा के उपर काम करती है ।

Shahid Sanjay Singh Mahila College ,Bhabhua
Shahid Sanjay Singh Mahila College ,Bhabhua (Kaimur)

जिलेवासियों के भारी मांग और दबाव पर सरकार ने एक सरकारी कॉलेज का नाम शहीद संजय सिंह के नाम पर किया । यह कॉलेज “शहीद संजय सिंह महिला महाविद्यालय ,भभुआ ” है ।

IGNFA Programe in Respect Of DFO Sanjay Singh
IGNFA Programe in Respect Of DFO Sanjay Singh | Pic Credit : IGNFA

वर्तमान में भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों के लिए एक स्टाफ कॉलेज के रूप में कार्य कर रहे इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय वन अकादमी ( IGNFA ) में हर वर्ष संजय सिंह के सम्मान में एक सभा का आयोजन होता है ।

अधिकारियों को विशेष कार्य करने पर देने के लिए संजय सिंह मेमोरियल गोल्ड मेडल पुरस्कार भी बनाया गया ।

परिजनों ने संजय सिंह के सभी मेडल दान कर दिए

शहीद संजय सिंह के परिवार ने शहादत के बाद उनके द्वारा अर्जित किए गए सभी मेडल इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय वन अकादमी (IGNFA ) को दान कर दिए । यह कदम भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने के उद्देश्य से उठाया गया था । इन पुरस्कारों को देख कर ट्रेनिंग के दौरान अधिकारी कर्तव्य पथ पर इमानदारी और बहादुरी से चलने की प्रेरणा लेते हैं ।

आज भी संजय सिंह को याद कर रोते हैं हमारे लोग !!

Martyred Dfo Sanjay Singh Bihar, india
शहीद संजय सिंह नक्सलियों व माफियाओं के जानी दुश्मन माने जाते थे । जांबाज अधिकारी आ‍ज भी नागरिकों के हृदय के केंद्र में बसे हुए हैं । 15 फरवरी 2002 को रेहल गांव में संजय सिंह को नक्सलियों ने उनके शरीर पर बेरहमी से तबातोड़ 9 गोलियां दाग कर शहीद कर दिया

ग्रामीण उस दिन को जब भी याद करते हैं, तो आसुओं से उनकी आंखे भर जाती हैं । रेहल के लोग बताते हैं कि हम सभी ग्रामीण संजय सिंह की जिंदगी की भीख नक्सलियों से बार बार मांगते रहे, उनका पीछा भी किया । पर नक्सलियों हमारी एक नहीं सुनी ।

Dfo sanjay Singh sasaram With Family शहीद संजय सिंह नक्सलियों व माफियाओं के जानी दुश्मन माने जाते थे । जांबाज अधिकारी आ‍ज भी नागरिकों के हृदय के केंद्र में बसे हुए हैं । 15 फरवरी 2002 को रेहल गांव में संजय सिंह को नक्सलियों ने उनके शरीर पर बेरहमी से तबातोड़ 9 गोलियां दाग कर शहीद कर दिया
Dfo sanjay Singh sasaram With Family

गांव की दर्जनभर महिलाओं ने जान हथेली पर रखकर नक्सलियों से “दो दो हांथ” भी किया । जिससे क्रोधित नक्सलियों ने बेल्ट एवं लाठी डंडों से उनकी पिटाई भी किया। जिस जगह पर साहब की हत्या हुई, वह शहादत स्थल हमारे लिए पूजनीय है ।

अपील : “एक ईमानदार आदमी को अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है, जिसने सच कह दिया उसका बुरा हाल क्यों है” !!

सासाराम के शहीद डीएफओ संजय सिंह की दास्तां 20 वर्ष बाद भी रुला देती है । नक्सली और माफिया थर थर कांपते थें । Martyred Dfo Sanjay Singh
Martyred Dfo Sanjay Singh, sasaram

4 घंटो में 51,00 शब्दों में लिखे गए इस प्रेरणादाई खबर को कृपया अधिक से अधिक शेयर कीजिए, ताकि आज की युवा पीढ़ी संजय सिंह जैसे बहादुर ऑफिसर से प्रेरणा ले सके और सासाराम के बहुत सारे लोग इनके बारे में नहीं जानते हैं वो भी जान सकें ।

अगर इस खबर पर पब्लिक रिस्पॉन्स अच्छा रहा तो “Sasaram Ki Galiyan” आपके लिए पार्ट 2 भी लेकर आएगा । शहीद डीएफओ संजय सिंह के विचारों और जज्बे को बच्चे बच्चे तक पहुंचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

वाह : पिता की याद में नीलेश जी ने सासाराम को 7 ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर किया दान | 7 Oxygen Concentrators Sasaram

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7 Oxygen Concentrators Sasaram

7 Oxygen Concentrators Sasaram : आज दिनांक 4 जून को सासाराम निवासी स्वर्गीय अशोक कुमार सिंह(सस्ता खादी भंडार) एवम डॉ आशा सिंह के सुपुत्र निलेश कुमार ने कोविड 19 के इलाज में सहयोग हेतु जिले में ऑक्सीजन की उपलब्धता की स्थिति को देखते हुए अपने स्वर्गीय पिता की याद में 7 ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर सदर अस्पताल को दान दिया ।

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नीलेश अमेरिका में कार्यरत हैं 

सासाराम को 7 ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर देने वाले नीलेश सिंह वर्तमान में बोस्टन,अमेरिका में कार्यरत हैं ।

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क्या होता है ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर | 7 Oxygen Concentrators Sasaram

ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर एक पोर्टेबल मशीन है जिससे पहले हवा को खींचा जाता है । इसके बाद इस हवा से नाइट्रोजन, कार्बन सहित अन्य गैसों को बाहर निकाल दिया जाता है और नजल ट्यूब या मास्क के जरिए शुद्ध ऑक्सीजन की सप्लाई की जाती है । यह पूरी प्रक्रिया साथ-साथ चलती है ।

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2 तरह के होते हैं ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर

ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर दो तरह के होते हैं । एक लगातार फ्लो वाला कंसेंट्रेटर दूसरा पल्स वाला कंसेंट्रेटर । लगातार बहाव वाले कंसेंट्रेटर को जब तक बंद नहीं किया जाए तब तक एक ही फ्लो में ऑक्सीजन की सप्लाई करता रहता है,

जबकि पल्स वाला कंसेंट्रेटर मरीज के ब्रीदिंग पैटर्न को समझकर जितनी जरूरत होती है, उतनी ही ऑक्सीजन की सप्लाई करता है । ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर पोर्टेबल होता है, इसलिए ऑक्सीजन सिलेंडर के मुकाबले कहीं भी ले जाने में आसानी होती है ।

नीलेश के पिता जी का हाल ही में निधन हुआ था 

ज्ञातव्य हो कि 23 अप्रैल को उनके पिता की असामयिक मृत्यु हो गई थी। उक्त अवसर पर जिला पदाधिकारी,सिविल सर्जन,डॉ श्री भगवान सिंह,डॉ के एन तिवारी,उनके बड़े भाई राजीव कुमार सिंह सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

7 Oxygen Concentrators donation in Sasaram
Oxygen Concentrators donation

इसके पूर्व 23 अप्रैल को इन्हें विभागीय पत्र भी प्राप्त हुआ था जिसमें जिला स्वास्थ्य समिति ने इनकी इच्छा का आदर करते हुए अपनी स्वीकृति भी दी थी ।

सिटीजन रिपोर्टर : ब्रजेश कुमार ( पूर्व पत्रकार दैनिक भास्कर एवं दैनिक जागरण )

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