इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के बहादुर ऑफिसर रहे संजय सिंह की शहादत को 20 वर्ष बीत गए हैं । वह तत्कालीन शाहाबाद वन प्रमंडल के डीएफओ थें । सासाराम में उनका पोस्टिंग था । अब यह रोहतास वन प्रमंडल है ।
लेकिन ये जांबाज अधिकारी आज भी अधिकारियों, कर्मचारियों और क्षेत्र के नागरिकों के हृदय के केंद्र में बसे हुए हैं । शहीद डीएफओ संजय सिंह ने अपनी कार्य कुशलता की बदौलत कैमूर पहाड़ी के जल, जंगल,जमीन व पहाड़ी की बहुमूल्य कीमत लोगों को समझाई ।

वे पत्थर व जंगल माफियाओं के जानी दुश्मन माने जाते थे । पत्थर माफिया, खनन माफिया, स्मगलर्स और जंगलों में उत्पात मचाने वाले नक्सलियों के दबाव के आगे नहीं झुके ।
कर्तव्य पथ से कभी विचलित नहीं हुए । ईमानदारी, राष्ट्रभक्ति, मानवता और कर्तव्यनिष्ठा से कभी समझौता नहीं किया । यही वजह है कि शहादत के 20 वर्ष बाद भी डीएफओ संजय सिंह की शहादत कर्मवीरों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है ।
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जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली !!

शहीद डीएफओ के पिताजी डॉक्टर घनश्याम सिंह बताते हैं कि श्री संजय सिंह सासाराम के पोस्टेड थें और रूटीन इंस्पेक्शन के लिए कैमूर पहाड़ी के जंगलों में गए थें, तभी पुलिस की वर्दी में हथियारों से लैस नक्सलियों ने उन्हें घेर लिया ।
नक्सलियों ने रोड निर्माण में लेवी मांगा तो एक पैसा देने से इंकार कर दिया ।
नक्सली संगठन सीपीआई एम के एरिया कमांडर निराला यादव ने उस इलाके में हो रहे सड़क निर्माण में कमीशन का मांग किया । ईमानदार संजय सिंह ने नक्सलियों के इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया और एक पैसा भी अवैध रूप से देने से साफ इंकार कर दिया ।


नक्सलियों ने गरीब विरोधी कहा
सड़क निर्माण में नक्सलियों को लेवी देने से इंकार करने के बाद , नक्सलियों ने उन्हें गरीब विरोधी बताया । अवैध पत्थर खनन पर सरकारी प्रतिबंध से नक्सली खफा थें । नक्सलियों का कहना था कि , इससे गरीबों का रोजगार चला गया।

संजय सिंह ने गलत और सही फर्क बताया
इन्होंने कहा कि , अवैध खनन को रोका गया है । जंगल, पहाड़ और वातावरण के महत्व के बारे में बताया । अवैध खनन से गरीबों को फायदा नहीं होता, सिर्फ स्मगलर्स , माफियाओं और असामजिक तत्वों को फायदा होता है ।
संजय सिंह ने गरीबों को रोजगार दिया था
संजय सिंह ने नक्सलियों को बताया कि , गरीबों की मदद के लिए लीगल रूप से 14 गावों के ग्रामीणों की टोली बनाकर उन्हें जमीन लीज पर दिया गया है , यहां पर वो लीगल रूप से उत्खनन कर सकते हैं ।
यह उत्खनन कंट्रोल्ड उत्खनन था , यह पर्यावरण को देखते हुए किया जा रहा था ,जिससे जंगल और पर्यावरण को नुक्सान भी नहीं पहुंचे और पत्थर की जरूरतें भी पूरी होती रहें तथा गरीबों को रोजगार भी मिल जाए ।
लेकिन इससे सिर्फ गरीबों को फायदा हो रहा था, बड़े माफियाओं और अपराधियों कि कमर टूट चुकी थी। इसलिए नक्सली, माफिया इनके खिलाफ थें ।
जंगल में यह खबर आग की तरह फैली, और हो गया धुंआ धुंआ !!
जैसे ही यह खबर जंगल में बसे गांवों तक फैली, ग्रामीण अपने हमदर्द अधिकारी कि रक्षा के लिए दौड़े चले आए । परछा गांव के ग्रामीण तो दल बल के साथ पहुंचे थें ।
ग्रामीणों ने नक्सलियों से संजय सिंह को छोड़ने के लिए कि मिन्नतें
नक्सलियों से ग्रामीणों ने ईमानदार और सच्चे अधिकारी संजय सिंह को छोड़ने का प्रार्थना किया । नक्सलियों को ग्रामीण संजय सिंह द्वारा किए गए जन कल्याणकारी कार्यों को बताने लगे ।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र निर्माण, स्कूल निर्माण, सड़क निर्माण जैसे जन कल्याणकारी कार्यों को नक्सलियों के समक्ष रखा । नक्सली नहीं माने, वो और भड़क गए । ग्रामीण भी प्रार्थना ,विनती से थक हार कर अब कमर कसने लगे ।
नक्सलियों ने फायरिंग शुरू कर दिया
इन बातों से भड़क कर नक्सलियों ने ग्रामीणों को डराने के लिए गोलियां चलानी शुरू कर दिया ।


छोड़ेंगे न हम तेरा साथ ,ओ साथी मरते दम तक !!
ग्रामीणों ने डीएफओ को बचाने की भरपूर कोशिश किय । इसमें महिलाएं सबसे आगे रहीं । जिससे क्रोधित नक्सलियों ने बेल्ट एवं लाठी डंडों से उनकी पिटाई भी किया।
संजय सिंह को बचाने के लिए कुछ समय तक महिलाओं ने नक्सलियों से मुकाबला भी किया था, लेकिन संजय सिंह के कहने पर उन्हें अपना पांव पीछे खींचना पड़ा था ।
नक्सलियों ने डीएफओ के बॉडीगार्ड पर किया हमला
नक्सलियों ने संजय सिंह के बॉडीगार्ड पर जैसे ही हमला किया, संजय सिंह ने नक्सलियों से बॉडीगार्ड को छोड़ देने को कहा । उन्होंने कहा कि बॉडीगार्ड बेचारा सिर्फ अपनी ड्यूटी कर रहा है ।
अब आई रुला देने वाली शहादत की बेला !!

नक्सलियों ने संजय सिंह को हैंड्स अप करने को कहा । फिर उन्हें अन्य स्थान पर अकेले ले जाने लगे , अन्य वन विभाग के अधिकारियों को वहीं पर रोक लिया गया ।
पढ़ने से पहले कलेजे पर पत्थर रख लीजिए

15 फरवरी 2002 को रोहतास जिले के नौहट्टा प्रखंड के कैमूर पहाड़ी पर बसे रेहल गांव में संजय सिंह को अकेले ले जा कर नक्सलियों ने उनके शरीर पर बेरहमी से तबातोड़ 9 गोलियां दाग दिए । संजय सिंह की स्पॉट मृत्यु हो गई ।
सासाराम में आसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा !!
अगले दिन, डीएफओ संजय सिंह की शहादत की खबर जैसे ही जिला मुख्यालय सासाराम में पहुंची , सड़कों पर जन सैलाब उमड़ पड़ा । उग्र प्रदर्शन भी शुरू हो गए । इस तरह की घटना सासाराम में पहली हुआ बार हुई थी , जब नागरिक किसी अधिकारी के गम में इस कदर भड़क उठे थें |

लोगों ने सड़क जाम कर दिया , रेलवे पटरियों पर बैठ गए , सड़क और रेल मार्ग को पूरी तरह से ठप कर दिया गया । स्कूलों और कॉलेजों के बच्चों ने भी सासाराम शहर में पैदल मार्च करके अपने हीरो शहीद संजय सिंह को श्रद्धांजलि दिया ।
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान !!
शहीद संजय सिंह (Martyred Dfo Sanjay Singh) की शहादत की खबर अब राष्ट्रीय पटल पर छा चुका था । सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सॉलिसिटर जनरल को एमिकस क्यूरी के रूप में इस केस में कार्य करने का हुक्म दिया ।
15 वर्ष बाद मिला आंशिक न्याय
शहादत के 15 वर्ष बाद सासाराम के स्पेशल कोर्ट ने संजय सिंह के शहादत में शामिल 5 नक्सलियों को उम्रकैद की सजा सुनाई । दर्जनों नक्सलियों पर अभी ट्रायल चल रहा है ।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बांकी निशां होगा !!
संजय सिंह के शहादत के बाद उनके नाम पर “शहीद संजय सिंह मेमोरियल ट्रस्ट” का गठन हुआ । यह संस्था पर्यावरण सुरक्षा , गरीबी उन्मूलन , गरीबों को शिक्षा के उपर काम करती है ।

जिलेवासियों के भारी मांग और दबाव पर सरकार ने एक सरकारी कॉलेज का नाम शहीद संजय सिंह के नाम पर किया । यह कॉलेज “शहीद संजय सिंह महिला महाविद्यालय ,भभुआ ” है ।

वर्तमान में भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों के लिए एक स्टाफ कॉलेज के रूप में कार्य कर रहे इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय वन अकादमी ( IGNFA ) में हर वर्ष संजय सिंह के सम्मान में एक सभा का आयोजन होता है ।
अधिकारियों को विशेष कार्य करने पर देने के लिए संजय सिंह मेमोरियल गोल्ड मेडल पुरस्कार भी बनाया गया ।
परिजनों ने संजय सिंह के सभी मेडल दान कर दिए
शहीद संजय सिंह के परिवार ने शहादत के बाद उनके द्वारा अर्जित किए गए सभी मेडल इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय वन अकादमी (IGNFA ) को दान कर दिए । यह कदम भावी पीढ़ियों को प्रेरणा देने के उद्देश्य से उठाया गया था । इन पुरस्कारों को देख कर ट्रेनिंग के दौरान अधिकारी कर्तव्य पथ पर इमानदारी और बहादुरी से चलने की प्रेरणा लेते हैं ।
आज भी संजय सिंह को याद कर रोते हैं हमारे लोग !!

ग्रामीण उस दिन को जब भी याद करते हैं, तो आसुओं से उनकी आंखे भर जाती हैं । रेहल के लोग बताते हैं कि हम सभी ग्रामीण संजय सिंह की जिंदगी की भीख नक्सलियों से बार बार मांगते रहे, उनका पीछा भी किया । पर नक्सलियों हमारी एक नहीं सुनी ।

गांव की दर्जनभर महिलाओं ने जान हथेली पर रखकर नक्सलियों से “दो दो हांथ” भी किया । जिससे क्रोधित नक्सलियों ने बेल्ट एवं लाठी डंडों से उनकी पिटाई भी किया। जिस जगह पर साहब की हत्या हुई, वह शहादत स्थल हमारे लिए पूजनीय है ।
अपील : “एक ईमानदार आदमी को अपनी ईमानदारी का मलाल क्यों है, जिसने सच कह दिया उसका बुरा हाल क्यों है” !!

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अगर इस खबर पर पब्लिक रिस्पॉन्स अच्छा रहा तो “Sasaram Ki Galiyan” आपके लिए पार्ट 2 भी लेकर आएगा । शहीद डीएफओ संजय सिंह के विचारों और जज्बे को बच्चे बच्चे तक पहुंचाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।