बक्सर जिला पूर्वी उत्तर प्रदेश सीमा के किनारे भारत के पूर्वी राज्य बिहार का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है जो कि मध्यकाल में बक्सर की लड़ाई और हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा की लड़ाई के लिए दुनिया भर में मशहूर हुआ था ।
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पौराणिक सनातन संस्कृति के गर्भ में चौसा
महरिष च्यवन मुनि से चौसा का पुराना रिश्ता रहा है, इन्हीं के नाम पर इसका नामकरण चौसा हुआ था । चौसा का इलाका गंगा नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा कस्बा है ।
मध्यकाल में चौसा युद्ध दुनिया भर में मशहूर
27 जून 1539 ई. को चौसा में हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में आक्रांता हुमायूँ बुरी तरह पराजित हुआ और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। वह अपने घोड़े के साथ गंगा में कूद गया और एक कस्ती की मदद से डूबने से बच गया था।
शेरशाह का सुल्तान बनने का सफ़र
चौसा युद्ध में विजय के बाद शेरशाह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया और उसने ‘सुल्तान- ए-आदिल’ की उपाधि धारण किया ।आपको बताते चलें कि, हमायूँ का सबसे बड़ा शत्रु शेर खाँ ही था ।
बंगाल में विजय प्राप्ति के बाद हुमायूँ निश्चिंत होकर आराम फरमाने लगा था । हुमायूँ को बंगाल में आराम करता देख शेर खाँ ने क्रमशः चुनार, बनारस, जौनपुर, कन्नौज, पटना, इत्यादि पर अधिकार स्थापित कर लिया । शेरशाह के इन उपलब्धियों ने हुमायूँ को विचलित कर दिया था ।
कमजोर पड़ा हुमायूँ
मलेरिया बीमारी के बढ़ते प्रकोप से हुमायूँ की सेना कमजोर पड़ गयी थी, इसलिए हुमायूँ ने सेना की एक छोटी टुकड़ी लेकर ही आगरा के लिए कूच कर गया ।
हमायूँ के वापस लौटने की सूचना पाकर शेरशाह ने रास्ते में ही हुमायूँ को घेरने का निर्णय किया । हुमायूँ ने वापसी में कई गलतियाँ कीं । सबसे पहली गलती यह थी कि उसने अपनी सेना को दो भागों में बाँट दिया था ।
सेना की एक टुकड़ी दिलावर खाँ के नेतृत्व में बिहार के मुंगेर जिला पर आक्रमण करने को भेजी गई थी । जबकि, सेना की दूसरी टुकड़ी के साथ हुमायूँ खुद आगे बढ़ा ।
बात नहीं माना सलाहकारों का !!
हुमायूँ के सलाहकारों ने उसे सलाह दिया था, वह गंगा के उत्तरी किनारे से चलता हुआ जौनपुर पहुँचे और गंगा पार करते ही शेरशाह पर हमला कर दे, परन्तु उसने उन लोगों की बात नहीं मानी ।
उसने गंगा पार करके दक्षिण मार्ग से चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक महान द्वारा निर्मित उत्तरपथ नाम से जानी जाने वाली सड़क जिसे शेरशाह ने बादशाह बनने के बाद जीर्णोद्धार कराया ( ग्रैंड ट्रंक रोड : सोर्स विकिपीडिया ) अर्थात ग्रैंड ट्रंक रोड से चलना शुरू किया,यह रोड शेर खाँ के नियंत्रण में था । आपको बताते चलें कि , अभी शेरशाह बादशाह नहीं बना था इसलिए अभी अंग्रेजो के समय का जी टी रोड , शेरशाह के समय का बादशाही सड़क या जर्नैली सड़क नहीं हो कर मौर्यकालीन उत्तरपथ था ।
कर्मनासा नदी के किनारे बक्सर के चौसा में उसे शेरशाह के होने का पता चला । इसलिए वह नदी पार करके शेरशाह पर आक्रमण करने को उतारू हो उठा । लेकिन यहां भी उसने गलती कर बैठा ।
यहां पर उसने तत्काल शेरशाह पर आक्रमण नहीं किया । वह तीन महीनों तक गंगा नदी के किनारे समय बरबाद करता रह गया । शेरशाह ने इस बीच उसे धोखे से शान्ति-वार्ता में उलझाए रखा और अपनी सैन्य तैयारियां करता रहा । वह बरसात की प्रतीक्षा कर रहा था ।
शेरशाह की जबरदस्त कूटनीति
![भारत का वो बादशाह , जिसके डर से हुमायूँ 15 साल बाहर रहा हिंदुस्तान से | चौसा युद्ध 1 हुमायूँ](https://i0.wp.com/www.sasaramkigaliyan.com/wp-content/uploads/2020/09/images-1_compress35.jpg?resize=696%2C402&ssl=1)
वर्षा ऋतू के शुरू होते ही शेरशाह ने आक्रमण की योजना बनाया । हुमायूं का शिविर गंगा और कर्मनासा नदी के बीच एक नीची जगह पर स्थित था । जिसके चलते बरसात का पानी इसमें भर गया । मुगलों का तोपखाना खराब हो गया और सेना में अव्यवस्था व्याप्त गई ।
इस मौके का लाभ उठा कर 25 जून, 1539 की रात्रि में शेरशाह ने मुग़ल छावनी पर अचानक बिना वक़्त गवाएं धोखे से आक्रमण कर दिया । मुग़ल खेमे में खलबली मचनी तय थी , हुआ भी यही । सैनिक जान बचाने के लिए गंगा नदी में कूदने लगे । उनमें कुछ डूब कर मरें और कुछ शेरशाह के अफगान सेनाओं के द्वारा मारे गए ।
जान बचा कर भागा हुमायूँ
परिस्थिति को भाप कर हुमायूँ भी अपनी जान बचाकर गंगा पार कर भाग गया । भागते समय उसका परिवार शिविर में ही रह गया । हुमायूँ अपने कुछ विश्वासी मुगलों की सहायता से आगरा पहुँच सका । हुमायूँ की पूरी सेना बर्बाद हो गई
युद्ध के सुनहरे परिणाम
![भारत का वो बादशाह , जिसके डर से हुमायूँ 15 साल बाहर रहा हिंदुस्तान से | चौसा युद्ध 2](https://i0.wp.com/www.sasaramkigaliyan.com/wp-content/uploads/2020/09/26bhrElectionDevrajBuxarSite2_193725.jpg?resize=494%2C371&ssl=1)
- चौसा के भीषण युद्ध के बाद हुमायूँ का पतन तय हो गया था ,क्यूंकि उसकी सेना नष्ट हो चुकी थी । उसके परिवार के कुछ सदस्य भी इस युद्ध में मारे गए थें ।
- इस युद्ध में विजय के बाद अफगानों की शक्ति और महत्त्वाकांक्षाएँ पुनः बढ़ गई । अब वे मुगलों को आगरा से भी भगाकर आगरा पर अधिकार करने की योजनाएँ बनाने लगे ।
- शेर खाँ ने इस युद्ध के बाद शेरशाह की उपाधि धारण कर लिया ।
- शेरशाह ने अपने नाम का “खुतबा” पढ़वाया , सिक्के ढलवाये और कई नय फरमान जारी किए ।
- उसने जलाल खाँ को बंगाल भेजकर बंगाल पर भी अधिकार कर लिया । शेरशाह खुद बनारस, जौनपुर और लखनऊ होता हुआ कन्नौज जा पहुँचा ।
कैसे पहुंचे चौसा ?
रोड मार्ग : रोड मार्ग बेहतर विकल्प हो सकता है । बक्सर से लगभग 10-15 किलोमीटर चौसा की दूरी है ।
रेल मार्ग : चौसा में रेलवे स्टेशन है ।
हवाई मार्ग : नजदीकी एयरपोर्ट पटना और बनारस है ।
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