Monday, October 27, 2025
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सासाराम का वह सपूत, जिसके आवाज़ से डरता था चीन | रामेश्वर सिंह कश्यप | Rameshwar Singh Kashyap

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Rameshwar Singh Kashyap - रामेश्वर सिंह कश्यप उर्फ लोहा सिंह
Rameshwar Singh Kashyap

हम खुशनसीब हैं जो मां ताराचण्डी की धरती सासाराम ने ऐसे लाल को पैदा किया था । नाटक की अपनी रेडियो श्रृंखला की लगभग 400 कड़ियों से लोहा सिंह को जीवंत करने वाले सासाराम के रामेश्वर सिंह ‘कश्यप’ (Rameshwar Singh Kashyap) को असली नाम से कम जासूसी और बहादुरी के प्रतीक ‘शेरलॉक होम्स’ और ‘जेम्स बांड’ की तरह उनकी कृति के नाम से ही जाना जाता था । राष्ट्रीय स्तर तक से प्रसारित उनके कालजयी डायलॉग आज भी लोग दोहराते हैं ।

Table of Contents

रामेश्वर सिंह कश्यप का जन्मदिवस 

प्रो. रामेश्वर सिंह कश्यप का जन्म आज ही के दिन, यानी 16 अगस्त सन् 1927 को सासाराम के सेमरा गांव में हुआ था ।

रामेश्वर सिंह कश्यप का परिवार

रामेश्वर सिंह कश्यप के पिता जी का नाम राय बहादुर जानकी था । वह अंग्रेजी सरकार में डीएसपी थें । जबकि रामेश्वर सिंह कश्यप के माता जी का नाम रामसखी देवी था ।

रामेश्वर सिंह कश्यप का प्रारंभिक जीवन

मुंगेर जिला के नवगछिया से रामेश्वर सिंह कश्यप ने प्रारम्भिक शिक्षा शुरू किया । मुंगेर जिला के ही टाउन स्कूल से उन्होंने मैट्रिक भी पास किया । 1948 में उन्होंने पटना के बीएन कॉलेज से बी.ए किया । सन् 1950 में पटना के बीएन कालेज ( बिहार नेशनल कॉलेज) से उन्होंने हिन्दी से एम॰ए॰ किया और उसी वर्ष पटना विश्वविद्यालय में हिन्दी के व्याख्याता बन गए ।

सासाराम के एसपी जैन कॉलेज में प्राचार्य बनें रामेश्वर सिंह कश्यप

S.P Jain College Sasaram
एस.पी जैन कॉलेज सासाराम

पिता के अनुरोध पर 1968 में पटना के साहित्यिक माहौल को छोड़कर सासाराम आना पड़ा और रामेश्वर सिंह कश्यप सासाराम के प्रतिष्ठित एस पी जैन कॉलेज यानी शान्ति प्रसाद कॉलेज में प्राचार्य बने। लेकिन साहित्यिक समाज से दूर होने का उन्हें काफी मलाल था ।

1962 का भारत चीन युद्ध और लोहा सिंह

1962 की भारत-चीन लड़ाई के फौजी लोहा सिंह (प्रोफेसर रामेश्वर सिंह ‘कश्यप’) जब अपनी फौजी और भोजपुरी मिश्रित हिंदी में अपनी पत्नी ‘खदेरन को मदर’ और अपने मित्र ‘फाटक बाबा’ (पाठक बाबा) को काबुल का मोर्चा की कहानी सुनाते थे, तो श्रोता कभी हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाते थे तो कभी गंभीर और सावधान। कहानी सुनते समय उन्‍हें लगता था कि बाल विवाह, छूआछूत, धार्मिक विकृतियों पर किया जानेवाला लोहा सिंह का व्यंग्य कहीं उन्हीं पर तो नहीं !

लोहा सिंह के आवाज से चीन डरता था

Rameshwar Singh Kashyap
Rameshwar Singh Kashyap

साठ के दशक (1962) में हुए भारत – चीन युद्ध के वक्त पटना रेडियो स्टेशन से प्रसारित होने वाले लोहा सिंह नाटक की गूंज चीन तक पहुंची थी। जिसे सुन कर चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री को कहने पर मजबूर होना पड़ा था कि ” जवाहरलाल ने लोहा सिंह नामक एक भैसा पाल रखा है, जो चीन के दीवार में सिंघ मारता रहता है”

भारत चीन युद्ध और फौजी लोहा सिंह का “खदेरन क़ो मदर”

‘जिद त हम धरबे करेगा। करेगा त हम खूब जिद धरेगा, अ तुमको घामा में डबल मारच कराएगा.. ठेठ भोजपुरी अंदाज में मंच पर इसी तरह का संवाद भारत-चीन युद्ध के फौजी लोहा सिंह । जो भारतीय फौज से रिटायर होकर गांव में सामाजिक कार्यों में लगा रहता है। तुलसी चौरा के पास पूजा-अर्चना करती उसकी पत्नी व खदेरन की माता नजर आती हैं ।

28 नवंबर 2020 को पटना के कालिदास रंगालय में मंच‍ित नाटक लोहा सिंह का एक दृश्‍य
28 नवंबर 2020 को पटना के कालिदास रंगालय में मंच‍ित नाटक का एक दृश्‍य । तस्वीर : जागरण

तभी लोहा मंच पर प्रवेश करता है। लोहा सिंह तेज आवाज में खदेरन की मां.. की रट लगाता है। तभी खदेरन की मां कहती है कि आ मार बढ़नी रे .. पूजा कइल गरगट कइले रहेलन। एको घड़ी चैन से ना रहे देस जब देख खदेरन की मदर, खदेरन की मदर, सुगा लेला रटल रहेलन । इसी प्रसंग से मशहूर नाटक “लोहा सिंह” का आरंभ होता है ।

साहित्य एवं कला के क्षेत्र में रामेश्वर सिंह कश्यप का योगदान

कश्यप जी इप्टा यानि भारतीय जन नाट्य संघ से जुड़े नाटककार, निर्देशक और अभिनेता तीनों थे। ऐसा संयोग बहुत कम होता है। बुलबुले, पंचर (बाद में बेकारी का इलाज संग्रह), बस्तियां जला दो, रॉबर्ट, आखिरी रात, कैलेंडर का चक्कर, सपना, रात की बात, अंतिम श्रृंगार, बिल्ली, चाणक्य संस्कृति का दफ्तर, स्वर्ण रेखा कायापलट, उलटफेर एवं दर्जनों उत्कृष्ट एकांकियां, कहानियां तथा निबंधों के साथ लोहा सिंह नाटक श्रृंखला में प्रमुख थे।

लोहा सिंह को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुआ

लोहा सिंह नाटक की लोकप्रियता से अत्यंत प्रभावित होकर यूनेस्को द्वारा प्रकाशित ‘रूरल ब्रॉडकास्टर’ नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा लोहा सिंह नाटक के बारे में लिखने के लिए कश्यपजी  से अनुरोध किया गया । 

यूनेस्को ने ‘रूरल ब्रॉडकास्टर’ नामक अंतरराष्ट्रीय संस्था से कश्यप जी का 1960 में एक लेख प्रकशित किया था- ‘अबाउट लोहा सिंह’ ।

कई देश भारत सरकार से कैसेट मांगते थें

सुनील बादल ने अपने शोध में बताया है कि आलोचक डॉक्टर निशांतकेतु ने लिखा था- लंदन काउंटी काउन्सिल, नेपाल,जोहानेसबर्ग और मॉरीशस की सरकारों की मांग पर भारत सरकार इसके कैसेट्स भेजती रही है ।

राष्ट्रीय स्तर पर छाए रहें रामेश्वर सिंह कश्यप

इनका पटना, दिल्ली, वाराणसी, मुंबई, लखनऊ जैसे कला मर्मज्ञ नगरों में सफल मंचन हुआ और इन्हें पुरस्कार भी मिले। पंचर और आखि‍री रात को अखिल भारतीय नाट्य प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान भी मिले।

पद्मश्री से सम्मानित हुए रामेश्वर सिंह कश्यप

बिहार के सासाराम से रामेश्वर सिंह कश्यप को भारत सरकार द्वारा सन् 1991 में साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित हुए रामेश्वर सिंह कश्यप

भारत सरकार के पद्मश्री के अलावा रामेश्वर सिंह कश्यप को बिहार गौरव,बिहार रत्न आदि से सम्मानित किया गया था ।

फिल्मकार प्रकाश झा करते रह गए लोहा सिंह का इंतजार

सन् 1992 में फिल्मकार प्रकाश झा रामेश्वर सिंह को मनाने के लिए कई बार सासाराम आए थे । लेकिन कश्यप जी अपने कंटेंट के ओरिजनलीटी पर अडिग रहते थें, उन्हें तोड़ मरोड़ पसंद नहीं था । कश्यप जी अपनी हर रचना एक नई कलम से लिखते और उसे बक्से में रख देते थे। लगभग बीस हजार पेन उनके घर में सजाकर रखे हुए थे । फिल्‍मकार प्रकाश झा फिल्म के लिए उनके नाटक परिवर्त्तन के साथ लेना चाहते थे ।

रामेश्वर सिंह कश्यप उर्फ लोहा सिंह की अंतिम यात्रा

24 अक्टूबर 1992 को अचानक रामेश्वर सिंह कश्यप की मृत्यु हो गई और एक अध्याय का अंत हो गया । मृत्यु का कारण डायबेटीज ( सुगर) बताया जाता है ।

सासाराम के सपूत पद्मश्री रामेश्वर सिंह कश्यप अमर रहेंगे

लोहा सिंह ने अपने साहित्य और नाटक के जरिए देश विदेश में पहचान बनाया । वे आज हमारे बीच नहीं हैं पर उनकी कृतियों को संजो कर रखना हमारा पुनीत कर्तव्य है। साहित्य ही समाज को दिशा देने का काम करता है।

Rameshwar Singh Kashyap - रामेश्वर सिंह कश्यप
Rameshwar Singh Kashyap – रामेश्वर सिंह कश्यप

साहित्य और नाटक का समाजिक बुराइयों को दूर करने में बहुत महत्व होता है । पद्मश्री रामेश्वर प्रसाद सिंह कश्यप उर्फ लोहा सिंह की कृतियों को व्यापक स्तर पर प्रसार कर नयी पीढ़ी को साहित्य का दर्शन और उसकी रचनात्मकता का बोध कराया जा सकता है ।

आभार एवं सहयोग : पंकज दीक्षित (पूर्व जिलाधिकारी रोहतास/सासाराम) , सुनील बादल ( शुरुआत दैनिक रांची एक्सप्रेस और वर्तमान में वरिष्ठ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार ) , इंजिनियर एसडी ओझा , प्रोफेसर गुरुचरण सिंह ( वर्तमान प्राचार्य एसपी जैन कॉलेज सासाराम) , डॉक्टर विजय शंकर सिन्हा उर्फ मनन बाबू ( सासाराम के कॉलेज में प्राचार्य और कश्यप जी के करीबी मित्र ) , डॉक्टर नंद किशोर तिवारी ( सासाराम निवासी, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष )

ताराचण्डी धाम में 12 वीं सदी के राजा प्रताप धवल का शिलालेख । Tarachandi Shilalekh Pratap Dhaval

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Tarachandi Shilalekh Pratap Dhaval
Tarachandi Shilalekh Pratap Dhaval

बिहार के सासाराम शहर से महज 5 किलोमीटर पूरब कैमूर पहाड़ी में शिव तांडव से भस्म हुए माता सती के चिता से उत्पन्न भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक मां ताराचंडी विराजमान हैं। मां ताराचण्डी धाम एक हजार वर्ष पूर्व भी प्रसिद्ध् धार्मिक स्थलों में से एक था । 

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सासाराम पर गहड़वाल वंश का शाशन

रोहतास जिला और सासाराम में उस समय  गहड़वाल वंश के शासक राजा विजय चंद्र का शासन था । यहां के महानायक पलामू – जपला के प्रताप धवल देव थे। राजा प्रताप धवल देव इस स्थल की प्रसिद्धि के लिए ही यहां पर शिलालेख लिखवा कर अपनी प्रजा को यह बताया था कि राजा विजयचंद्र द्वारा जारी किया गया ताम्रपत्र जाली है ।

Tarachandi Temple
Tarachandi Temple Navaratri

आपको बताते चलें कि, सासाराम के सोनहर गांव के दो लोगों ने राजा के अधिकारी (मंत्री ) को रिश्वत देकर ताम्रपत्र जारी करा किरहंडी व बड़ैला गांव को अपने नाम दान करा लिया है । जो कि पूरी तरह गलत है। गलत घोषणापत्र जारी कराने वाले का रत्ती भर भी उस गांव पर अधिकार नहीं है। राजा प्रताप धवल ने आदेश दिया कि जाली ताम्रपत्र रद्द किया जाता है और वह उस गांव का राजस्व प्राप्त करने या दान करने के लिए सक्षम होंगे । ।

राजा प्रताप धवल ने ताराचण्डी में लगवाया था शिलालेख

रोहतास के पुरातात्विक व सांस्कृतिक धरोहरों पर शोध कर चुके इतिहासकार डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि ताराचंडी शिलालेख देश का पहला प्रमाणिक व लिखित दस्तावेज है जिसमें राजा के अधिकारी को उत्कोच (रिश्वत) देकर जाली ताम्रपत्र जारी करा दिया गया हो ।

सन् 1169 का है ताराचंडी शिलालेख

राजा प्रताप धवल का मां ताराचंडी शिलालेख
राजा प्रताप धवल का मां ताराचंडी शिलालेख | नोट : यह बहुत बड़ा ( लम्बा ) है , तस्वीर लेने पर एक बार में एक पार्ट ही दिखाई देगा

यह शिलालेख ख्यारवाल वंश के महानायक प्रताप धवल देव द्वारा विक्रम संवत 1225 के ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की तृतिया तिथि यानि 16 अप्रैल 1169 को लिखवाया गया था । 212 सेमी लंबे और 38 सेमी चौड़े पत्‍थर पर यह शिलालेख लिखवाया गया था ।

मां ताराचण्डी की मूर्ति के बगल में है शिलालेख

राजा प्रताप धवल का शिलालेख सासाराम शहर में स्थित है । यह शिलालेख ताराचंडी देवी प्रतिमा के ठीक उत्तर तरफ स्थित है।

क्या है ताराचण्डी शिलालेख में ?

मां ताराचंडी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख
मां ताराचंडी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख | नोट : मंदिर के इस संवेदनशील गुफा में आम आदमी का प्रवेश वर्जित है , कृपया अंदर जाने की कोशिश नहीं करें

इस शिलालेख में राजा के रिश्‍वत लेने का वर्णन किया गया है। राजा के अधिकारियों को रिश्‍वत देकर गांव को पाने की मंशा के बारे में उल्‍लेख किया गया है। राजा के अधिकारी ने एक ताम्रपत्र से राजा का जाली हस्‍ताक्षर करके ये सब काम किया था। इसकी जानकारी खुद महानायक को नहीं थी। लेकिन जैसे ही इस जाली घोषणापत्र का पता चला तो उन्‍होंने इस ताम्रपत्र को ही रद कर दिया ।

राजा प्रताप धवल देव ने इस धाम का महत्व देख कर प्रसिद्धि के लिए ही ताराचंडी धाम में शिलालेख लिखवा कर अपनी प्रजा को यह बताया था कि राजा विजयचंद्र द्वारा जारी किया गया ताम्रपत्र जाली है । राजा प्रताप धवल ने ताराचंडी धाम में शिलालेख लगवाकर अपनी प्रजा और वंशजो को कई निर्देश दिए ।

ताराचण्डी शिलालेख में जाली ताम्रपत्र को नहीं मानने का निर्देश

मां ताराचण्डी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख
मां ताराचण्डी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख

संवत 1229 में जपिलाधिपति महानायक प्रतापधवल देव अपने पुत्रों, पौत्रों आदि के साथ अपने अन्य वंशजों से कहते हैं कि कान्यकुब्ज के सौभाग्यशाली महाराज विजयचंद्र के बेईमान दासों को घूस देकर उन्हें परलोकगमन संबंधी धार्मिक अनुष्ठान के प्रयोजन की जालसाजी से कलहंडी व बरैला गांवों को छद्म नाम से मिलने का ताम्रपत्र प्राप्त किया है ।

ऐसा सुवर्णहल के आमजनों से सुना गया है कि वे विप्र व्यभिचारी हैं । जमीन का एक टुकड़ा यहां तक कि सूई की नोक के बराबर भी उनके अधिकार में नहीं है। इनकी उपज से शुल्क प्राप्त करने का अधिकार तुम्हें है ।

सन् 1166 में बना था जाली ताम्रपत्र

गहड़वाल वंश का सोनहर (सासाराम ) का ताम्रपत्र
गहड़वाल वंश का सोनहर (सासाराम ) का ताम्रपत्र

गहड़वाल वंश का जिले का पहला अभिलेख सोनहर का ताम्रपत्र है। जिसे राजा विजयचंद्र के राजमोहर से एक घोषणापत्र जारी हुआ था। यह ताम्रपत्र विक्रम संवत 1223 के भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की नवीं तिथि सोमवार यानी पांच सितंबर 1166 को जारी किया गया था । इस ताम्रपत्र में सासाराम के सोनहर गांव के दो लोगों को सासाराम के ही कुम्हउ व बड़ैला गांव दान में दिए जाने की घोषणा की गई है। जिसे महानायक प्रताप धवल देव ने जाली करार दिया। 

खेत जोतते समय मिला था ताम्रपत्र, अब पटना संग्रहालय में है

यह ताम्रपत्र सोनहर निवासी राम खेलावन कुशवाहा को खेत जोतते समय प्राप्त हुआ था, जिसे उनके पौत्र गरीबन महतो ने राष्ट्रीय संपत्ति समझकर 11 मार्च 1959 को तत्कालीन आयुक्त डॉ. श्रीधर वासुदेव को सौंप दिया। तब से यह ताम्रपत्र पटना संग्रहालय में है ।

फ्रांसिस बुकानन ने की थी इस शिलालेख की आधिकारिक खोज 

मां ताराचंडी धाम , सासाराम
मां ताराचंडी धाम , सासाराम

फ्रांसिस बुकानन बंगाल चिकित्सा सेवा के चिकित्सक थे । वे कोलकता में 1794 से 1815 ई तक रहे। इसी बीच  भारतीय पुरातात्विक व धार्मिक क्षेत्राों का सर्वेक्षण भी उन्‍होंने किया। इसी क्रम में वे रोहतास में भी सर्वेक्षण कार्य कर कई शिलालेख व ताम्रपत्रों की खोज की। 1812-13 में ताराचंडी शिलालेख की खोज भी बुकानन ने की थी।

हेनरी कालब्रुक ने अनुवाद कराया

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1823 में हेनरी कालब्रुक ने इसे पढ़ा व आधा-अधूरा अनुवाद कराया, लेकिन यह पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका था।

श्याम सुन्दर तिवारी ने पूर्ण अनुवाद कराया

डॉ. श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि वे उस शिलालेख का पूरी तरह अनुवाद कराया है। शिलालेख संस्कृत में है तथा इसकी लिपि प्रारंभिक नागरी है।

ताराचंडी धाम में शिलालेख में उपयोग में लाया गया शब्द उत्‍कोच का मतलब होता है रिश्‍वत या घूस  

शोध अन्वेषक और इतिहासकार डाॅ. श्याम सुंदर तिवारी कहते हैं कि उत्कोच संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ रिश्वत या घूस है। इसे निंदनीय माना गया है। बताते हैं कि प्राचीन ग्रंथों में वर्णन है कि भगवान महावीर के नाना राजा चेटक से राजा श्रोणिक के पुत्र अभय कुमार मिलने गए तो कोतवाल उन्हें महल के अंदर नहीं जाने दिया ।

मां ताराचंडी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख | नोट : मंदिर के इस संवेदनशील गुफा में आम आदमी का प्रवेश वर्जित है , कृपया अंदर जाने की कोशिश नहीं करें
मां ताराचंडी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख | नोट : मंदिर के इस संवेदनशील गुफा में आम आदमी का प्रवेश वर्जित है , कृपया अंदर जाने की कोशिश नहीं करें

इसके बाद कोतवाल व सिपाहियों को उत्कोच देकर उन्‍होंने महल में प्रवेश किया। आदि पुराण व कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी उत्कोच (रिश्वत ) देकर काम कराने की बात आई है। लेकिन ताराचंडी धाम पर महानायक प्रताप धवल देव का शिलालेख देश का पहला शिलालेख है जो लिखित व प्रमाणिक रूप में प्रसिद्ध देवी स्थल पर लगाया गया जिससे सभी तक अधिकारी के घूस लेकर गलत दस्तावेज बनाने की बात पहुंच सके। 

ऐसे पहुंचे ताराचंडी धाम 

सासाराम से मां ताराचंडी का धाम मात्र 5 किलोमीटर पूरब राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर स्थित है। सासाराम रोहतास जिला का मुख्यालय है तथा यह पंडित दीन दयाल -गया रेलखंड के बीच में प्रमुख रेलवे जंक्शन है तथा यहां अधिकांश मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव है ।

मां ताराचंडी धाम , सासाराम
मां ताराचंडी धाम , सासाराम

यदि आप सड़क मार्ग से आना चाह रहे हैं तो सासाराम शहर का मां ताराचण्डी धाम वाराणसी से 105 किलोमीटर पूरब, पटना से 160 किलोमीटर दक्षिण व गया से 150 किलोमीटर पश्चिम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या दो पर स्थित है। वाराणसी, गया व पटना तक हवाई मार्ग से पहुंच वहां से सड़क या रेलमार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है । सासाराम से ताराचंडी के लिए ऑटो, टैक्सी आदि दिनभर उपलब्ध रहता है ।

संदर्भ और साभार

तिवारी, श्याम सुंदर “बुचुन”, प्रज्ञा भारती, काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान ,पटना ।
फ्रांसीसी बुकानन , ब्रजेश पाठक,दैनिक जागरण ,गरीबन महतो ( सोनहर,सासाराम)

मार्टिन एंड कंपनी ने 1914 में आरा- सासाराम छोटी लाइन चलाया था । विक्टोरिया मेमोरियल के निर्माता राजेंद्र नाथ मुखर्जी ने सर मार्टिन के साथ कम्पनी का नींव रखा | Arrah – Sasaram Martin’s Light Railway | Part 2

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Arrah - Sasaram Martin's Light Railway
Arrah - Sasaram Martin's Light Railway

यह आरा सासाराम छोटी लाईन और डेहरी रोहतास छोटी लाईन का दूसरा भाग है । पार्ट 1 में अब तक हमने विस्तार से ( लगभग 45,00 शब्दों में ) जाना है कि भारतीय रेलवे, जिसकी शुरुआत 1853 में मामूली थी, तब से राष्ट्र का अभिन्न अंग रहा है। ब्रिटिश सरकार ने रेल और सड़क परिवहन प्रणाली के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया । 20 वीं सदी में बिहार के पुराने शाहाबाद जिले में आरा-सासाराम लाइट रेलवे और डेहरी-रोहतास लाइट रेलवे की शुरुआत हुई थी ।

Ara Sasaram Light Rail
आरा स्टेशन पर सन् 1970 ई में खड़ी आरा सासाराम छोटी लाईन कि रेलगाड़ी  | Pc : LG Marshal

बिहार का शाहाबाद जिला, पश्चिमी बिहार में एक भोजपुरी भाषी जिला था और इसका जिला मुख्यालय आरा था । शाहाबाद जिला को अब भोजपुर, रोहतास, कैमूर और बक्सर सहित चार जिलों में बांट दिया गया है । शाहाबाद जिला बिहार में धान का सरप्लस उत्पादक क्षेत्र था, इसलिए राज्य में इसका आर्थिक महत्व था। शाहाबाद जिला देश और राज्य के अन्य हिस्सों में चावल का थोक निर्यातक था।

भोजपुर जिले में आरा, बिहिया, बक्सर और डुमरांव जैसे बिजनेस केंद्र रेल नेटवर्क पर पहले से थें । वहीं दूसरे तरफ रोहतास जिले में मोहनिया, कुदरा, सासाराम और डेहरी जैसे शहर/बाजार भी रेल नेटवर्क पर पहेल से थें । इसलिए ब्रिटिश सरकार ने गढ़ नोखा, बिक्रमगंज, हसन बाजार, पिरो जैसे बाजारों को रेल नेटवर्क से जोड़ने का फैसला किया ।

आरा सासाराम छोटी लाइन के किनारे पटना - सासाराम सड़क निर्माण कि तस्वीर | Pc : Lg Marshal
आरा सासाराम छोटी लाइन के किनारे पटना – सासाराम सड़क निर्माण कि तस्वीर | Pc : Lg Marshal

आरा सासाराम छोटी लाईन के निर्माण के लिए सासाराम के निकट सलेमपुर, कुराईच ( गौरक्षणी ) , शरीफाबाद, रसूलपुर और महद्दिगंज गांवों की भूमि सहित कई भूमियों का अधिग्रहण किया गया था। हमने पार्ट 1 में छोटी लाईन के निर्माण कार्य ब्योरा देखा था, भूमि अधिग्रहण भी देखा था । जिसमे “सासाराम कि गलियां” ने आपको बताया था कि भूमि अधिग्रहण की योजना दिनांक 28.9.1910 के राजपत्र/गजेटियर में प्रकाशित हुई । अब आगे


आरा-सासाराम लाइट रेलवे (बिहार) और बारासेट-बशीरहाट लाइट रेलवे ऑफ बंगाल (मार्टिन एंड कंपनी दोनों) की शुरुआत 1914 में हुई थी ।

मार्टिन और राजेंद्र नाथ मुखर्जी

राजेंद्र नाथ मुखर्जी
राजेंद्र नाथ मुखर्जी

मार्टिन के पीछे राजेंद्र नाथ मुखर्जी थे। उन्हें भारत में मार्टिन लाइट रेलवे के बिछाने और संचालन के लिए याद किया गया। उनकी उपलब्धियों में कोलकाता में पल्टा वाटर वर्क्स, बनारस, लखनऊ ,अहमदाबाद और विक्टोरिया मेमोरियल कलकत्ता का निर्माण शामिल था । इन्होंने पटना सचिवालय , टीपू सुल्तान मस्जिद, उज्जयंता पैलेस और कई चर्चों का भी निर्माण किया था ।

मार्टिन एंड कंपनी की आधारशिला

सर थॉमस एक्विन मार्टिन के साथ, राजेंद्र नाथ मुखर्जी ने मार्टिन एंड कंपनी की स्थापना की और कुल्टी में बंगाल आयरन की सफलता में योगदान दिया। बाद में वे बर्नपुर में “द इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी” के लौह कार्यों की स्थापना में जीएच फेयरहर्स्ट में शामिल हो गए।

राजेंद्र नाथ मुखर्जी का इंग्लैंड दौरा

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राजेंद्र नाथ मुखर्जी पहली बार 1901 में इंग्लैंड गए और बाद में अपने व्यवसाय के सिलसिले में कई बार गए । ब्रिटिश सरकार के भारत से इंग्लैंड जाने वाले प्रमुख यात्रियों की लिस्ट में वो शामिल हो गए ।

राजेंद्र नाथ मुखर्जी की कृति अमर हो गई

1908 में, मुखर्जी को कंपेनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एम्पायर (CIE) नियुक्त किया गया था । 1911 में वे कोलकाता के “शरिफ” बने । इसके अलावा 1911 में, उन्हें KCIE के साथ नाइट की उपाधि दी गई। 1922 में, मुखर्जी को रॉयल विक्टोरियन ऑर्डर (KCVO) के नाइट कमांडर की गरिमा से भी सम्मानित किया गया।

गढ़ नोखा स्टेशन पर खड़ी आरा सासाराम छोटी लाइन की रेलगाड़ी
गढ़ नोखा स्टेशन पर खड़ी आरा सासाराम छोटी लाइन की रेलगाड़ी

1931 में, कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डी.एससी. (अभियांत्रिकी)। उन्होंने 1921 में कोलकाता में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 8वें सत्र की अध्यक्षता भी की।

उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण कम्पनी थी “मार्टिन एंड कंपनी”

मार्टिन एंड कंपनी उत्तर प्रदेश के आगरा, बरेली और वाराणसी जैसे शहरों में बिजली वितरण में भी शामिल है।

छोटी लाईन कि बादशाह थी मार्टिन एंड कंपनी

मार्टिन एंड कंपनी भारत में लाइट रेलवे नेटवर्क चलाने में अग्रणी थी। बिहार की सेवाओं की देखभाल के लिए मार्टिन का कार्यालय पटना में था ।

मार्टिन एंड कंपनी का आरा – सासाराम छोटी लाईन

पिरो से सासाराम के लिए रवाना होती छोटी लाइन रेल
पिरो से सासाराम के लिए रवाना होती छोटी लाइन रेल

सन् 1914 में इस कंपनी ने बिहार का आरा-सासाराम लाइट रेलवे (बिहार) और बारासेट-बशीरहाट लाइट रेलवे ऑफ बंगाल का शुरुआत किया ।

मार्टिन और बर्न के अन्य लाइट रेल नेटवर्क

  • फुतवा-इस्लामपुर लाइट रेलवे (बिहार)
  • हावड़ा मैदान-अमता और शियाखला लाइट रेलवे (पश्चिम बंगाल)
  • बुख्तियारपुर – बिहारशरीफ लाइट रेलवे (बिहार)
  • बारासात-बशीरहाट रेलवे (पश्चिम बंगाल)
  • दिल्ली शाहदरा से सहारनपुर लाइट रेलवे (दिल्ली और यूपी)
बिक्रमगंज स्टेशन से खुलने के लिए तैयार "आरा सासाराम छोटी लाइन रेल "
बिक्रमगंज स्टेशन से खुलने के लिए तैयार “आरा सासाराम छोटी लाइन रेल “

नोट : अगर आपका प्यार बना रहेगा तो जल्द ही “सासाराम आरा छोटी लाईन और डेहरी रोहतास छोटी लाईन का पार्ट 3 भी , “सासाराम कि गलियां” आपके लिए लेकर आएगा । हमें इस आर्टिकल पर ढेर सारा प्यार और अच्छा रेस्पॉन्स का इंतज़ार रहेगा ।

शिलान्यास के 2.5 वर्ष बाद भी लटका है सासाराम जंक्शन पर स्वचालित सीढ़ी | फंड का झूठा रोना , रोते हैं अधिकारी | Pending Escalator

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Pending Ecalator सासाराम जंक्शन पर स्वचालित सीढ़ी
सासाराम जंक्शन पर स्वचालित सीढ़ी

दिनांक 8 मार्च 2019 को रेल अधिकारियों और सांसद ने सासाराम जंक्शन पर पूरे लाव लश्कर के साथ स्वचालित सीढ़ियों का शिलान्यास किया था , इस योजना में 3 लिफ्ट लगाने की व्यवस्था होनी थी । आज 4 अगस्त , 2021 आ गया, लेकिन अभी तक ना तो स्वचालित सीढ़ियों का अता पता है ना ही 3 लिफ्टों का ।

अच्छे खासे योजना का जनाजा निकाल दिया !

2018 के योजना में कहा गया था कि सासाराम रेलवे स्टेशन पर कई नई नई सुविधाएं यात्रियों को मिलेंगी। इनमें स्वचालित सीढ़ी (Escalator) के साथ में लिफ्ट लगाने की भी योजना थी । इससे सासाराम स्टेशन से आने जाने वाले यात्रियों को फ्लेटफार्म पर पहुंचने में सहूलियत होगी ।

8 मार्च 2019 को सासाराम रेलवे स्टेशन पर लिफ्ट, स्वचालित सीढ़ी और अन्य योजनाओं का शिलान्यास करते संसद और रेल अधिकारी
8 मार्च 2019 को सासाराम रेलवे स्टेशन पर लिफ्ट, स्वचालित सीढ़ी और अन्य योजनाओं का शिलान्यास करते सांसद और रेल अधिकारी

खासकर बुजुर्ग, बीमार, महिलाओं और दिव्‍यांगों को इससे काफी फायदा मिलेगा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय संसदीय समिति की ओर जारी कार्ययोजना में दो एस्‍केलेटर के साथ तीन लिफ्ट लगाने की योजना स्वीकृत की गई थी । इसके अलावा संसदीय समिति की कार्ययोजना में डेहरी-बंजारी नई रेल लाइन समेत सासाराम लोकसभा क्षेत्र से जुड़ी कई अन्य योजनाओं को भी प्रस्तावित किया गया था ।

फंड का झूठा रोना रो रहे हैं अधिकारी

आरटीआई से हुए खुलासा में रेल अधिकारी फंड का झूठा रोना रोते हुए दिखाई दे रहे हैं । सासाराम जंक्शन पर स्वचालित सीढ़ियों और लिफ्टों के निर्माण में हो रही देरी पर सवाल पूछा गया तो , रेल अधकारियों ने फंड नहीं होने का हवाला दिया है ।

राजस्व के मामले में पूर्व मध्य रेल के टॉप स्टेशनों में शामिल है सासाराम जंक्शन

सासाराम रेलवे स्टेशन का वार्षिक राजस्व
RTI रिपोर्ट में सासाराम रेलवे स्टेशन का वार्षिक राजस्व | नोट : RTI कार्यकर्ता ने अपना नाम, पता नहीं बताने का अनुरोध किया है, इसलिए उनका नाम लाल रंग से मिटा दिया गया है

आरटीआई रिपोर्ट के अनुसार रेलवे ने खुद ही डाटा दिया है कि 2019 – 20 में 38.19 करोड़ और महामारी से प्रभावित होने के बाद भी 2020-21 ( 21 मार्च तक) में 20.17 करोड़ रुपए कमाई किया है । यह राशि पूर्व मध्य रेल के कई अन्य स्टेशनों की तुलना में संतोषजनक और काबिल ए तारीफ है । आपको बताते चलें कि राजस्व के मामले में सासाराम जंक्शन , पूर्व मध्य रेलवे के टॉप स्टेशनों में शामिल है ।

करोना काल में भी बंपर कमाई

पिछले वर्ष और इस वर्ष में करोना लहर के दौरान भी सासाराम जंक्शन से रेलवे ने रोजाना 3 लाख से 5 लाख तक कमाई किया है और अभी भी कर रहा है ।

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पिछले वर्ष रेलवे ने करोना का बहाना किया था

पिछले वर्ष रेल अधिकारियों से स्वचालित सीढ़ियों, लिफ्टों और एफओबी के बारे में पूछने पर करोना का बहाना बनाने थें और कहते थें की आवंटन उपलब्ध होने पर नए वित्तीय वर्ष में लंबित व प्रस्तावित विकास योजनाओं पर कार्य प्रारंभ किया जाएगा ।

अब नया बहाना तैयार कर लिया

Pending Escalator Sasaram Junction
सासाराम जंक्शन पर स्वचालित सीढ़ी के बारे में पूछने पर ,रेल अधिकारिओं ने फंड नहीं होने की बात कही

अब यह पूछने पर कि पूरे देश में सभी विभागों के विकास कार्य जारी हैं, अन्य स्टेशनों पर भी कार्य चल रहा है, थोड़ा बहुत प्रभावित जरूर हुआ है , लेकिन फिर भी चल रहा है । सासाराम जंक्शन के समय ये सब बहाने क्यूं होने लगते हैं ? इस पर रेल अधिकारियों ने करोना को छोड़ कर , फंड नहीं होने का बहाना तैयार कर लिया है।

क्या किया जाए ? हम आप क्या कर सकते है ?

सासाराम के विकास में अपने हिस्से का मेहनत कीजिए । अगर आप रेल अधिकारियों और नेताओ के पास नहीं जा सकते हैं तो , जो जा रहे हैं , आपके लिए लड़ रहे हैं, उनको सपोर्ट कीजिए , मनोबल बढ़ाईए । आप खुद समस्याओं के खिलाफ बोलिए , नहीं बोल सकते तो लिखिए , अगर लिख भी नहीं सकते तो क्या कीजिए , हम बता रहे है ।

मेरे मालिक, कम से कम ” जो लिख रहा है उसको तो सपोर्ट कीजिए, इस तरह के पोस्टों को शेयर कीजिए” ….हर जगह ! फेसबुक, वॉट्सएप हर जगह । लेकिन कुछ कीजिए….बूंद बूंद से सागर भरता है ।

400 वर्षों तक राज करने वाले रोहतास राज परिवार के राजा प्रताप धवल ! ताराचण्डी , तुतला व तिलौथू में मिले शिलालेख | Raja Pratap Dhaval

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Rohtas Fort
Rohtas Fort | Pc : Gargi Manish | Edited by : Manish Maurya ( pratap dhaval inscription added )

रोहतास के खरवार राजवंश का दबदबा मध्यकाल में काफी प्रसिद्ध रहा है। 12 वीं शताब्दी से लेकर 16 वीं शताब्दी यानि चार सौ वर्ष तक तक खरवार राजवंश ने उत्तर प्रदेश तथा बिहार झारखंड के एक बड़े भूभाग पर अपना राज्य स्थापित किया । खरवार राजवंश की प्रसिद्धि अंग्रेजी काल में भी बनी रही। इस राजवंश की शाखाएं पलामू के सोनपुरा से लेकर रामगढ़ तक फैली हुई हैं, जहां उनके वंशज मौजूद हैं ।

महाप्रतापी राजा प्रताप धवल

Rohtas Fort
Rohtas Fort | Pc : gargi manish

इस राजवंश में प्रताप धवल देव ऐसे देदीप्यमान नक्षत्र की भांति उदीयमान हुए कि इनकी कीर्ति देश भर में फैल गई। प्रताप धवल देव द्वारा जिले के विभिन्न स्थानों पर कई लिखवाए गए शिलालेखों से इसकी पुष्टि होती है कि कन्नौज के गहड़वाल शासनकाल में राजा प्रताप धवल पहले नायक हुए और बाद में महानायक की पदवी भी इन्होंने धारण किया ।

21 वर्षों तक राज किया महानृपति जपिल प्रताप धवल ने

महानृपति जपिल प्रताप धवल (1162 ई.) ने अकेले 21 सालों तक शासन किया और झारखंड का जपला इसी प्रतापी राजा जपिल के नाम से मशहूर हुआ ।

Rohtas Fort Bihar, India
Rohtas Fort Bihar, India | Pc : gargi manish

आपको बताते चलें कि राजा प्रताप धवल के वंशज पूर्व में झारखंड के इसी जपला नामक जगह के मूल निवासी थें, और ये लोग बाद में रोहतास आए । राजा प्रताप धवल के पुत्र ने सासाराम के पास मिले एक ताम्रपत्र में इसका उल्लेख किया है ।

रोहतास गढ़ किला से राज करते थे राजा प्रताप धवल

Rohtas Fort - HATHIYA POL
Rohtas Fort – HATHIYA POL | Pc : gargi manish

पौराणिक कथाओं में रोहतास गढ़ किला को राजा हरिश्चन्द्र द्वारा निर्मित बताया जाता है । लेकिन ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर बात करें तो यह किला खरवारों और कुशवाहा समुदाय का गढ़ रहा है । उसके बाद शेरशाह , अकबर का सूबेदार राजा मान सिंह, अंग्रेज और नक्सलियों ने भी इस पर राज किया है ।

Rohtas Fort | AINA - E - MAHAL
Rohtas Fort | AINA – E – MAHAL | Pc : gargi manish

सबसे ज्यादा यह किला खरवारों के निकट रहा है और लगभग 400 – 500 वर्षों तक इन्होंने इस पर राज किया है । राजा प्रताप धवल भी इसी रोहतास गढ़ किला से राज किया करते थें ।

रोहतास किला के गर्भ में छिपा है भगवान हरिश्चंद्र से रोहतास सरकार तक का स्वर्णिम इतिहास : Click Here To Read

खरवार समुदाय अपनी उत्पत्ति रोहतास से ही मानता है और फ़रवरी के महीने में देश भर के खरवार रोहतास गढ़ किला पर जुटते है । सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाच , संगीत , पूजा पाठ करते हैं ।

राजा प्रताप धवल के कई शिलालेख ज़मींदोज़

सासाराम के आस पास के इलाकों में राजा प्रताप धवल के कई शिलालेख मिले हैं । मां तुतला भवानी में इनका पहला शिलालेख प्राप्त हुआ था । इसको मां तुतला शिलालेख और तुतराही शिलालेख भी कहते हैं। इसके आलावा मां ताराचण्डी धाम और तिलौथू के फुलवरिया में भी राजा प्रताप धवल के शिलालेख मिले हैं ।

अर्ध पठित है तुतला भवानी में प्रताप धवल का पहला शिलालेख

मां तुतला भवानी मंदिर में राजा प्रताप धवल का शिलालेख
मां तुतला भवानी मंदिर में राजा प्रताप धवल का शिलालेख | Pc : Varun Ji

मां तुतला भवानी मंदिर में मिले राजा प्रताप धवल के शिलालेख के कई अंशों को अंग्रेजी काल में पढ़ा गया था । हालांकि यहां के संपूर्ण शिलालेख अभी तक अपठित हैं, जिसके कारण हैं इनका मंदिर में दब जाना।

तिलौथू में राजा प्रताप धवल का दूसरा शिलालेख

प्रताप धवल देव का दूसरा शिलालेख मिला है ,तिलौथू प्रखंड के फुलवरिया में। इसकी खोज प्रोफेसर किल्हार्न ने की थी, कितु सुनिश्चित स्थान न बता पाने के चलते इसे गुम मान लिया गया था। फुलवरिया शिलालेख की खोज 2010 में दोबारा सासाराम के इतिहासकार व शोध अन्वेषक डा. श्याम सुंदर तिवारी ने किया था और इसे पढ़ा था।

मां ताराचण्डी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख

मां ताराचण्डी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख
मां ताराचण्डी धाम में राजा प्रताप धवल का शिलालेख

मां ताराचण्डी मंदिर के गर्भ गृह से ठीक सटे राजा प्रताप धवल का शिलालेख मौजूद है । इसे अंग्रेजी इतिहासकार फ्रांसिस बुकानन ने खोजा था । इस शिलालेख का बड़ा हिस्सा पढ़ा जा चुका है । यह शिलालेख मां ताराचण्डी धाम के प्राचीनता को भी प्रमाणित करता है । राजा प्रताप धवल आदिशक्ति देवी के बहुत बड़े भक्त थें । इन्होंने कई मन्दिरों में अपने शिलालेख लगवाए थें ।

राजा प्रताप धवल के पिता , दादा, परदादा और वंश

Rohtas Fort - CARVINGS INSIDE THE FORT
Rohtas Fort – CARVINGS INSIDE THE FORT | Pc : gargi manish

राजा साहस धवल के ताम्रपत्र से यह स्पष्ट होता है कि इस वंश के सबसे प्रथम राजा खादिर पाल हुए । उनके बाद उनके पुत्र साधव हुए, साधव के पुत्र रण धवल और उनके पुत्र प्रताप धवल देव हुए ।

राजा प्रताप धवल का पुत्र था राजा साहस धवल

राजा प्रताप धवल के पुत्र का नाम साहस धवल था । 12वीं सदी में राजा साहस धवल देव हुए थें । ये सर्वप्रसिद्ध राजा प्रताप धवल देव के तीसरे पुत्र थें । सासाराम के शिवसागर थाना अंतर्गत आदमपुर में एक मकान के नींव खुदाई के दौरान इनके ताम्रपत्र मिले थे ।

राजा साहस धवल का ताम्रपत्र जो सासाराम के अदमापुर गाँव में मिला था । अब यह पटना संग्राहालय में रखा हुआ है
राजा साहस धवल का ताम्रपत्र जो सासाराम के अदमापुर गाँव में मिला था । अब यह पटना संग्राहालय में रखा हुआ है

बड़ी मशक्कत के बाद इतिहासकारों को इस ताम्रपत्र को पढ़ पाने में सफलता प्राप्त हुई है । यह ताम्रपत्र एक दान पत्र है जो एक मंदिर को दिया गया है। मंदिर अम्बडा ग्राम में था जिसका वर्तमान नाम अदमापुर हो गया है। राजा साहस धवल का ताम्रपत्र लेख विक्रमी संवत 1241 का है ।

सासाराम में राजधानी एक्सप्रेस के लिए सांसद ने रेल मंत्री से गुहार लगाया | Rajdhani Stoppage in Sasaram

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Rajdhani Stoppage in Sasaram
Rajdhani Stoppage in Sasaram

सासाराम के स्थानीय सांसद छेदी पासवान ने सासाराम जंक्शन पर राजधानी एक्सप्रेसों के लिए रेल मंत्री का ध्यानाकर्षण किया है । सरकारी लेटर के द्वारा इन्होंने कल दिनांक 29 जुलाई को भारत सरकार के रेल मंत्री से 2 राजधानी एक्सप्रेसों के ठहराव के लिए गुहार लगाया है ।

2 राजधानी एक्सप्रेस के लिए रेल मंत्री को सांसद द्वारा लिखा गया लेटर
2 राजधानी एक्सप्रेस के लिए रेल मंत्री को सांसद द्वारा लिखा गया लेटर

सासाराम में रेलवे का बढ़ते हुए राजस्व को देखते हुए यात्री सुविधाओं को बढ़ाने और महत्वपूर्ण ट्रेनों का ठहराव सुनिश्चित करना चाहिए ।

“सासाराम कि गलियां” ने सांसद से राजधानी एक्सप्रेस का मांग उठाया था

इसी महीने में 12 तारीख को स्थानीय सांसद श्री छेदी पासवान को सासाराम कि गलियां ने उनके पुत्र रवि पासवान , बीजेपी नेता के माध्यम से सासाराम के विकास से जुड़ी 10 मांगो का ज्ञापन सौंपा था ।

दिनांक 12 जुलाई  2021 को सासाराम के स्थानीय सांसद श्री छेदी पासवान के समक्ष 10 मांगों को रखा गया  था । सांसद के सासाराम स्थित आवास पर उनके पुत्र श्री रवि पासवान बीजेपी नेता के माध्यम से सभी मांगों को सांसद तक पहुंचाया गया ।
दिनांक 12 जुलाई  2021 को सासाराम के स्थानीय सांसद श्री छेदी पासवान के समक्ष 10 मांगों को रखा गया  था । सांसद के सासाराम स्थित आवास पर उनके पुत्र श्री रवि पासवान बीजेपी नेता के माध्यम से सभी मांगों को सांसद तक पहुंचाया गया ।

इस मांग में राजधानी एक्सप्रेस का सासाराम शहर में ठहराव भी मुख्य बिंदु था । इसको लेकर अलग से चर्चा भी हुआ था । इतना ज्यादा राजस्व के बाद भी राजधानी एक्सप्रेस का ठहराव नहीं होना बहुत दुखद है ।

सांसद को सौपा गया "सासाराम कि गलियां" का 10 सूत्री मांग
सांसद को सौपा गया “सासाराम कि गलियां” का 10 सूत्री मांग

हमने यह भी कहा था कि रेल मंत्रालय का चीज सांसद के सीधा अधिकार में नहीं है लेकिन वह इस मांग को पूरा करवाने में जरिया जरूर हो सकते हैं । सिर्फ सांसद ही नहीं बल्कि विधायक, डीएम ,एमएलसी , राज्यसभा सांसद भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार को सासाराम के विकास के उपर फोकस करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और निभाना भी चाहिए ।

श्याम सुन्दर,कुंडल,जावेद, कासिफ ने भी संघर्ष किया है

पुलिस पब्लिक हेल्पलाइन ने भी राजधानी एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों के लिए लंबी लड़ाई लड़ती आई है । रेलवे से जुड़े मुद्दों पर इनके संगठन के लोग काफी मेहनत करते हैं। श्याम सुंदर पासवान, जावेद अख्तर ,कुंडल सिंह, कासिफ इत्यादि भी रेलवे से संबंधित मुद्दों पर संघर्ष करते हैं ।

सासाराम का राजस्व

आपको बताते चलें कि , इस वर्ष आरटीआई से हुए खुलासे के अनुसार सासाराम रेलवे स्टेशन का राजस्व पिछले वर्ष (2020-21 में) करोना से प्रभावित होने के बाद भी 20 करोड़ था , उससे पहले जब कोरोना नहीं था तब ( 2019-20 में) 38 करोड़ था । यह आस पास के सभी स्टेशनों से अधिक है । पिछले 7 वर्षों से सासाराम रेलवे स्टेशन का राजस्व सुधरता गया है । सासाराम रेलवे स्टेशन के बारे के अधिक जानकारी के लिए मेरे ऊपर क्लिक कीजिए इसके बावजूद भी राजस्व का बहाना बना कर सासाराम शहर को उसका हक नहीं देना , रेलवे के लिए शर्मनाक है ।

SP ऑफिस सासाराम लाने के लिए मुख्य सचिव बिहार को सांसद ने लिखा पत्र | SP Office Sasaram

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SP Office Sasaram
SP Office Sasaram

अगर इसी तरह सासाराम के जनप्रिनिधि और शहरवासी अपने अपने स्तर से प्रयास करते रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब, छोटे मोटे कामों के लिए एक शहर से दूसरे शहर जा कर बेवजह भागदौड़ करने से, एड़ियां घिसाने से और अतिरिक्त धन/किराया खर्च करने से रोहतास जिलावासियों को जल्द निजात मिल सकता है ।

अन्य जिलों कि तरह सारा काम कम खर्च व मेहनत में झटपट जिला मुख्यालय में ही हो सकता है । क्राइम कंट्रोल में भी सहूलियत मिल सकता है ।

अभी तक अगर आपको किसी दस्तावेज पर डीएम और एसपी का सिग्नेचर का जरूरत पड़ता है तो , इस मामूली काम के लिए दो शहरों के बीच भटकना पड़ता है । आपका पूरा दिन सिर्फ इधर से उधर करने में ही बर्बाद हो जाता है ।

कई बार अगर दूसरे शहर में जाने पर अधिकारी नहीं मिल पाते है , तो आम आदमी गाड़ी के किराया, ऊर्जा और समय बर्बादी से तंग आकर , हिम्मत हार जाता है ।

खास कर यह समस्या कैरेक्टर सर्टिफिकेट बनवाने में छात्रों को, फरियादियों को, और कोर्ट कचहरी के मुकदमों में फंसे व्यक्तियों को सबसे अधिक सताता है ।

सांसद ने समस्या के समाधान के लिए बढ़ाया कदम

Letter For SP Office Sasaram
Letter For SP Office Sasaram

सासाराम के स्थानीय सांसद श्री छेदी पासवान ने बिहार सरकार द्वारा इस समस्या को यथाशीघ्र दूर करने हेतु और एसपी ऑफिस को जिला मुख्यालय सासाराम में लाने के लिए बिहार के मुख्य सचिव को पत्र लिखा है ।

यह पत्र उनके पुत्र और बीजेपी नेता रवि पासवान द्वारा “सासाराम की गलियां” को कल रात में दिया गया था ।

सासाराम कि गलियां” ने सांसद को सौंपा था ज्ञापन

SP Office Sasaram
SP Office Sasaram was one of the important demands

तारीख को स्थानीय सांसद के आवास पर जा कर ” सासाराम कि गलियां” संगठन ने सांसद के पुत्र सह बीजेपी नेता रवि पासवान के माध्यम से सांसद को सासाराम के विकास से संबंधित 10 मांगो को सौंपा था ।

इसमें एसपी ऑफिस को जिला मुख्यालय सासाराम लाना प्रमुख मांगों में से एक था । हमने इस विकल्प पर भी विचार करने को कहा था कि , अगर किसी कारण से एसपी कार्यालय सासाराम नहीं आ पाता है तो कम से कम सप्ताह के निश्चित दिनों पर सासाराम का एसपी कार्यालय आम लोगों के सहूलियत के लिए खोला जाए ।

इस खबर को डिटेल में जानने के लिए मेरे ऊपर क्लिक कीजिए ।

आपको बताते चलें कि सासाराम में एसपी ऑफिस पहले से ही मौजूद है , लेकिन यहां पर अधिकारियों के नहीं बैठने की पुरानी परंपरा बन गई है । इस कारण आम नागरिकों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ।

सांसद को सौपा गया "सासाराम कि गलियां" का 10 सूत्री मांग
सांसद को सौपा गया “सासाराम कि गलियां” का 10 सूत्री मांग

आम नागरिकों को सहूलियत पहुंचाने के उद्देश्य से इस मांग को सांसद के समक्ष हमलोगों ने रखा था । इस मांग पर विचार करने के बाद, सासाराम सांसद ने बिहार के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर समस्या का यथाशीघ्र निदान करने का आग्रह किया है ।

क्या हमलोग जीत गए ?

यह एक सकारात्मक और उत्साह वर्धक प्रयास तथा रिस्पॉन्स है । यह जीत नहीं है, लेकिन जीत के रास्ते में बढ़ाया गया पहला कदम है ।

अगर इसी तरह सभी लोग अपने सासाराम शहर और जिला रोहतास के लिए , अपने अपने समर्थ व सुविधा अनुसार कुछ कुछ प्रयास करते रहेंगे ….निश्चित ही सासाराम तथा जिला रोहतास विकास पथ पर तेजी से अग्रसर हो जाएगा ।

राष्ट्रपति पुरष्कृत सासाराम का बेटा और झारखंड के DSP ने 10 लाख के इनामी नक्सली का इनकाउंटर कर दिया | DSP OM Prakash Tiwari – Naxalite Encounter

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DSP OM Prakash Tiwari

झारखंड का जबरदस्त पुलिस नक्सली मुठभेड़ की खबर देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है । एक डीएसपी रैंक के अधिकारी ने 10 लाख के कुख्यात इनामी नक्सली का इनकाउंटर ( Naxalite Encounter ) कर दिया , यह नक्सली पिछले कई वर्षों से झारखंड के अवाम के लिए आफ़त था तो पुलिस के लिए “जी का जंजाल” था । झारखंड सरकार के लिए सिरदर्द बन चुके इस कुख्यात नक्सली के इनकाउंटर ने देश भर में सुर्खियां बटोरी ।

जैसे ही हमें इनकाउंटर करने वाले दिलेर डीएसपी के बारे में मालूम चला , की ये सासाराम के बेटे हैं और अभी भी इनका परिवार सासाराम ही रहता है , “सासाराम कि गलियां” टीम के सभी सदस्य खुशी और गर्व से उछल पड़े ।

Table of Contents

हम जिएंगे और मारेंगे….. ऐ वतन तेरे लिए

इसी महीने में पिछले सप्ताह दिनांक 16.07.2021 को खूँटी जिला के रनिया थाना एवं चाईबासा जिला के गुदड़ी थाना के सीमावर्ती क्षेत्र में पीणपएल0एफ0आई0 के कुछ उग्रवादियों के भ्रमणशील होने की सूचना प्राप्त हुई ।

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प्राप्त सूचना के सत्यापन एवं आवश्यक कार्रवाई हेतु अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी ( डीएसपी ), तोरपा के नेतृत्व में खूँटी जिला पुलिस के सैट बल के साथ अभियान दल का गठन किया गया।

जंगल में धाएं धाएं ….धाएं

पुलिस अभियान दल द्वारा सर्च के दौरान ग्राम-बड़ा केसेल के पास अचानक पुलिस बल को लक्षित कर नक्सलियों द्वारा अंधाधुंध फायरिंग किया जाने लगा ।

पुलिस बल आत्मरक्षा करने लगी , लगभग आधे घंटे तक दोनों तरफ से धुआंधार गोलाबारी चलती रही । इस गोलाबारी के दौरान न तो नक्सली पीछे हटने को राज़ी में थें ना डीएसपी के नेतृत्व वाली पुलिस बल ।

सहायता के लिए सीआरपीएफ और एसटीएफ भी आ गई

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अतिरिक्त बल एवं अग्रतर कारवाई हेतू सी0आर0पी0एफ0-94 बटालियन एवं एक जे0जे0
एस०टी0एफ0 की टीमें भी डीएसपी के नेतृत्व वाले पुलिस का सहयोग देने मौके पर पहुंच गई ।

तीर बन के जिगर में उतर जाना है ,मार देना है तुझको ,या मर जाना है !!

लगभग आधे घंटे तक चली तबातोड़ गोलियों के बीच नक्सलियों के जोनल कमांडर को डीएसपी ने ढेर कर दिया ।

10 लाख के इनामी नक्सली का इनकाउंटर

DSP OM Prakash Tiwari
DSP OM Prakash Tiwari

आप यह जान कर दंग रह जाएंगे कि डीएसपी ने जिस नक्सलियों के जोनल कमांडर शनिचर सुरीन का इनकाउंटर किया है उसके उपर झारखंड सरकार द्वारा दस लाख रुपए का इनाम घोषित किया था । डीएसपी ने महज आधे घंटे के अंदर इस दुर्दांत नक्सली का इनकाउंटर (Naxalite Encounter) कर के झारखंड पुलिस का नाम रौशन किया है ।

जोनल कमांडर शनिचर सुरीन का शव बरामद

घटनास्थल पर सर्च के दौरान एक उग्रवादी का शव पाया गया । आस-पास के ग्रामीणों के द्वारा मृत उग्रवादी की पहचान पी0एल0एफ0आई0 के कुख्यात जोनल कमांडर शनिचर सुरीन पे० चरका सुरीन, सा0-सरिता, थाना-कामडारा, जिला-गुमला के रूप में की गयी, जिसके उपर झारखंड सरकार के द्वारा दस लाख का ईनाम घोषित है ।

शनिचर सुरीन के नाम से कांपते थे ग्रामीण

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खूँटी एवं चाईबासा जिला क्षेत्र में यह नक्सली दहशत का पर्याय था तथा उस क्षेत्र के ग्रामीण इसके आंतक से काफी भयाकान्त थे । पुलिस ने यह बात अपने प्रेस कांफ्रेंस में भी बताया था । कुख्यात नक्सली शनिचर सुरीन का इनकाउंटर झारखंड पुलिस के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धी है।

कुल 84 कांडो का अभियुक्त था यह नक्सली

पी0एल0एफ0आई0 के कुख्यात जोनल कमांडर शनिचर सुरीन के विरूद्ध हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी, आगजनी, पुलिस पार्टी पर हमला एवं अन्य नक्सली घटनाओं से संबंधित कुल 84 कांड दर्ज है, जिसमें खूँटी जिला में 32 कांड, चाईबासा जिला में 50 कांड एवं
गुमला जिला में 02 कांड दर्ज है ।

मृत कियावादी का नाम ,पता 

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पी0एल0एफ0आई0 के जोनल कमांडर शनिचर सुरीन पे० चरका सुरीन, सा०-सरिता, थाना-कामडारा, जिला-गुमला।

नक्सली के पास से भारी मात्रा में समान बरामद

मारे गए नक्सली जोनल कमांडर शनिचर सुरीन के पास से पुलिस ने भारी मात्रा में सामान भी बरामद किया है , जो की इस प्रकार है ।

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देसी-9 एम0एम0 पिस्टल-04 पीस , देसी 7.65 एम0एम0 पिस्टल-04 पीस ,मैंगजीन-02 पीस, जिंदा गोली-22 राउंड ,खोखा-07 पीस ,8/807£/४6 कंपनी का एक वायरलेस सेट, स्मीट फोन-06,मोबाईल सिम-04,मोटरसाईकिल-08,पीठूबैग-03,पाउच-03, प्रतिबंधित पी0एल0एफ0आई0 संगठन के लेवी मांगने के पर्चे एवं चंदा रशीद ,जरूरी दस्तावेज ,दैनिक जरूरतों के अन्य सामान

150 वर्ष पुराना धूप घड़ी डेहरी में , आज भी समय बताता है | Dhoop Ghadi Dehri On Sone | Sundial Dehri Rohtas

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Dhoop Ghadi Dehri On Sone
Dhoop Ghadi Dehri On Sone

आधुनिक युग में जहां बाजार में सैकड़ों कम्पनियों की ब्रांडेड घड़ियां बाजारों में छाई हुई हैं, वहीं सासाराम/रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन में आज भी लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी धूप घड़ी का उपयोग उस रास्ते से आने-जाने वाले लोग समय देखने के लिए करते है .

कोणार्क मंदिर की तरह है धूप घड़ी

जिस तरह कोणार्क मंदिर के पहिए सूर्य की रोशनी से सही समय बताते हैं, उसी तरह डेहरी ऑन सोन में अंग्रेजो द्वारा स्थापित धूप घड़ी भी काम करती है.

सिंचाई यांत्रिक प्रमंडल में है धूप घड़ी

धूप घड़ी डेहरी
धूप घड़ी डेहरी

यह धूप घड़ी डेहरी स्थित सिंचाई यांत्रिक प्रमंडल में मौजूद है . यह घड़ी आज भी स्थानीय लोगों के समय देखने के काम आती है.

अंग्रेजो ने बनवाया था यह घड़ी

सन् 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के कुछ वर्ष बाद से ही डेहरी के अंग्रेज सैनिक छावनी में हलचल बढ़ने लगी थी. अंग्रेजों को अपने वैश्विक अनुभवों से यह बात बखूबी मालूम था की बगावत को विकास के जरिए शासन का हथकंडा बनाया जा सकता है .

अंग्रेज फौजी इंजिनियर डिकेंस के नेतृत्व में सासाराम, डेहरी, भोजपुर, बक्सर में एक साथ विकास के कई काम शुरू हुए . सासाराम जिला में डेहरी स्थित सोन नदी में बांध का निर्माण और नहरों की खुदाई, आईटीआई की स्थापना के साथ ही एक अभियांत्रिकी वर्कशॉप के काम एक्टिव मोड में थे .

धूप घड़ी डेहरी ,सासाराम,रोहतास
धूप घड़ी डेहरी ,सासाराम ( रोहतास )

काम की प्राथमिकता समय के साथ जुड़ी थी तो उन्होंने कामगारों के लिए धूप घड़ी का भी निर्माण कराया जिसके पूरा होने के 150 वर्ष पूरे हो चुके हैं ।

सन् 1871 में बना था धूप घड़ी डेहरी

बता दें कि यह घड़ी ब्रिटिश शासन काल में बनाई गयी थी. 1871 में स्थापित यह घड़ी बिहार की ऐसी घड़ी है, जिससे सूर्य के प्रकाश के अनुसार समय का पता चलता है.

इसी से दिन होता शुरू ….इसी पर होता था खत्म

भारत के आजादी से पहले अंग्रेजों ने सिंचाई विभाग में कार्यरत कामगारों को समय का जानकारी कराने के लिए इस घड़ी का निर्माण कराया था. इसी घड़ी से समय देखकर कामगारों का दिन शुरू होता था , और घड़ी का समय देख कर दिन का काम बन्द किया जाता था।

धूप घड़ी का बनावट

धूप घड़ी के बीच में मेटल अर्थात धातु की तिकोनी प्लेट लगी है. एंगल / कोण के हिसाब से उसपर नंबर अंकित किए हुए हैं . धूप घड़ी एक ऐसा यंत्र है, जिससे दिन में समय की गणना की जाती है, और इसे नोमोन कहा जाता है. घड़ी को एक चबूतरे पर स्थापित किया गया है.

रोमन और हिंदी में देखें समय

धूप घड़ी में रोमन और हिन्दी के अंक लिखे हुए हैं
धूप घड़ी में रोमन और हिन्दी के अंक लिखे हुए हैं

धूप घड़ी ( Sundial Dehri Rohtas ) में रोमन और हिन्दी के अंक लिखे हुए हैं. इसके माध्यम से सूर्य के प्रकाश से समय देखा जाता था. इसी वजह से इसका नामकरण धूप घड़ी हुआ. उस समय नहाने से लेकर पूरा दिन भर का सारा काम समय के आधार पर किया जाता था .

क्या कहते हैं इतिहासकार

सासाराम रेडियो स्टेशन में कार्यरत के.पी जायसवाल शोध संस्थान पटना के शोध अन्वेषक डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी जी धूप घड़ी के बारे में बताते हैं कि जब घड़ी आम लोगों की पहुंच से दूर थी, तब डेहरी के धूप घड़ी का बहुत महत्व था. यांत्रिक कार्यशाला में काम करने वाले श्रमिकों को समय का ज्ञान कराने के लिए यह घड़ी अंग्रेजो द्वारा स्थापित की गई थी.

सूर्य के रौशनी से चलता है धूप घड़ी 

श्याम सुन्दर तिवारी जी ने बताया की यह यंत्र इस सिद्धांत पर काम करता है कि दिन में जैसे-जैसे सूर्य पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता है, उसी तरह किसी वस्तु की छाया पश्चिम से पूर्व की तरफ चलती है.

Sundial Dehri Rohtas
Sundial Dehri Rohtas

सूर्य लाइनों वाली सतह पर छाया डालता है, जिससे दिन के समय घंटों का मालूम चलता है . आपको बताते चलें कि समय की विश्वसनीयता के लिए धूप घड़ी को पृथ्वी की परिक्रमा की धुरी की सीध में रखना चाहिए .

संरक्षण की जरूरत है

यह घड़ी खुले में अपने जीवन के दिन गिन रहा है . छोटी सी चारदीवारी में स्थित इस घड़ी को सिसे से कवर करवाने कि जरुरत है . इस घड़ी को संरक्षित करने की जरूरत है. अगर इसे संरक्षित नहीं किया गया तो यह धरोहर नष्ट हो जाएगी और आनेवाली पीढ़ी धूप घड़ी देखने से भी वंचित हो जाएगी.

ऐसे पहुंचे धूप घड़ी डेहरी-ऑन-सोन

धुप घडी डेहरी ऑन सोन जाने का खूबसूरत  मार्ग
धुप घडी डेहरी ऑन सोन जाने का खूबसूरत मार्ग

जिला मुख्यालय सासाराम से रेल और सड़क मार्ग से डेहरी अनुमंडल का सीधा संपर्क है . आप पैसेंजर ट्रेन या बस, ऑटो से डेहरी जा सकते हैं . डेहरी पहुंच कर आप ऑटो या ई रिक्शा से धूप घड़ी पहुंच सकते हैं .

काले बादल, रिमझिम बारिश, कल कल बहते झरने और तृप्ति करती ठंडी हवाएं बुला रही हैं गीता घाट आश्रम , सासाराम | Gita Ghat Ashram

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Gita Ghat Ashram Sasaram
Gita Ghat Ashram Sasaram

इस मानसून में आप घर में बैठ कर बारिश का आंनद ले रहें होंगे । काले बादल, रिमझिम बारिश और गर्मी से राहत देतीं ठंडी हवाएं ऐसे मौसम में तो एक ही जगह दिखाई देती है वो है बिहार का सासाराम । प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस शहर में और सासाराम अनुमंडल तथा जिला क्षेत्र के आस पास के इलाकों में कई खूबसूरत फॉल्स मौजूद हैं, जहां आप जन्नत का मज़ा ले सकते हैं।

दिल को सुकून पहुंचाने वाले फॉल्स को ढूंढ रहे हैं तो सासाराम का गीता घाट फॉल और आश्रम आपको मानसून के इस खूबसूरत मौसम में घूम ही आना चाहिये ।

यह कश्मीर नहीं, "गीता घाट आश्रम सासाराम " है
यह कश्मीर नहीं, “गीता घाट आश्रम सासाराम ” है

सासाराम शहर से मात्र 10 किलोमीटर दूरी पर गीता घाट आश्रम ( Gita Ghat Ashram ) मौजूद है । यहां पर एक सुंदर झरना भी मौजूद है, जिसकी बात हमलोग कर रहे हैं । ये जगह पिकनिक मनाने के लिए शानदार है।

ये वॉटरफॉल इतना खूबसूरत है कि पहली नजर में आपका मन मोह लेगा। ऊँचाई से गिरता हुआ पानी जब नीचे पत्थरों पर पड़ता है तो वो नजारा बेहद खूबसूरत होता है। बिहार के ज्यादातर लोग इस खूबसूरत वॉटरफॉल के बारे में जानते हैं लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिन्हें इसके राजसी सौंदर्य का बिल्कुल अंदाजा नहीं है ।

सावन आया, बादल छाए …बोलो तुम कब आओगे

पहाड़ी पर गीता घाट आश्रम जाने का रास्ता
पहाड़ी पर गीता घाट आश्रम जाने का रास्ता

आपको यहाँ बारिश के मौसम में आना चाहिए। इस समय ये वॉटरफॉल पानी से लबालब भरा रहता है। लेकिन बारिश के समय वॉटरफॉल के नीचे की चट्टानें बेहद फिसलाऊ हो जाती हैं इसलिए सावधानी जरूर रखें।

गीता घाट आश्रम , सासाराम
गीता घाट आश्रम , सासाराम

परिवार और दोस्तों के साथ पिकनिक मनाना चाहते हैं तो आपको इस जगह पर आना चाहिए । गीता घाट वॉटरफॉल को घूमने का सबसे सही समय जुलाई से अगस्त तक है ।

विश्व विख्यात गीता घाट बाबा 

परमहंस स्वामी शिवानंद जी तीर्थ “गीता घाट बाबा”
परमहंस स्वामी शिवानंद जी तीर्थ “गीता घाट बाबा”

सासाराम की संत परंपरा के प्रतीक रहे परमहंस स्वामी शिवानंद जी तीर्थ “गीता घाट बाबा” सन् 1950 के दशक के उत्तरा‌र्द्ध में बाबा कैमूर पहाड़ी क्षेत्र में आये थे । कई वर्षो तक यहां साधना में लीन रहने के क्रम में उनकी ख्याति देश विदेश तक फैली थी ।

गीता घाट बाबा का बाघ से सामना

कुटिया में मौजूद गीता घाट बाबा के उत्तराधिकारी , "सासाराम कि गलियां" से खास मुलाक़ात
पहाड़ के ऊपर कुटिया में मौजूद गीता घाट बाबा के उत्तराधिकारी , “सासाराम कि गलियां” से खास मुलाक़ात

इन्होंने आज के गीता घाट आश्रम के परी माई (गदहिया कुंड) में आकर तप प्रारंभ कर दिया । लगातार 22 दिनों तक तप साधना किया । इस दौरान बाघ से भी इनका सामना हुआ । इस स्थान पर बाघ पानी पीने आते थें । बाबा को तप में लीन देख कर भय से बाघ ने पानी पीना छोड़ दिया ।

पहाड़ के ऊपर गीता घाट बाबा के उत्तराधिकारी का कुटिया
पहाड़ के ऊपर गीता घाट बाबा के उत्तराधिकारी का कुटिया

बाबा ने बाघ को सहलाया और बाघों को भयमुक्त होकर पानी पीने के लिए उस स्थान को छोड़कर शीतल कुंड झरना पर चले गए । ये भी आज के गीता घाट आश्रम में ही है ।

सासाराम के साहू टाकीज मुक्तश्रम में ब्रम्हलीन हुए

आज भी भौतिकता, मोहमाया ,टेक्नोलॉजी और बाहरी दुनिया के चमक दमक से दूर गीता घाट बाबा के उत्तराधिकारी पहाड़ पर प्रकृति के गोद में रहते हैं
आज भी भौतिकता, मोहमाया ,टेक्नोलॉजी और बाहरी दुनिया के चमक दमक से दूर गीता घाट बाबा के उत्तराधिकारी पहाड़ पर प्रकृति के गोद में रहते हैं

सादगी-त्याग के प्रतीक बाबा के शिष्य प्रत्येक वर्ग के किसान, व्यवसायी, अधिवक्ता, डाक्टर, इंजीनियर से ले प्रोफेसर तक हैं । बाबा का देहावसान वर्ष 1996 में सासाराम शहर के साहू टाकीज मुक्ताष्रम में हुआ था ।

गुरु पूर्णिमा पर गीता घाट में मेला लगता है

गीता घाट पहाड़ी के निचे गीता घाट बाबा के अन्य शिष्य भजन कीर्तन करते हुए
गीता घाट पहाड़ी के निचे गीता घाट बाबा के अन्य शिष्य भजन कीर्तन करते हुए

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गीता घाट आश्रम (Gita Ghat Ashram) में बड़ी संख्या में श्रद्धलुओं का जमावड़ा लगता है । दूर दराज से भक्त आते हैं और पूजा ,अर्चना के बाद मेला का आनंद लेते है ।

नदी के रास्ते गीता घाट झरना का सफ़र यादगार होता है

नदी से गीता घाट झरना जाने का रास्ता
नदी से गीता घाट झरना जाने का रास्ता

गीता घाट आश्रम से झरना तक का सफ़र बहुत ही रोमांचक होता है , इस दौरान आपको नदी कि गहराई ,चट्टानों की ऊंचाई और काई का ध्यान भी रखना पड़ता है । कई जगहों पर नदी का किनारा आपको “तिनके को सहारा” की तरह प्रतीत होगा ।

नदी के रास्ते गीता घाट वॉटरफॉल जाते युवा सैलानी
नदी के रास्ते गीता घाट वॉटरफॉल जाते युवा सैलानी

जबकि कई जगहों पर नदी में उतरे बिना झरना तक पहुंचने का कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं रहेगा । ऐसे में नदी के रास्ते गीता घाट झरना तक जाने में विशेष सावधानी बरतना चाहिए ।

ऐसे पहुंचे गीता घाट आश्रम सासाराम ( Gita Ghat Ashram )

गीता घाट आश्रम प्रवेश द्वार , धरबैर गांव, दरिगांव थाना , सासाराम अनुमंडल
गीता घाट आश्रम प्रवेश द्वार , धरबैर गांव, दरिगांव थाना , सासाराम अनुमंडल

सासाराम शहर से कादिरगंज – दरिगांव सड़क के माध्यम से लगभग 10 किलोमीटर का सफ़र  करके धरबैर गांव पहुंचीए । धरबैर गांव में एक विशाल मुख्य प्रवेश द्वार बना हुआ है । इस द्वार के जरिए आप गांव को बिचो बीच पार करते हुए गीता घाट आश्रम पहुंच जाएंगे ।

गीता घाट आश्रम का रास्ता हिल स्टेशन का आनंद देता है
गीता घाट आश्रम का रास्ता हिल स्टेशन का आनंद देता है

यहां पर गीता घाट बाबा के शिष्यों के कई साधना आश्रम बने हुए हैं । यहीं पर गीता घाट फॉल भी देखने को मिल जाएगा ।

पॉइंट्स टू बी नोटेड , माई लॉर्ड

“सासाराम कि गालियां” संगठन आपसे अनुरोध करती है कि किसी भी जलप्रपातों पर भ्रमण करने से पहले इन बातों का जरुर ध्यान रखें :-

Gita Ghat Ashram
Gita Ghat Ashram
  • गीता घाट पर्यटन स्थल के साथ आध्यात्मिक स्थल भी है, इसलिए इसके शुद्धता का पूर्ण ख्याल रखें, परंपरा का सम्मान करें ।
  • यहां पर मांस मछली, शराब इत्यादि जैसी चीजें जो सनातन संस्कृति में वर्जित है ,बिल्कुल भी इस्तमाल नहीं करें ।
गीता घाट का नज़ारा आखों को सुकून देता है
गीता घाट का नज़ारा आखों को सुकून देता है
  • सेल्फी लेने के लिए जलप्रपात के खतरनाक जगहों पर बिल्कुल नहीं जाएं ।
  • बारिश के कारण फिसलन का डर है , इसलिए पहाड़ पर चढ़ाई और उतरने के दौरान विशेष सावधानी रखें ।
गीता घाट आश्रम धरती पर स्वर्ग का अनुभव कराता है
गीता घाट आश्रम धरती पर स्वर्ग का अनुभव कराता है
  • सेल्फी लेने के लिए पहाड़ के एकदम किनारे पर नहीं जाएं, फिसलन से छटकने का डर है ।
  • घाट पहाड़ का घाटी वर्टिकल है ,इसलिए किनारे जाते समय सावधानी रखें ।
  • जलप्रपात में तेज उफान वाले जगहों के अत्यधिक करीब जाने का प्रयास बिल्कुल नहीं करें, इन जगहों पर खतरों की अंदेशा हमेशा बनी रहती है । 
लापरवाह लोगों द्वारा पिकनिक मनाकर गीता घाट में फेंका गया कूड़ा
लापरवाह लोगों द्वारा पिकनिक मनाकर गीता घाट में फेंका गया कूड़ा
  • कृपया पिकनिक मनाकर इधर उधर प्लास्टिक, पत्तल, ग्लास, खाना और कूड़ा फेंक कर पर्यटक स्थल व प्रकृति को गन्दा नहीं करें  । इससे नदी में प्रदुषण होता है और जंगली जानवरो द्वारा खाने का भी खतरा रहता है ।
गीता घाट आश्रम शीर्ष से आप प्रकृति की खूबसूरती को बेहद करीब से देख सकते हैं और इसका आनंद ले सकते हैं
गीता घाट आश्रम शीर्ष से आप प्रकृति की खूबसूरती को बेहद करीब से देख सकते हैं और इसका आनंद ले सकते हैं

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