तुम्हारी छाया बनकर रही जब तक मैं तुम्हारे साथ रही। तुम्हारी हर चीज़ मेरी थी, आज भी है। खाना मेरी पसंद का बनाती और पेट भर जाने के बाद भी खिलाती रहती। पापा की डाँट से तुम हमेशा बचाती। मेरी बीमारी में सिरहाने बैठी रहती। ठीक हो जाने पर भगवान को लड्डू चढ़ाती और मेरी बालाएं लेती थी। तुम अपने लिए साड़ी खरीदती तो मुझ पर लगा कर देखती थी। बाद में वह मुझे दे देती थी। मेरी शादी में तुमने अपने गहने तुड़वाकर मेरे बनवाए थे। पायजेब तो अपनी ही दे दी थी। नई-नई 4-5 साड़ियां ये कहकर दे दीं कि चटकीले रंग इस उम्र में तुम पर अच्छे नहीं लगते। तुम्हारा स्नेह, त्याग और ममता देखकर मैं हमेशा अभिभूत थी। मेरी जैसी माँ किसी और की नहीं हो सकती- यह अनुभूति मन को आह्लादित कर देती। तुम- सा बनने की अब तक कोशिश ही कर रही हूँ।
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सोनाली अपनी मां विभा श्रीवास्तव के साथ ,गौरक्षणी |
मैं विदा होकर अपने नए घर आई। यहाँ भी एक बेटी थी मेरी तरह, अपनी माँ की लाडली। माँ की ही नहीं, अपने भाई और पिता की भी लाडली। उसकी छोटी सी बात भी खूब शाबाशी लूटती। कभी आँखों में आंसू भरते तो माँ के आँचल में ही सूखते। जिस दिन लड़केवाले देखने आये थे और पसंद कर लिया उस दिन उसने मेरी फिरोजी साड़ी पहनी थी। उसकी शादी में मेरी तीन कढ़ाईदार साड़ियां और मैचिंग की चूड़ियां विदाई में दी गईं।
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सरदार सत्यवीर सिंह ,गुरुद्वारा रोड |
मेरा डिनरसेट और मिक्सी भी। ये वही डिनर सेट था जिसे तुमने घरखर्च से पैसे बचा कर ख़रीदा था। शादी के बाद जब भी वो आई, अपनी माँ से घंटों बातें करती। कभी-कभी दोनों की आँखें भर आतीं। कभी दोनों खिलखिलातीं। मैं हमेशा अकेली छूट जाती।
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इंतेखाब अली खान ,बड़ा शेखपुरा |
मैं भैया की शादी में मायके बड़ी मुश्किल से आ पाई। ननद के पैर भारी थे, उसे मायके बुला लिया गया था। खाने-पीने से लेकर स्वस्थ्य का ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी थी। तुमने पापा के हाथों ये सन्देश भिजवाया कि बिटिया को भेज दो, बहन का रस्म कौन निभाएगा? मैं सगाई में आई।
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सरदार अर्जुन सिंह ,गुरुद्वारा रोड |
फिर शादी में भी खूब मजे किए। अब मेरे घर भाभी आ गई थी। मैं बहुत खुश थी क्योंकि मेरे जाने के बाद तुम बहुत अकेली हो गई थी। अपना सुख-दुःख साझा करने को तुम्हारे पास अब मेरे जैसी, किसी और की बेटी आ गई थी। चेहरे पर मुस्कराहट, आँखों में स्नेह और आवाज़ में मिठास तुम जैसी !
भैया की शादी के बाद मुझे विदाई में तुमने मेरे पसंद की लाल साड़ी दी। और साथ में भाभी के कान के मीनाकारीवाले टॉप्स। ये बात मुझे बाद में पता चली। भैया ने टॉप्स की डिब्बी लाकर दी थी तो मुझे लगा कि बाज़ार से मंगवाए हैं। पापा ने भी हाथ में लेकर देखे थे। मैंने बाद में भाभी को चुपचाप वापस करने की कोशिश की मगर उसने ली नहीं। फिर मैंने उसके जन्मदिन पर एक अंगूठी उपहार दी।
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विक्की सिंह |
माँ तुम्हारे घर में बहू की पायल झनकती थी मगर तुम्हारा मन उससे कभी स्पंदित नहीं हुआ। वो, सबकी मांग तुम्हारी तरह ही हँस-हँस कर पूरी करती थी, तुम्हें कमियां पहले दिखतीं। कमियां थीं, क्यों नहीं रहेंगी? मगर तुम उसे नहीं, मुझे बताती थी। मैं खुद अपनी कमियों से सीख रही थी। जब मैं आती थी तो देर रात तक तुम्हारे साथ बिस्तर पर बातें किया करती। मन में दुनिया भर के दुःख-दर्द जो तुम समेटकर रखती थी मेरे सामने उड़ेलकर खाली हो लिया करती। कभी-कभी पापा भी शामिल हो जाते। फिर भाभी जब तुम्हें दवा देने आती तो तुम क़दमों की आहट से चुप हो जाती।
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अंकित राज ,नई एरिया |
भाभी के साथ ही फ़्रिज आया था हमारे घर। पापा सुबह-सुबह फ्रिज की ठंडी लस्सी पीते, तुम चाय की शौकीन। भाभी चाय बनाकर अपने कमरे में ले जातीं और भैया के साथ पीती थीं। नाश्ता वही बनता जो उन्हें करना है। तुम उनदोनों को कुछ नहीं बोलती, मुझे बताकर मन हल्का कर लेती। तुम्हारे बहू लाने की चहक मैंने देखी है, पाँव ज़मीन पर नहीं थे।
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अभिजीत , शोभागंज |
भाभी के मायके से पूरे कुनबे के लिए कपड़े आए थे। लिस्ट में ऐसे भी नाम थे जिन्हें शायद मैंने एक-दो बार ही देखा हो। तुम और पापा ने सभी को जोड़ों में बुलाकर रस्म पूर्वक ये कपड़े बांटे थे। सबने कहा, शादी बहुत अच्छी की है और बहू भी चुनकर लाई है। उसके आने से घर में रौनक आ गई। मगर भाभी के आंसू को किसी का आँचल नहीं मिला।
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रोहित गुप्ता ,माइको |
वह मायके जाने की जिद्द में रूठकर बैठी थी। भैया की नाराज़गी साफ़ दिख रही थी। लेकिन शाम में वह रसोई में ख़ामोशी से रोटियां बेल रही थी। बार-बार भीगी आँखें पोंछ रही थी, दादाजी के देहावसान पर मन वहीं अटका था। वो न जाने को मजबूर थी। बड़ी बुआजी हमारे घर आने वाली थीं। फूफाजी के जाने के बाद पापा उनके ग़म में उदास थे, कुछ दिन बहन को साथ रखना चाहते थे। भाभी की लगभग हर बात तुम सब तय करते थे- घर की जरूरत के अनुसार।
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जय विशाखा ,शांति नगर ,सासाराम |
तुम्हारी बीमारी की खबर सुनकर मैं भागकर आती। आधी बीमारी तो मुझे देखकर दूर हो जाती। भाभी भी अपनी माँ की बीमारी सुनकर छटपटा जाती। किसी के रोके नहीं रुकती। जाने के बाद आने का पता नहीं रहता। बच्चे को जैसे-तैसे तुम और भैया संभालते। उसके पीछे भाग-भागकर तुम कितना थक जाती।
मेरे हर जन्मदिन पर तुमने मुझे नए कपड़े दिए हैं, और मैं पहनकर इठलाई हूँ। मेरे ससुराल में भी बेटियों को जन्मदिन पर उपहार मिलते हैं। यूँ भी मिलते हैं जब कभी वो आती हैं। मैं आपके पास नहीं आती तो शायद अपना जन्मदिन भूल जाती, ससुराल में मुझे सिर्फ देना होता है। लेने के लिए तो बस माँ तुम्हारा आँचल है। तुमसे मांगते हुए आज भी झिझक नहीं है। तुम कभी ‘ना’ नहीं कहती।
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उत्कर्ष ,करन सराय |
छोटे भैया की शादी हुई तो नई भाभी को तुमने कुछ मामलों में आज़ादी दे दी। जहाँ तुम दोनों का मन नहीं मिलता वहां तुम्हें शिकायतों के लिए हमेशा की तरह मैं ही मिलती थी। तुमने मुझे चाँदी की तगड़ी दी- यह बात छोटी भाभी को बहुत अखरी थी।
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रवि सोनी ,लश्करीगंज |
अंत में तुमने लॉकर से अपनी सोने की चूड़ियां निकलीं और दोनों भाभियों को दो-दो बाँट दीं। अब तुम्हारे पास गहने के नाम पर सिर्फ एक मंगलसूत्र बचा था जो तुम्हारे गले में दिखता है। तुम और मैं आज भी सहेली हैं, राज़दार हैं। आज भी अपनी बात कहने को तुम मेरा इंतज़ार करती हो। और मैं भी अपना मन तुम्हारे पास ही हल्का करती हूँ। माँ वहां भी है, माँ यहाँ भी है। ममता वहाँ भी है, यहाँ भी है। लेकिन किसको कहाँ क्या नहीं मिलेगा, यह बिना कहे हमें पता है।
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राहुल कुशवाहा ,गौरक्षणी |
मेरी बेटी की शादी होने वाली है। वो अपनी नई ज़िन्दगी के सपने संजो रही है। कई बार आँखें भी भर लेती है, छोड़ कर नहीं जाना चाहती। मुझे भी अपने मन को समझाना पड़ता है। कल वो चली जाएगी …..अपना घर बसाने। मैं चाहती हूँ कि जो कुछ वह छोड़कर जा रही है, उसे वो सब वहां मिल जाए। यहाँ आकर खोजना न पड़े! और जो बेटी यहाँ आएगी, उसे छूटी हुई चीज़ पाने के लिए अपने मायके कभी न जाना पड़े…….
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लेखक – अमृता मौर्य ( सीनियर राष्ट्रीय पत्रकार ,iimc में रविश कुमार की क्लासमेट )