ये सासाराम रेलवे स्टेशन पर रविवार को भटकती वो माताएँ है जो आजकल लाॅक डाउन में दाने दाने को मोहताज हैं । इनकी संतानों ने तो इन्हें त्याग ही दिया है हमारे निर्मम सिस्टम में भी इनके लिए कुछ नहीं है । पिछले कई दिनों से सासाराम के रेलवे स्टेशन पर ऐसे हीं भटकते हुए पाई जाति हैं । कोई समाजसेवी खाना लेकर जाता है ,और इनपर नजर पड़ती है तो इन्हे भी भोजन मिल जाता है , वर्ना भगवान ही मालिक रहता है उस दिन के लिए । सरकारी सिस्टम भी इस मामले में सुस्त है, शहर में ऐसे कई लोग घूमते हुए अक्सर मिल जाते हैं , जिनका कोई भी अपना नहीं होता । ऐसे लोगों के लिए सरकारी वृद्धाश्रमों की भी समुचित व्यवस्था नहीं है , जहां इनका प्रॉपर देख भाल किया जा सके ।
जब तक अंग्रेज थें , उस समय ये मान लिया जाता था कि वो अपने नहीं है । लेकिन आजादी के बाद कई सरकारें आई गई ,किसी ने इस ओर ठोस पहल नहीं किया । कुछ कानून जरूर बनें ,लेकिन उसको अमलीजामा पहनाया नहीं जा सका । तभी तो आए दिन ,छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों तक से इस तरह की मन को विचलित करने वाली ख़बरें आते रहते हैं ।
तस्वीर : बृजेश जी (जॉर्नलिस्ट )