Friday, October 24, 2025
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शाहाबाद केआस्था का केंद्र मां आरण्य देवी मंदिर में युधिष्ठिर ने रखा था प्रतिमा | आरा शहर

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भोजपुर के जिला मुख्यालय का नामकरण जिस देवी के नाम पर हुआ है वो मां आरण्य देवी ही हैं । मां आरण्य देवी प्राचीन काल से इलाके के लोगों की आराध्य हैं । मां आरण्य देवी मंदिर में विराजमान मां आरण्य , नगर की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है।

प्राचीन काल से पूजा ,लेकिन मन्दिर बाद में बना

मां आरण्य देवी मंदिर तो बहुत पुराना नहीं है लेकिन सनातन धर्मग्रंथों में यहां प्राचीन काल से मां आरण्य देवी पूजा का वर्णन मिलता है । संवत् 2005 में स्थापित हुआ था मंदिर ।

मां आरण्य देवी प्राचीन काल से पुजी जाति हैं

कई किदवंतीयां मशहूर हैं, इनका जुड़ाव महाभारत काल से है । कई जगहों पर भगवान राम के जनकपुर गमन के प्रसंग से भी जोड़ा जाता है ।

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इतिहास के अनुसार इस मंदिर के चारो ओर पहले जंगल था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में भी ठहरे थे। पांडवों ने यहां आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की।

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मां ने युधिष्ठिर को आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करने का स्वप्न में संकेत दिया था । जिसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित किया था ।

वास्तुकला

संवत् 2005 में स्थापित यह मंदिर संगमरमर टाइल्स द्वारा निर्मित है । मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा की ओर है । मुख्य द्वार के ठीक सामने मां की भव्य प्रतिमाएं हैं।

द्वापर युग से संबंध

द्वापर युग में इस स्थान पर राजा म्यूरध्वज राज किया करते थें । इन्हीं के शासन काल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ यहां पहुंचे थे। उन्होंने राजा के दान की परीक्षा भी लिया ।

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इस मंदिर में छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी और बड़ी प्रतिमा को सरस्वती का रूप माना जाता है।

नवरात्र में उमड़ता है श्रद्धालुओं का हुजूम

Navratra Crowd in Aranya Devi Temple Arrah

शारदीय व चैती नवरात्र पर विशेष पूजा अर्चना को भक्तगण पहुंचते हैं । अन्य प्रदेशों से भी काफी संख्या में भक्त लोग पूजा अर्चना को यहां आते हैं। उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं कि संख्या अच्छी खासी रहती है ।

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शारदीय नवरात्र की सप्तमी की अहले सुबह यहां विशेष आरती की जाती है और विशेष प्रसाद की व्यवस्था रहती है । मंदिर की सजावट और मां के भव्य शृंगार के लिए कोलकाता से विशेष माली बुलाए आते हैं। विशेष फूलों से पूरे मंदिर की सजावट की जाती है।

मंदिर कैसे पहुंचे ?

आरण्य देवी का मंदिर स्थानीय रेलवे स्टेशन से उत्तर तथा शीश महल चौक से लगभग 2 सौ मीटर उत्तर-पूर्व छोर पर स्थित है । यहां आवागमन के साधन/ट्रांसपोर्ट सुलभ उपलब्ध रहते हैं । आपको बताते चलें कि मंदिर के आस-पास पूजा सामग्रियों की दुकानें सजी रहती है ।

मां तुतला भवानी हैंगिंग ब्रिज का आज हुआ उद्घाटन, अब जा सकेंगे आम नागरिक ,मन्दिर भी खुल गया

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मां तुतला भवानी हैंगिंग ब्रिज का उद्घाटन

आज मंगलवार 22 सितम्बर 2020 को जिला रोहतास के मां तुतला भवानी धाम में नवनिर्मित हैंगिंग ब्रिज का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के द्वारा संपन्न हुआ । वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उद्घाटन समारोह को संपन्न किया गया । इस मौके पर डीएफओ सहित कई कनी अधिकारी भी मौजूद रहें ।

मां तुतला भवानी हैंगिंग ब्रिज का आज हुआ उद्घाटन
Tutla Bhawani Udghatan | image Ankit Rajput

आपको बताते चलें कि, वन विभाग द्वारा बाल्मीकिनगर टाइगर प्रोजेक्ट में निर्मित झूले की तर्ज पर यहां भी हैंगिग ब्रिज का निर्माण किया गया है ।

यहां से आया था आईडिया

Tutla Bhawani Udghatan | image Ankit

मां तुतला भवानी धाम में हैंगिंग ब्रिज निर्माण की योजना उपमुख्य मंत्री के आप्त सचिव शैलेंद्र ओझा ने बाल्मीकिनगर टाइगर प्रोजेक्ट में निर्मित झूले को देखकर बनाया था ।

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हैंगिग ब्रिज का निर्माण मां तुतला भवानी धाम वाटर फॉल होकर गुजरने वाले रास्ते पर किया गया है।

इको टूरिज्म स्पॉट के रूप में विकसित हो रहा प्राचीन मां तुतला धाम

Tutla Bhawani Udghatan | image Ankit Rajput

सरकार द्वारा कैमूर वन्य आश्रयणी प्रबंधन योजना के तहत 58.28 लाख की लागत से कैमूर पहाड़ी की गोद मे बसे अनुमंडल क्षेत्र के प्राचीन तुतला भवानी धाम को इको टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा रहा है ।

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हैंगिंग ब्रिज के निर्माण के अलावा , वहां पर धाम तक जाने के रास्ते को ऑल वेदर रोड निर्माण भी किया जा रहा है, ताकि बरसात के मौसम में भी मंदिर तक पर्यटक आराम से जाकर माता का दर्शन करते हुए वाटर फॉल का आनंद उठा सकें।

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हर साल 4-5 लाख पर्यटक आते हैं यहां

सरकारी आंकड़ों के अनुसार हर साल 4 से 5 लाख की संख्या में यहां लोक एवं अंतर राज्यीय पर्यटक मंदिर में दर्शन पूजन करने एवं वाटरफॉल देखने आते हैं।

आज से मंदिर भी खुला

Tutla Bhawani Dham | image Ankit Rajput

लॉकडॉउन के मद्देनजर मंदिर परिसर कई दिनों से बन्द था, आज से मंदिर खुल गया है । श्रद्धालु माता के दर्शन करने जा सकते हैं ।

भारत का वो बादशाह , जिसके डर से हुमायूँ 15 साल बाहर रहा हिंदुस्तान से | चौसा युद्ध

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Chausa Yuddh Shershah himayun

बक्सर जिला पूर्वी उत्तर प्रदेश सीमा के किनारे भारत के पूर्वी राज्य बिहार का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है जो कि मध्यकाल में बक्सर की लड़ाई और हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा की लड़ाई के लिए दुनिया भर में मशहूर हुआ था ।

पौराणिक सनातन संस्कृति के गर्भ में चौसा

महरिष च्यवन मुनि से चौसा का पुराना रिश्ता रहा है, इन्हीं के नाम पर इसका नामकरण चौसा हुआ था । चौसा का इलाका गंगा नदी के किनारे बसा एक छोटा-सा कस्बा है ।

मध्यकाल में चौसा युद्ध दुनिया भर में मशहूर 

27 जून 1539 ई. को चौसा में हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच चौसा का भीषण युद्ध हुआ था। इस युद्ध में आक्रांता हुमायूँ बुरी तरह पराजित हुआ और उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। वह अपने घोड़े के साथ गंगा में कूद गया और एक कस्ती की मदद से डूबने से बच गया था।

शेरशाह का सुल्तान बनने का सफ़र

चौसा युद्ध में विजय के बाद शेरशाह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया और उसने ‘सुल्तान- ए-आदिल’ की उपाधि धारण किया ।आपको बताते चलें कि, हमायूँ  का सबसे बड़ा शत्रु शेर खाँ ही था ।

बंगाल में विजय प्राप्ति के बाद हुमायूँ निश्चिंत होकर आराम फरमाने लगा था । हुमायूँ को बंगाल में आराम करता देख शेर खाँ ने क्रमशः चुनार, बनारस, जौनपुर, कन्नौज, पटना, इत्यादि पर अधिकार स्थापित कर लिया । शेरशाह के इन उपलब्धियों ने हुमायूँ को विचलित कर दिया था ।

कमजोर पड़ा हुमायूँ

मलेरिया बीमारी के बढ़ते प्रकोप से हुमायूँ की सेना कमजोर पड़ गयी थी, इसलिए हुमायूँ ने सेना की एक छोटी टुकड़ी लेकर ही आगरा के लिए कूच कर गया ।

हमायूँ के वापस लौटने की सूचना पाकर शेरशाह ने रास्ते में ही हुमायूँ को घेरने का निर्णय किया । हुमायूँ ने वापसी में कई गलतियाँ कीं । सबसे पहली गलती यह थी कि उसने अपनी सेना को दो भागों में बाँट दिया था ।

सेना की एक टुकड़ी दिलावर खाँ के नेतृत्व में बिहार के मुंगेर जिला पर आक्रमण करने को भेजी गई थी । जबकि, सेना की दूसरी टुकड़ी के साथ हुमायूँ खुद आगे बढ़ा ।

बात नहीं माना सलाहकारों का !!

हुमायूँ के सलाहकारों ने उसे सलाह दिया था, वह गंगा के उत्तरी किनारे से चलता हुआ जौनपुर पहुँचे और गंगा पार करते ही शेरशाह पर हमला कर दे, परन्तु उसने उन लोगों की बात नहीं मानी ।

उसने गंगा पार करके दक्षिण मार्ग से चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक महान द्वारा निर्मित उत्तरपथ नाम से जानी जाने वाली सड़क जिसे शेरशाह ने बादशाह बनने के बाद जीर्णोद्धार कराया ( ग्रैंड ट्रंक रोड : सोर्स विकिपीडिया ) अर्थात ग्रैंड ट्रंक रोड से चलना शुरू किया,यह रोड शेर खाँ के नियंत्रण में था । आपको बताते चलें कि , अभी शेरशाह बादशाह नहीं बना था इसलिए अभी अंग्रेजो के समय का जी टी रोड , शेरशाह के समय का बादशाही सड़क या जर्नैली सड़क नहीं हो कर मौर्यकालीन उत्तरपथ था ।

कर्मनासा नदी के किनारे बक्सर के चौसा में उसे शेरशाह के होने का पता चला । इसलिए वह नदी पार करके शेरशाह पर आक्रमण करने को उतारू हो उठा । लेकिन यहां भी उसने गलती कर बैठा ।

यहां पर उसने तत्काल शेरशाह पर आक्रमण नहीं किया । वह तीन महीनों तक गंगा नदी के किनारे समय बरबाद करता रह गया । शेरशाह ने इस बीच उसे धोखे से शान्ति-वार्ता में उलझाए रखा और अपनी सैन्य तैयारियां करता रहा । वह बरसात की प्रतीक्षा कर रहा था ।

शेरशाह की जबरदस्त कूटनीति 

हुमायूँ
Chausa Yuddh Shershah himayun | image Farbound.net

वर्षा ऋतू के शुरू होते ही शेरशाह ने आक्रमण की योजना बनाया । हुमायूं का शिविर गंगा और कर्मनासा नदी के बीच एक नीची जगह पर स्थित था । जिसके चलते बरसात का पानी इसमें भर गया । मुगलों का तोपखाना खराब हो गया और सेना में अव्यवस्था व्याप्त गई ।

इस मौके का लाभ उठा कर 25 जून, 1539 की रात्रि में शेरशाह ने मुग़ल छावनी पर अचानक बिना वक़्त गवाएं धोखे से आक्रमण कर दिया । मुग़ल खेमे में खलबली मचनी तय थी , हुआ भी यही । सैनिक जान बचाने के लिए गंगा नदी में कूदने लगे । उनमें कुछ डूब कर मरें और कुछ शेरशाह के अफगान सेनाओं के द्वारा मारे गए ।

जान बचा कर भागा हुमायूँ 

परिस्थिति को भाप कर हुमायूँ भी अपनी जान बचाकर गंगा पार कर भाग गया । भागते समय उसका परिवार शिविर में ही रह गया । हुमायूँ अपने कुछ विश्वासी मुगलों की सहायता से आगरा पहुँच सका । हुमायूँ की पूरी सेना बर्बाद हो गई

युद्ध के सुनहरे परिणाम 

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  • चौसा के भीषण युद्ध के बाद हुमायूँ का पतन तय हो गया था ,क्यूंकि उसकी सेना नष्ट हो चुकी थी । उसके परिवार के कुछ सदस्य भी इस युद्ध में मारे गए थें ।
  • इस युद्ध में विजय के बाद अफगानों की शक्ति और महत्त्वाकांक्षाएँ पुनः बढ़ गई । अब वे मुगलों को आगरा से भी भगाकर आगरा पर अधिकार करने की योजनाएँ बनाने लगे ।
  • शेर खाँ ने इस युद्ध के बाद शेरशाह की उपाधि धारण कर लिया ।
  • शेरशाह ने अपने नाम का “खुतबा” पढ़वाया , सिक्के ढलवाये और कई नय फरमान जारी किए ।
  • उसने जलाल खाँ को बंगाल भेजकर बंगाल पर भी अधिकार कर लिया । शेरशाह खुद बनारस, जौनपुर और लखनऊ होता हुआ कन्नौज जा पहुँचा ।

कैसे पहुंचे चौसा ?

रोड मार्ग : रोड मार्ग बेहतर विकल्प हो सकता है । बक्सर से लगभग 10-15 किलोमीटर चौसा की दूरी है ।
रेल मार्ग : चौसा में रेलवे स्टेशन है ।
हवाई मार्ग : नजदीकी एयरपोर्ट पटना और बनारस है ।

अति प्राचीन है बिक्रमगंज का मां यक्षिणी भवानी भलुनी धाम , मिलते हैं लंगूर

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सासाराम से 52 किलोमीटर और बिक्रमगंज अनुमंडल से करीब 16 किमी दूर नटवार रोड में दिनारा प्रखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर पूरब भलुनी स्थित यक्षिणी भवानी धाम अत्यंत प्राचीन और प्रसिद्ध शक्तिपीठ है ।

सनातन धर्म के ग्रंथो में भलुनी भवानी धाम !!

श्रीमद देवी भागवत, मार्कण्डेय पुराण के अलावे वाल्मीकि रामायण में भी यक्षिणी भवानी का वर्णन मिलता है।

पौराणिक इतिहास !!

Temple Gate : Yakshini Bhaluni Bhawani

धार्मिक ग्रंथो के अनुसार देवासुर संग्राम के बाद अहंकार से चूर हो चुके देवताओं के राजा इंद्र को यक्षिणी देवी ने यहीं पर सत्य का पाठ पढ़ाया था । इंद्र ने देवी दर्शन के बाद उनकी स्थापना किया था । धार्मिक ग्रंथो में कहा गया है कि हंस पृष्ठे सुरज्जेष्ठा सर्पराज्ञाहिवाहना, इन्द्रस्यच तपो भूमिरू शक्तिपीठ कंचन तीरे। यक्षिणी नाम विख्याता त्रिशक्तिश्च समन्विता।

मां दुर्गा का ही एक नाम है यक्षिणी !!

Godess Yakshini Bhaluni Bhawani

पुराणों व अन्य धर्म ग्रंथों के अनुसार भलुनी भवानी देवी अति प्राचीन हैं । यक्षिणी मां दुर्गा का ही एक नाम है।

मंदिर में क्या क्या है ?

Sai Temple

मां यक्षिणी भलुनी भवानी धाम के मंदिर में यक्षिणी देवी की प्रतिमा के अलावे भगवान शंकर व कुबेर की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है । इतिहासकार इसे पूर्व मध्यकालीन बताते हैं ।

मंदिर का नवनिर्माण से पुनर्निर्माण की यात्रा !!

मां यक्षिणी भलुनी भवानी धाम मंदिर का पुनर्निर्माण आधुनिक काल में हुआ है । आपको बताए चलें कि देवी की प्रतिमा सहित मंदिर में स्थापित अन्य प्रतिमाएं पूर्वमध्यकालीन हैं।

विशेष महत्व का तालाब !!

Lake : Yakshini Bhaluni Bhawani

मां यक्षिणी भलुनी भवानी धाम मंदिर के बाहर एक अति प्राचीन और अति विशाल तालाब है।

आसपास में वनों के अवशेष आज भी विद्यमान हैं। इन जंगलों में काफी संख्या में लंगूर रहते हैं । दादा परदादा के समय में भलुनी धाम के जंगल लगभग 35-40 एकड़ में फैले हुए थें, लेकिन आधुनिकता के रेस में अवैध तरीके से पेड़ों के निरंतर कटाई से जंगल सिकुड़ता चला गया।

यहां के जंगलों में जड़ी बूटियों का संग्रह भी था । प्रशासनिक उदासीनता के कारण सब कुछ समाप्त होने के कगार पर है।

संरक्षित है इलाका !!

Godess Yakshini Bhaluni Bhawani

सरकार द्वारा मैदानी इलाके के इस वन क्षेत्र के लिए को बचाने के लिए इसे वन्य आश्रयणी घोषित किया गया है। ।

शौचालय और पानी की व्यवस्था !!

मां यक्षिणी भलुनी भवानी धाम में पीने के पानी और शौचालय की अच्छी व्यवस्था है । आप आराम से यहां पर परिवार के संग समय बिता सकते हैं ।

कैसे पहुंचे मां यक्षिणी भलुनी भवानी धाम ?

रेल : नजदीकी रेलवे स्टेशन बिक्रमगंज है । सासाराम और पटना ,आरा से पहुंचा जा सकता है ।

रोड : जिला मुख्यालय सासाराम से 52 किलोमीटर और बिक्रमगंज अनुमंडल से करीब 16 किमी दूर नटवार रोड में      दिनारा प्रखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर पूरब ।

हवाई जहाज : नजदीकी एयरपोर्ट पटना है । बनारस और गया भी विकल्प हो सकता है ।

सासाराम स्टेशन पर एस्केलेटर लगाने में फेल रेलमंत्रालय !! शिलान्यास के 1.5 वर्ष बाद भी नहीं हुआ ठोस काम

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आमदनी के हिसाब से गया मुगलसराय रेलखंड का महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन ,सासाराम में एस्केलेटर लगाने में रेलमंत्रालय फेल रहा । विकलांगों और बुजुर्गो को सहूलियत देने के उद्देश्य से सासाराम रेलवे स्टेशन पर स्वचालित सीढ़ी अर्थात एक्सेलेरेटर लगाने की घोषणा हुई थी । उसके बाद बाकायदा टेंडर भी निकला ।

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उसके बाद स्थानीय सांसद ने शिलान्यस भी किया , लेकिन इतना सब हो जाने के बाद भी रेल विभाग मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर सोते रहा ।

स्वक्षता के मामले में सम्मानित हो चुका है सासाराम

2019 के स्वच्छ रेल सर्वे में सासाराम तेजी से विकास करने वाला देश का पांचवां रेलवे स्टेशन बन कर सम्मानित हो चुका है सासाराम ।

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स्वक्षता के इस मुकाम को हासिल करने के लिए दिन रात मेहनत किया था सासाराम के रेल अधिकारियों ने , जनता ने भी सहयोग दिया था ।

राजस्व के मामले में भी सासाराम स्टेशन का अच्छा प्रदर्शन

सासाराम रेलवे स्टेशन राजस्व के मामले में अच्छा प्रदर्शन करते आया है । अब लोग अच्छे यात्री सुविधाओं की भी मांग करते है ।

कई काम पूरे भी हुए हैं !!

सासाराम स्टेशन पर रेलवे की कई योजनाएं चल रही है । रेलवे स्टेडियम, 100 फिट झंडा इंस्टालमेंट, पर्यटन स्थलों का चित्रण सहित कई सौंदर्यीकरण योजनाओं में सासाराम रेल विभाग का अच्छा प्रदर्शन रहा है।

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अभी कल ही , सासाराम के स्थानीय सांसद कई योजनाओं का उद्घाटन करते हुए Sasaram Ki Galiyan के फेसबुक पेज पर लाईव भी आए थें । जिसका वीडियो आप इस लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं ( Click on me )

एस्केलेटर और नय फुट ब्रिज में खराब प्रदर्शन !!

सासाराम रेल विभाग का एस्केलेटर और नय फुट ब्रिज के मामले में खराब प्रदर्शन रहा है । इसके चलते लोगों को प्लेटफॉर्म पास करने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।

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खास कर गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । विकलांगों को भी आने जाने में तकलीफें होती है ।

क्या किया जाए ?

यात्रियों से जुड़े योजनाओं को प्राथमिकता दे कर समय पर पूरा किया जाए । यात्री सुविधाओं को अन्य सौंदर्यीकरण योजनाओं से उपर रखा जाए । क्वालिटी का विशेष ध्यान रखा जाए । शिलान्यस और उद्घाटन से ज्यादा महत्व काम को सही समय पर , क्वालिटी के साथ पूरा करने में दिया जाए ।

सासाराम के वीर योद्धा आन बान और शान ,अंग्रेजी तोप से शहीद बाबू निशान सिंह

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Martyr Nishan Singh
Martyr Nishan Singh

भारत की आजादी अर्जित की गई आजादी है। इसके अर्जन में कई वीरों का योगदान शामिल है। पर, इतिहास ने सबके साथ न्याय नहीं किया है। बहुत से क्रांतिकारियों ने योगदान तो दिया पर उन्हें नाम नहीं मिला। हालांकि, आम लोगों का इतिहास जो सिर्फ़ पुस्तकों तक सीमित नहीं होता, वह सबके साथ न्याय करता है।

वह जानता है कि कर्म करने वाले इतिहास की पुस्तकों में दर्ज होने के मोहताज नहीं होते हैं। वीरता, पराक्रम और अदम्य साहस के हस्ताक्षर बाबू निशान सिंह ऐसे ही क्रांतिकारी थे ,जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत क्षमता से अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं।

यह वह समय था, जब देश में अंग्रेज़ी शासन अपने चरम पर था। प्लासी युद्ध के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी को पहली बार भारत में राजनीतिक सत्ता प्राप्त हो गई थी। अंग्रेजों के बंगाल विजय के बाद यहां की स्थिति ही बदल गई थी। आज का बिहार उस समय के बंगाल का हिस्सा था।

अंग्रेजों के जुल्म, शोषण और यातना के कारण आम जन में अत्यंत आक्रोश था। यह आक्रोश किसी भी पल चिंगारी में बदल सकता था। अंग्रेज़ यह जानते थे इसलिए वो बड़ी चालाकी से फैसले ले रहे थे। प्रत्यक्ष कार्यवाही के बदले कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर अधिक सतर्कता बरत रहे थे।


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अपनी फूट डालने की नीति से विभिन्न वर्गों के बीच अपने कृत्यों को वैधता प्रदान करने की कोशिश कर रहे थे। परंतु इसका असर अपनी मातृभूमि से असीम प्रेम करने वालों पर हो जाए, यह असंभव था।

सासाराम के बड्डी गांव निवासी थें निशान सिंह !!

बिहार के सासाराम के निवासी बाबू निशान सिंह ऐसे ही सेनानी थे जिन्होंने अपने देश के लिए अपनी आहुति तक दे दी। बाबू निशांत सिंह का जन्म उस समय के शाहाबाद और वर्तमान के रोहतास जिले के सासाराम के बड्डी गांव में हुआ था।

वीर कुंवर सिंह के दाहिने हाथ तथा वर्ष 1857 में आजादी की पहली लड़ाई के समय उनके सैन्य संचालन के सेनापति बाबू निशान सिंह ने बिना किसी भय और चिंता के अंग्रेजों से लोहा लिया।


ब्रिटिश सरकार को नानी याद आई !!

वीर कुंवर सिंह के साथ मिलकर आरा संघर्ष और आजमगढ़ युद्ध में ब्रिटिश सरकार को धूल चटाई। 1857 में जब भारतीय सेना ने दानापुर में विद्रोह किया था, तब निशान सिंह ने विद्रोही सेना का सहयोग किया और उनका खुलकर साथ दिया था।



इसके बाद, उन्होंने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिल कर आरा के सरकारी प्रतिष्ठानों को अपने कब्जे में ले लिया। यह प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेज़ो के विरुद्ध विद्रोह का आगाज और भारत की स्वतंत्रता का शंखनाद था।


गिरफ्तार हुए सासाराम के लाल !!

अंग्रेजों ने निशान सिंह को गिरफ्तार करने के लिए अपनी सेना को आरा भेजा लेकिन निशान सिंह कानपुर के लिए निकल चुके थे। कानपुर में वह अवध के नवाब से मिले। नवाब ने निशान सिंह की वीरता को देखते हुए उन्हें आजमगढ़ का प्रभारी नियुक्त कर दिया। कार्य भार संभालने के लिए निशान सिंह जब आजमगढ़ वापस आ रहे थे तो अंग्रेजों से उनका रक्तरंजित मुठभेड़ हुआ।


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बाबू कुंवर सिंह के मौत के बाद निशान सिंह का बाहुबल और उनकी अवस्था अब पहले की तरह नहीं रही, जिससे वह अंग्रेजों के साथ सक्रिय संघर्ष कर सकें। जब निशान सिंह अपने घर लौटे तो उनके रिश्तेदार प्रसन्न नहीं थे। उन्हें लगता था, निशान सिंह की उपस्थिति उनके जीवन और ज़मीन जायदाद के लिए संकट पैदा कर सकती थी तथा निशान सिंह की मृत्यु के उपरांत उनके रिश्तेदारों को दमन का सामना करना पड़ेगा।


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संबंधी संकट में न पड़ें, इसलिए वह गांव के समीप डुमर्खार के जंगल की गुफा में रहने लगे। गुफाओं में पालकी से जाते समय 5 जून 1858 को माल विभाग के डिप्टी अधीक्षक कैप्टन जी. नोलन ने एक हज़ार सैनिकों की टुकड़ी भेजकर निशान सिंह को पकड़ लिया।


गौरक्षणी मुहल्ले में तोप से उड़ा कर शहीद कर दिए गए !!

Painting For Representation

6 जून 1858 को बिना कोई अपराध साबित किए साजिश के तहत उनपर मुकदमा चलाया गया। मुख पर बिना किसी चिंता और मृत्यु से निर्भीक निशान सिंह ने अदालत में अपना बयान दिया। पर अंग्रेज़ कहाँ न्याय की भाषा समझते थे । उन्हें 7 जून की सुबह सासाराम के गौरक्षणी मुहल्ले में जंगलों के बीच तोप के मुंह पर बांधकर गोली से उड़ा दिया गया।

इस तरह अपनी मातृभूमि से लड़ते हुए बिहार के एक छोटे से गांव के निशान सिंह खुशी खुशी देश के नाम शहीद हो गए। सासाराम के आम जनों में वह आज भी रचे-बसे हैं। निशान सिंह शहीद हो कर भी अपनी निशानी छोड़ गए हैं।

आलेख : स्नेहा कुमारी
एमएसडबल्यू, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,
वर्धा-44200, महाराष्ट्र

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चमत्कारी मां मुंडेश्वरी धाम , बलि देने के बाद भी नहीं जाती बकरे की जान !!

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बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर विचित्र और अति प्राचीन है। मंदिर परिसर में विद्यमान शिलालेखों से इस मंदिर की प्राचीनता प्रमाणित होती है । भारतीय पुरातत्व विभाग इसे 625 ce का प्राचीन मंदिर बताता है । 1868 से 1904 ई. के बीच कई अंग्रेज विद्वान् और पर्यटक यहां आए थे । 1915 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे अपने अंदर लेकर संरक्षित धरोहर का मान्यता प्रदान किया था ।

1968 में पुरातत्व विभाग ने यहाँ की 97 दुर्लभ मूर्तियों को सुरक्षा की दृष्टि से पटना संग्रहालय में रखवा दिया था । आपको बताते चलें कि ,यहां की तीन दुभ मूर्तियां कोलकाता संग्रहालय में भी मौजूद हैं।

Mundeshwari Temple
Mundeshwari Temple

यह मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर सबडिवीजन में कैमूर पर्वतश्रेणी के पवरा पहाड़ी पर स्थित है । यह प्राचीन मदिर 608 फीट ऊंचाई पर स्थित है। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा के तरफ है। इस मंदिर का संबंध मार्केणडेय पुराण से जुड़ा हुआ है। मंदिर में चंड-मुंड के वध से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं।

आपको बताते चलें कि चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ के सेनापति थे जिनका वध इसी भूमि पर हुआ था। मंदिर में हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी बड़ी संख्या में बलि देने आते हैं और आंखों के सामने चमत्कार होते देखते हैं।

मां मुंडेश्वरी धाम में अलग है बलि देने की प्रक्रिया

Godess Mundeshwari
Godess Mundeshwari

मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस पर लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते है । यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता बल्कि उसे मंदिर में लाकर देवी मां के सामने खड़ा किया जाता है, जिस पर पुरोहित मंत्र वाले चावल छिड़कता है।

उन चावलों से वह बेहोश हो जाता है, फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है। इस चमत्कार को देखने वाले दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं । इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है।

मां शक्ति ने किया था चंड-मुंड का वध

पौराणिक कथाओं के अनुसार चंड-मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए जब मां भवानी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था। इसलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी पर कई पत्थर और स्तंभ बीखरे हुए हैं जिनको देखकर लगता है की उनपर श्रीयंत्र, कई सिद्ध यंत्र-मंत्र जरूर उत्कीर्ण हैं।

यहां के शिवलिंग का बदलता है रंग

Shivlinga
shivlinga

मां मुंडेश्वरी धाम के गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है। इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। हर सोमवार को बड़ी संख्या में भक्त यहां शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं ।
यहां के पुजारी भगवान भोलेनाथ के पंचमुखी शिवलिंग का सुबह शृंगार करके रुद्राभिषेक करते हैं ।

औरंगजेब नहीं तोड़ पाया इस मंदिर को !!

इतिहासकार और स्थानीय लोग बताते हैं कि औरंगजेब द्वारा इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूर मंदिर तोड़ने के काम में भी लग गए थें , लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ विचित्र अनहोनियां होने लगी । डर से वे काम छोड़ कर भाग खड़े हुए , कोई मजदूर तोड़ने के लिए राजी नहीं होता था । भग्न मूर्तियां (खंडित मूर्तियां) इस घटना की गवाही देती हैं।

इसे जानना जरूरी है

मां मुंडेश्वरी धाम में शारदीय और चैत्र माह के नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं । साल में 2 बार माघ और चैत्र में यहां यज्ञ होता है।

मां मुंडेश्वरी धाम पहुंचने के टिप्स

Bhabhua Road Railway Station

मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड ( मोहनिया रेलवे स्टेशन) है । स्टेशन से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर मंदिर स्थित है। मोहनिया से सड़क मार्ग के द्वारा आसानी से मुंडेश्वरी धाम पहुंचा जा सकता है । पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़कें बनाई गई है। सड़क से 2 पहिया वाहन और 4 पहिया वाहन ऊपर मंदिर तक पहुंच सकते हैं ।

कल सासाराम स्टेशन के तिरंगा और नये सर्कुलेटिंग एरिया का उद्घाटन ,डेहरी में 1 दिन पहले कई योजनाओं का लोकार्पण हो चुका है

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नोट : आज का यह कार्यक्रम पॉस्टपोंड हो चुका है । अब यह कार्यक्रम आज नहीं बल्कि कल यानी 19 सितम्बर को होगा । कल इस कार्यक्रम के दौरान अब विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उद्घाटन नहीं होगा । अब सांसद श्री छेदी पासवान जी खुद अपने हाथों से उद्घाटन करेंगे । आज यानी 18 सितम्बर को शाम में सासाराम के लिए दिल्ली से रवाना होंगे सांसद ।

Updated Schedule
Updated Schedule

Updated Schedule
Updated Schedule

आपको बताते चलें कि, पहले यह कार्यक्रम आज यानी 18 सितम्बर को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होना था ,लेकिन अब यह कार्यक्रम कल यानी 19 सितम्बर को ,वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के बदले खुद हाथों से होगा । सासाराम के स्टेशन परिसर में नवनिर्मित लगभग 100 फिट ऊंचे राष्ट्रीय ध्वज का उद्घाटन अब कल सम्पन्न होगा ।

Keerana
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सर्कुलेटिंग एरिया का भी उद्घाटन

सासाराम सांसद कल नये सर्कुलेटिंग एरिया का भी विधिवत उद्घाटन करेंगे ।

कुमहऊ एफओबी का भी शिलान्यास

सासाराम के टोल प्लाजा स्थित कुमहऊ गांव में प्रस्तावित एफओबी का शिलान्यास कार्यक्रम भी संपन्न होगा ।

कार्यक्रम को लेकर व्यस्तता

आज के कार्यक्रम को लेकर कई दिनों से तैयारियां जोरो से चल रही थी । हर जगह चाक चौबंद व्यवस्था है । साफ सफाई का विशेष ध्यान रखा गया है ।

आपको बताते चलें कि , सासाराम रेलवे स्टेशन स्थित तिरंगा अभी भी लहरा रहा है । कल आपने Sasaram Ki Galiyan के फेसबुक पेज पर लाईव भी देखे होंगे । उससे पहले भी कई बार इस तिरंगे की मनमोहक तस्वीरें वायरल हो चुकी है । लेकिन , यह अनौपचारिक रूप से ट्रायल के रूप में स्थापित था ।


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कल  उद्घाटन हो जाने के बाद सासाराम रेलवे स्टेशन स्थित तिरंगा औपचारिक हो जाएगा । इस तिरंगे कि ऊंचाई लगभग 100 फिट है । भारत सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा देश के सभी प्रमुख स्टेशनों पर इस तरह का तिरंगा लगाया जा रहा है ।


डेहरी में एक दिन पहले कई परियोजनाओं का उद्घाटन !!

डेहरी संसद महाबली कुशवाहा विडिओ कॉन्फ्रेंसिंग में

काराकाट संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले डेहरी ऑन सोन के सांसद श्री महाबली सिंह कुशवाहा ने एक दिन पहले विभिन्न यात्री सुविधाओं का वेब कांफ्रेंसिग के माध्यम से विधायक सत्यनारायण सिंह की उपस्थिति में लोकार्पण किया था।


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जिसके तहत डेहरी स्टेशन पर उन्नत सर्कुलेटिग एरिया व पार्किंग का उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर डीआरएम पंकज सक्सेना ने सांसद व विधायक को कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए धन्यवाद दिया था ।

सासाराम के युवाओं ने लॉन्च किया मोबाइल एप , लोग बोले वाह…आराम के दिन आ गए !!

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keerana app
Search on play store : keerana app

शहर के कुंदन जैसवाल और नीलकमल गुप्ता ने एक मोबाइल एप लॉन्च किया है, जिसकी मदद से सासाराम के किसी भी कोने में घर बैठे कोई भी सामान मंगा सकते है । करोना काल में घर बैठे अगर इस तरह की सुविधाएं कम दाम में मिलेंगी तो कौन उपयोग करना नहीं चाहेगा ? सब्जियों से लेकर, मेकअप के समान, चावल, क्रीम, बेबी केयर, केक, तेल, ड्राई फ्रूट्स सहित कई अन्य चीजें मंगा सकते हैं ।


क्या करना पड़ेगा ,सामान घर मंगाने के लिए ?

सबसे पहले Keerana नाम का सॉफ्टवेयर अपने मोबाइल में इंस्टाल करना होगा ।

इंस्टाल कैसे होगा ?

Search on play store : keerana app

 

उसके लिए गूगल के प्ले स्टोर में सर्च करें
या इस लिंक पर क्लिक करें https://rb.gy/heoi6o

 

 

now install : keerana app
now installing : keerana

एप मिल जाने पर सॉफ्टवेयर इंस्टाल कर लें ।

इंस्टाल के बाद क्या करें ?
इंस्टाल हो जाने के बाद आपको तरह तरह के सामान दिखने शुरू हो जाएंगे , कोई सामान पसंद आने पर ऑर्डर देने के लिए साइनअप/लॉगिन करके ऑर्डर प्लेस कर लिजिए ।

वॉट्सएप से भी सामान मंगा सकते हैं !!

एप के बदले वॉट्सएप से सामान मंगाने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://wa.me/919507524365


Keerana app पर क्या क्या उपलब्ध है ?

सेलिब्रेशन केक पर्सनल केयर मिल्क प्रोडक्ट्स पतंजलि प्रोडक्ट्स बेबी प्रोडक्ट्स
पूजा के सामान मैगी, पास्ता फल, सब्जी चाय, काफी एनर्जी ड्रिंक्स
पिज्जा आटा, दाल तेल, चीनी मसाले और भी बहुत कुछ 

नोट : इन कैटेगरीज के अंदर भी कई सब कैटेगरी है , सब कैटेगरी देखने के लिए मोबाइल एप विजिट करें ।


प्रमुख फीचर्स क्या क्या है ?

  • तेज और सुरक्षित डिलिवरी (2 घंटे में)
  • कम दाम, सही सामान
  • कैश ऑन डिलीवरी (C.O.D.)
  • कंप्लेन दर्ज करने की सुविधा
  • चैटिंग सुविधा
  • कस्टमर फोन सपोर्ट
  • वापसी की सुविधा
  • ऑनलाइन पेमेंट फैसिलिटी (Phonepe, Google Pay, UPI, Account Transfer, Atm, Net Banking)

ऑर्डर और डिलिवरी टाइमिंग क्या है ?

समान का ऑर्डर 24 घंटे में कभी भी दिया जा सकता है । डिलिवरी टाइमिंग स्टैंडर्ड होगी ( मतलब 10 am-7 pm, जैसे फ्लिपकार्ट,अमेजन सहित अन्य लोग करते हैं ) ।


सब्जियों के लिए विशेष प्रोटोकॉल

एक घंटे के भीतर सब्जियों के घर पहुंचाने कि सुविधा है । लेकिन इसके लिए आपको 10 बजे सुबह से शाम 6 बजे तक ऑर्डर करना होगा ।


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केक के लिए स्पेशल फैसिलिटी एवं शर्तें

 keerana app

केक का ऑर्डर एक दिन पहले देने पर बिल्कुल फ्रेश केक का आनंद उठा सकते हैं । हर तरह के केक मौजूद हैं , सस्ते – महंगे सब ।


कोई दिक्कत हुआ तो क्या करेंगे ?

लोगों के सहूलियत को ध्यान रखते हुए , कम्पनी ने अपने मोबाइल एप के अंदर ही चैट फीचर भी रखा है । इसके माध्यम से आप Real Time सपोर्ट पा सकते हैं । उसके अलावे इस नम्बर पर फोन और वॉट्सएप के माध्यमों से संपर्क कर सकते हैं 95075 24365


अमेजन जैसे विदेशी कंपनियों के जगह लोकल को सपोर्ट

करोना महामारी के दौर में जब देश की अर्थवयवस्था अपने न्यूतम स्तर पर जा चुकी है, ऐसे में लोकल ब्रांड्स और प्रोडक्ट का उपयोग और सपोर्ट करके देश का सहयोग कर सकते हैं । करोना महामारी के दौर में अपना और अपनों का ख्याल रखें, कम से कम घर से बाहर निकलें ।

सासाराम में भयंकर सड़क जाम !! बिना मास्क ,गर्मी से कराहते मिले लोग

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Traffic jam sasaram

दिन सोमवार तारीख 14 सितम्बर हम लोग मौजूद हैं सासाराम के सभी बड़े अधिकारियों के ऑफिस यानी कलेक्टरिएट के पास। यहां पर खड़े हो कर किसी भी दिशा में देखने पर एक ही चीज दिखाई दे रही है – गाड़ियों की लंबी लंबी कतारें और खिड़कियों में से झांकते 2 कानों और एक नाक वाले इंसानी सिर । भूखे प्यासे सिर !!

जाम की समस्या पुरानी !!

Traffic jam sasaram
Traffic jam sasaram

जिस अनुपात में शहर का जनसंख्या बढ़ा , गांवों से लोगों ने शहर के तरफ रुख किया , उसी अनुपात में नगर परिषद सासाराम का आमदनी और टैक्स भी बढ़ा । लेकिन सड़क , पानी,नाली और अन्य सुविधाओं में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई ।

कई नय मुहल्ले बसे ,लेकिन उनके आने जाने का कोई साफ सुथरा और चौड़ा मार्ग नहीं बना । शहर का भार एकमात्र जी टी रोड के उपर ही जारी रह गया । ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि , हमारे यहां जब शहर का विकास हो रहा था या हो रहा है तो नगर पालिका के पास कोई ठोस प्लानिंग नहीं है। यूं कहें तो , इनकी तैयारी नहीं है ।

इनके पास कोई प्लान और ठोस इंप्लीमेंटेशन सिस्टम नहीं है कि गली कितनी चौड़ी हो, गलियों में चबूतरे बने या ना बने ? अवैध चबूतरों का क्या किया जाए ?

जी टी रोड का कोई विकल्प नहीं है !!

Traffic jam sasaram
Traffic jam sasaram

जी टी रोड का कोई विकल्प नहीं होना शहर में सड़क जाम होने के प्रमुख कारणों में से एक है । शहर के किसी कोने में जाने के लिए किसी ना किसी रूप से जी टी रोड का सहारा लेना ही पड़ता है। अन्य शहरों में कई छोटे छोटे रोड होते हैं जो कि एक एरिया को दूसरे एरिया से कनेक्ट करते हैं ।

सासाराम में पुराने रोड जरूर थें , लेकिन प्रशासनिक दूरदृष्टी के अभाव में अब वो सड़कें गलियों के रूप में परिवर्तित हो गए हैं । उदहारण के रूप में बौलिया रोड, रौजा रोड ,धर्मशाला रोड , मछली बाजार से सूखा रौजा तक का रोड देख सकते हैं । जब मुहल्ले बस रहें थें , उसी समय अगर इन सड़कों का विकास और रख रखाव भविष्य के जरूरतों के अनुसार हुआ होता तो , शहर कंजस्टेड नहीं होता ।

अब क्या है विकल्प ?

आधुनिक युग में तकनीकों के मदद से हर समस्या सुलझाया जा सकता है ।

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प्रशिक्षित ट्रैफिक पुलिस की तैनाथी, सिग्नल सिस्टम , नय चौराहों को चिन्हित करके वहां भी पुलिस की तैनाथी और जी टी रोड के चौड़ीकरण , बस स्टैंड को शहर के बाहर पूरी तरह से शिफ्ट करने,

ऑटो वालों को प्रॉपर स्टैंड मुहैया करवाने, सरकारी ऑफिसों को मुख्य रोड से कहीं कम भीड़ भाड़ वाले इलाके में शिफ्ट करने और पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथों का निर्माण करा कर समस्या से निजात पाया जा सकता है ।

क्या है संभावना ?

फिलहाल कोई संभावना नहीं दिख रही है ।

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जब तक जनता जागरूक नहीं होगी , सेफ जोन से बाहर निकल कर डिमांड और संघर्ष नहीं करेगी तब तक रेडीमेड सॉल्यूशन मिलना मुश्किल है ।

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